प्रसिद्ध आर्य सन्यासी महात्मा श्री आनंद स्वामी सरस्वती जी महाराज एक बार हमारे पिलखुआ निवास स्थान पर पधारे थे। तीन-चार दिन ठहरे थे। कैलाश मानसरोवर की यात्रा के संबंध में और गौ हत्या के विरोध में आपके भाषणों की खूब धूम मची थी। आजकल जो सारे देश में खानपान का विचार नहीं रहा है और सभी होटलों में खाने लगे हैं। इस संबंध में मैंने उनसे जो प्रश्न किए और स्वामी जी महाराज ने जो उत्तर दिए वे ज्यों के त्यों पाठकों के सामने रख रहा हूं। आशा है पाठक एक प्रख्यात आर्य सन्यासी के अनुभव से अवश्य लाभ उठाएंगे और होटलों के खाने से तथा भक्ष्याभक्ष्य का विचार न कर अनाप-शनाप जो भी जी में आया, खाने से बाज आएंगे।
प्रश्न – महाराज जी आजकल लोग चाहे जिसके हाथ का बना भोजन खा पी लेते हैं और किसी भी जाति आदि का कोई विचार नहीं करते किसने बनाया है, इसका भी तनिक विचार नहीं करते, होटलों में जाते हैं जो जी में आया भक्ष्याभक्ष्य का विचार न करके खा पी लेते हैं और कहते हैं कि खाने पीने से क्या बिगड़ता है। क्या यह ठीक है ?
स्वामी जी – अरे राम-राम ! यह घोर अनर्थ हो रहा है जिसका खानपान शुद्ध नहीं, वह भला क्या उन्नति करेगा और क्या भजन ध्यान करेगा तथा क्या मोक्ष प्राप्त करेगा। शुद्ध आहार की कितनी आवश्यकता है इस सम्बन्ध में एक बिल्कुल सत्य घटना हम तुम्हें सुनाते हैं। ध्यान से सुनो।
आर्य जगत के सुप्रसिद्ध शिक्षासेवी तथा डीएवी कालेजों के संस्थापक महात्मा हंसराज जी एक बार आश्रम हरिद्वार में ठहरे हुए थे। आश्रम में ही एक वानप्रस्थी जी महाराज भी ठहरे थे जो कि बरसों से यही आश्रम में रहकर प्रातः काल 3 बजे उठकर ध्यानावस्थित होने का अभ्यास कर रहे थे, और इस अभ्यास में उन्हें पर्याप्त सफलता भी मिल चुकी थी। एक दिन की बात है कि वे वानप्रस्थ जी बड़े जोर से रुदन करते हुए महात्मा हंसराज जी के पास पहुंचे और रोकर कहने लगे कि महाराज आज मैं लुट गया।
महात्मा जी – क्या रात को चोरी हो गई ?
वानप्रस्थी – नहीं, महाराज सर्वनाश हो गया।
महात्मा जी – स्पष्ट बताइए, क्या हुआ ?
वानप्रस्थी – पूछिए मत महाराज, सर्वस्व हरण हो गया।
महात्मा जी – फिर भी बताओ ना क्या हुआ ? रोते क्यों हो ?
वानप्रस्थी – महात्मा जी ! मैं प्रतिदिन अभ्यास में बैठता हूं और प्रभु श्री गुरु कृपा से मैं ब्रह्मरंध्र में ध्यान लगाता हूं। आज भी मैं नित्य की भांति बैठा परंतु आज मुझे नित्य की भांत ध्यान में वह ज्योति दिखाई नहीं दी और उसकी जगह लाल वस्त्र पहने एक युवती दिखाई देने लगी। मैंने अपने मानसिक बल से हटाने का बहुत ही प्रयत्न किया, परन्तु इसमें सफलता नहीं मिली। जब सफलता नहीं मिली तब मैं उठकर टहलने लगा। थोड़ी देर बाद में फिर ध्यान में बैठा, परन्तु फिर भी ज्योति दिखलाई नहीं दी और उसकी जगह वही लाल साड़ी वाली युवती दृष्टिगोचर होने लगी। मैं फिर उठकर टहलने लगा और मैंने एक बार फिर प्रयत्न किया कि मैं किसी प्रकार ध्यानावस्थित हो सकूँ। परन्तु बार-बार प्रयत्न करने पर भी मैं सफल नहीं हो सका और उसी लाल साड़ी वाली युवती का चित्र सामने आने लगा। हाय-हाय ! महात्मा जी ! मैं लुट गया। मेरी अब तक की सारी कमाई लूट गई। अब मैं क्या करूं ?
