723 Year Old Yogi

भारत में अभी भी ऐसे महान योगी पुरुष रहते हैं जिसके बारे में हम और आप नहीं जानते। अभी भी ऐसे बहुत सारे गुप्त मठ हैं जहां आम आदमी का पहुंच पाना असंभव है, लेकिन अगर कोई जिज्ञासु इन सब चीजों की खोज करता है तो देर सवेर वहां पहुंची जाता है। योग की बहुत सारी विद्याये हैं जिसके बारे में आम आदमी सोच भी नहीं सकता की ऐसा भी होना संभव है। उसी विषय में एक चर्चा पेश कर रहे हैं :-

एक सिद्ध साधक थे वामाचरण जो काफी समय पहले काशी में रहते थे। उनकी एक भैरवी थी जिसका नाम था सिद्ध माताजी। सिद्ध माताजी उच्च कोटि की साधिका थी। तिब्बत में कई दुर्गम घाटियां हैं जिनमें एक घाटी है संग्रीला घाटी। वह अत्यंत दुर्गम घाटी है। उस घाटी के अंदर कई गुप्त मठ हैं जिनमें एक है सियांग मठ। सियांग मठ तिब्बत के उन सिद्धाश्रमो में से एक है जो चर्म चक्षु से परे चतुर्थ आयाम में स्थित है। माताजी ने उसी सियांग मठ में रहकर दीर्घ काल तक गंभीर साधना की थी। लगभग 100 वर्ष पूर्व किसी अज्ञात प्रेरणा के वशीभूत होकर सिद्ध माताजी काशी चली आई। काशी में वह बहुत दिनों तक गुप्त रूप से अहिल्याबाई घाट घाट के ऊपर कहीं रहती थी। बाद में इसी स्थान पर चली आई और इसी स्थान पर साधक वामाचरण से उनका मुलाकात हुआ और उन्होंने भैरवी की दीक्षा भी उन्हीं ली। इतना लंबा अरसा बीत गया मगर फिर भी कभी कदाचित माता जी और वामाचरण अपने निकटतम शिष्यों के सामने पार्थिव शरीर में प्रकट होकर साधना उपदेश प्रदान कर उन्हें उपकृत करते हैं। 

योगियों का वैन्दव शरीर 

जिज्ञासा बस मैंने पूछा – पार्थिव शरीर काल के अधीन है अपने समय में वह नष्ट हो जाता है तो क्या पुनः उसी शरीर में प्रकट होना संभव है। उत्तर मिला – परम योगी के लिए सब कुछ संभव है। मंगला भैरवी ने योगतंत्र में कुल 16 प्रकार के दिक्षाए हैं। अंतिम दीक्षा योगिनी का दीक्षा है और प्रथम दीक्षा शक्तिपात दीक्षा है। क्रम से सभी दीक्षा संपन्न हो जाने पर अंत में योजनिका दीक्षा प्रदान की जाती है। इस दीक्षा को परम दीक्षा भी कहते हैं। इसके प्रभाव से कुंडलिनी का जागरण उत्थान और सह्रसार की स्थिति संपन्न हो जाने पर स्थूल शरीर के नष्ट हो जाने पर उसके पांच भौतिक तत्वों के परमाणु, सूक्ष्म प्राण इथर में अपना बराबर अस्तित्व बनाए रखते हैं। वह दीक्षा के प्रभाव से कभी भी विघटित नहीं होता। उन्हीं परमाणुओं की अपनी प्रबल इच्छा शक्ति के प्रभाव से शरीरोपरांत भी आकर्षित कर योगीगण  पुनः  अपने पूर्व पार्थिव शरीर का निर्माण आवश्यकता पड़ने पर कर देते हैं। योग शास्त्र में इस प्रकार निर्मित शरीर को वैन्दव शरीर कहते हैं। माता के गर्भ से पैदा होने वाले स्थूल शरीर और वैन्दव शरीर में किसी प्रकार का अंतर नहीं होता।  यदि कोई अंतर होता है तो मूल कारण में होता है। एक के मूल में कारण होता है माता-पिता की वासना और दूसरे के मूल में कारण होती है योगी की प्रबल और उत्कृष्ट इच्छाशक्ति। 

अनंत क्षमताओं से युक्त है मानवीय देह

इस सृष्टि में धरती ही एकमात्र ऐसा कौन सा स्थान है, जहां पर दुख को तप में एवं सुख को योग में परिवर्तित किया जा सकता है। शेष अन्यत्र स्थानों में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। यहां इसी देह से शुभ एवं पुण्य कर्म करके, तपस्या करके प्रारब्ध जन्य भोग को काटा जा सकता है और इसी देह से मोक्ष तक पहुंचा जा सकता है। हालांकि एक ही जन्म में मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयासरत देह की संरचना कुछ और प्रकार की होती है। तैलंग स्वामी, रमण महर्षि आदि की देह इसी कोटि की है। वे अपने शरीर से शेष बचे कर्म संस्कारों को काटते हुए सीधे मोक्ष तक की यात्रा कर लेते हैं। यह स्थिति विरल है और विरले ही इस घटना के साक्षी होते हैं। ऐसी प्रखर एवं जीवन मुक्त जीवात्माओं की देह भी बड़ी विशिष्ट होती है। 