यह कहकर वानप्रस्थी जी फूट-फूट कर रोने लगे।
महात्माजी – कल कहीं गंदी फिल्म देखने तो नहीं चले गए ?
वानप्रस्थी – नहीं महाराज !
महात्माजी – कोई गंदा उपन्यास तो नहीं पड़ा ?
वानप्रस्थी – ऐसी कोई पुस्तक नहीं पड़ी।
महात्माजी – किसी की बुरी संगति में तो नहीं जा बैठे ?
वानप्रस्थी – नहीं, किसी के पास में नही बैठा।
महात्माजी – कल आश्रम से बाहर कहीं पर गए थे ?
वानप्रस्थी – जी हां, मेरे एक साधु साथी आए थे और वह मुझे अपने साथ एक स्थान पर ले गए जहां बहुत बड़ा भंडारा हुआ था।
महात्माजी – तुमने भी क्या उसमें कुछ खाया था ?
वानप्रस्थी – जी हां मैंने भी उस भंडारे में भोजन किया था।
महात्माजी – तो पता लगाओ कि वह भंडारा कराने वाला कौन था, वह कहां से आया था और कैसा था।
वानप्रस्थी – बहुत अच्छा महाराज !
अब तो वानप्रस्थीजी इस खोज में लगे कि भंडारेवाला कौन था, कैसा था और उसका भंडारा कराने का उद्देश्य क्या था। दो-तीन दिनों की खोज के पश्चात वानप्रस्थी जी ने महात्मा हंसराज जी के पास आकर बताया कि महाराज खोज करने के पश्चात यह मालूम हुआ कि अमुक नगरी का एक व्यक्ति हरिद्वार में आया था। उसी ने आकर भंडारा किया था। उस व्यक्ति ने अपनी एक कन्या को दस हजार में एक वृद्ध के साथ ब्याह दिया था। लड़की को बेचने से प्राप्त हुए 10000 में से 2000 लेकर हरिद्वार में आया था और उसी 2000 से उसने भंडारा किया था।
यह सुनकर महात्मा जी कहने लगे कि तुम्हारी ध्यान अवस्था में जो घटना घटी है उसका कारण स्पष्ट हो गया, उसी युवती का चित्र ध्यानावस्था में सामने आता था। जिसे बेचकर उस व्यक्ति ने तुम्हें अन्न खिलाया था। जैसा अन्न होता है वैसा ही मन भी बनता है। अब तुम्हें इस बुरे अन्न के प्रभाव को नष्ट करने के लिए सवा लाख गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। तभी अन्न का प्रभाव दूर होगा, अन्यथा नहीं।
वानप्रस्थी जी ने ऐसा ही किया। सवा लाख गायत्री जप से बुरे अन्न का प्रभाव दूर हो गया और तब उनका पूर्ववत ध्यान होने लगा।
इसे भी पढ़ें जया किशोरी कितनी पढ़ी लिखी हैं और वह कब करेंगी शादी
FAQ. :
- अशुद्ध और हमारे शरीर के लिए कितना खतरनाक है ? (Ashuddh Aahar ka Asar)
- हमारे तन और मन पर अशुद्ध आहार का असर कैसे होता है ? (Ashuddh Aahar ka Tan aur Man Par Asar)
- अशुद्ध आहार क्यों नहीं खाना चाहिए ? (Ashuddh Aahar kyon Nahi karna chahiye)
- अशुद्ध आहार से ध्यान भजन में कोई बरकत नहीं होती है। (Ashuddh Aahar se dhyan-bhajan me barkat nahi hoti)
- अशुद्ध आहार से हमारे घर में देवी देवताओं का वास नहीं रहता है। (Ashuddh Aahar se ghar me devi-devtaon ka was nahi raahta)
- अशुद्ध खानपान मन को शांत नहीं रहने देता है ? (Ashuddh khanpan man ko ashant karta hai)
- मन की चंचलता का कारण अशुद्ध आहार है ? (Man ki chanchalta ka karan hai Ashuddh Aahar)