Anant Shakti Chhupa Hai Manav Deh Me

ऐसी घटनाओं के चित्त में प्रारब्ध जन्य कर्म क्षय हो चुके होते हैं। अविद्यारूपी क्लेश के कारण उनको देह मिलती अवश्य है, लेकिन उनकी देह से नए कर्म नहीं बनते, प्रारब्ध नहीं बनते और इसी कारण उनका चित्त अत्यंत स्वच्छ होता है, परंतु उसमें अविद्या का अंश शेष रहता है। अविद्या अर्थात भ्रम। भ्रम के कारण ही तो देह की उत्पत्ति होती है। क्योंकि यह संसार भ्रम का ही संजाल है। अविद्या का घर है, अतः देह धारण अविद्या के कारण होता है। योगी इस अविद्या को जानता है उसकी संपूर्ण प्रकृति से परिचित होता है। जब उसका कर्म शेष हो जाता है तो वह अविद्या के पार चला जाता है और फिर उसका चित्त बिलीन हो जाता है। चित्त के घुलते ही देह भी पेड़ से सूखे पत्ते के समान झड़ जाती है। देह की ऐसी स्थिति योगियों के साथ होती है। वे अपनी इस देह में अनंत ब्रह्मांड शक्तियों को धारण कर सकते हैं, जिनके एक अंश मात्र के स्पर्श से सामान्य मनुष्य की देह भस्मीभूत  हो सकती है। 

अगर है शौक मिलने का तो कर खिदमत फकीरों का, 

यह जौहर नहीं मिलता अमीरो के खजाने में। 

महान योगी अपने शरीर को तपस्या करने के लायक बनाने के लिए बचपन से ही तैयारी प्रारंभ कर देते हैं। तैलंग स्वामी के लिए कहा जाता है कि वो तो बचपन से तपस्या करते रहे परंतु वह प्रायश्चित तप था। उनकी तपस्या का प्रारंभ 90 वर्ष की उम्र में तब हुआ जब उन्हें उनको गुरु का प्रत्यक्ष मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। तब तक वह कठिन तपस्या के लिए अपनी देह को तपाते रहे। तपस्या से देह की कोशिकाओं में रूपांतरण हो जाता है और वह योगज देह में रूपांतरित हो जाती है। योगज देह असीम दुख एवं कष्ट को सहन करने के योग्य होती है। देह को रूपांतरित करने की प्रक्रिया का उल्लेख श्री अरविंद के “अति मानस” योग में मिलता है। श्री अरविंद कहते हैं कि इस योग से देह की संपूर्ण कोशिकाओं की प्रकृति रूपांतरित हो जाती है और संपूर्ण देह एक इकाई के समान कार्य करने लगती है। रूपांतरित देह की क्षमता एवं सामर्थ्य कल्पनातीत होती है। इसकी शक्ति का अंदाज भी नहीं लगाया जा सकता है। 

एक योगी ने अपने शरीर को रूपांतरित करने का एक अद्भुत एवं आश्चर्यजनक प्रयोग किया। उन्होंने अपने शरीर को एक मिट्टी के घर में बंद करके चारों ओर से मिट्टी की दीवार से चुनवा दिया। अंदर हवा एवं प्रकाश प्रवेश करने के सारे द्वार बंद करवा दिए और उन्होंने अपने शिष्यों को सख्त हिदायत दी की उनकी आदेश के बिना यह दीवार न तोड़ी जाए। अंग्रेज शासन के दौर में यह घटना जब अंग्रेजों को पता चली तो उन्होंने इस प्रयोग के कुछ महीनों बाद दीवार को गिरा दिया। दीवार गिराने के बाद जब घर को तोड़ा गया तो वहां से बिजली की एक तेज रोशनी फूटी एवं अंतरिक्ष में विलीन हो गई। देह के रूपांतरण का यह प्रयोग अधूरा छूट गया। इस प्रयोग से यह पता चलता है कि मानव देश की सीमाओं का विस्तार किया जा सकता है। 

सामान्य देह को संयम पूर्वक इस लायक अवश्य बना लेना चाहिए ताकि सुख-दुख को झेलने लायक हो जाए और इस देह से तपस्या की जा सके। भोग से देह शिथिल एवं क्षीण होती है और कष्ट से इसमें निखार आता है। अतः हमें इंद्रिय भोगों की अंतहीन लालसा के पीछे न भागकर शरीर को भगवान का मंदिर बना लेना चाहिए, जिसके अंदर भगवान का वास हो सके। 

FAQ.

मनुष्य में शक्ति कैसे आती है? (साधना और तपस्या से)

दिव्य शरीर क्या है? (यौगिक शरीर)

मानव शरीर में शक्ति प्रदान कौन करता है? (ईश्वर)

हमारे शरीर में शक्ति और स्फूर्ति कब आती है? (जब रोगी न हों)

शरीर में कितनी शक्तियां होती हैं? (अनंत)

मन की शक्ति को कैसे पहचाने? (मन को एकाग्र करके)

दुनिया की वास्तविक शक्ति कौन होता है? (भगवान की शक्ति)

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