Baba ka chamatkar

आज भारत में जितने भी गुरु लोगों का धाम है चाहे वह पंडोखर धाम हो या बागेश्वर धाम या फिर करौली सरकार हो उसमें सबसे ज्यादे लोग जाने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के देखने को मिलेंगे. मैं भी उत्तर प्रदेश का रहने वाला हुँ और मैं भी अपनी समस्या लेकर गया था, लेकिन वहां लोगों की इतनी भीड़ है कि देखकर दिमाग़ का नस फटने लगता है. लगता है कि भगवान ने इंसान नहीं सिर्फ समस्या पैदा किया है. सब लोग चमत्कार के चक्कर में भटक रहे हैं कि शायद कुछ ऐसा हो जाय कि मेरा जीवन सुख शांति से भर जाय.

आप देश के किसी भी कोने में रहते हों आप एक बार जाकर अवलोकन करें तो आपको पता चलेगा कि दुनिया के 80% लोग समस्या ही लेकर घूम रहे हैं. भाई मैं तो थक गया हुँ घूमते घूमते. मैं साधना करने वाला व्यक्ति हुँ इसलिए मैं जगह जगह घूमता रहता हुँ कि शायद कोई ऐसा फ़क़ीर मिल जाये जो हमें ईश्वर प्राप्ति का सही मार्ग बता दे.

आप किसी भी धाम में चलो जाओ कर्म फल तो आपको भोगना ही पड़ेगा. इंसान को नहीं पता कि कौन से जन्म का फल कब मिलेगा लेकिन मिलता जरूर है. इसलिए कर्म करते समय 10 बार सोचो कि यह कर्म पाप की ओर ले जा रहा है या पुण्य की ओर. हर आदमी को पता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है, फिर भी गलती करता है.

आज देश और दुनिया की यह हालत है कि आदमी ही आदमी को लूटने में लगा है, कैसे? वह मैं आपको बता रहा हुँ – एक चाय वाला है 10 रूपये की चाय देता है 100 ML होता है. उससे केवल जीभ जलती है क्या यह जायज है. 10 रुपया देने पर भी लगता है कि चूहे को चाय दे रहा है इतनी क्वांटिटी कम हो गयी है. इसी तरह आप किसी भी खाद्य पदार्थ को लेलें. रेलवे स्टेशन पर जो पूड़ी सब्जी बेचता है वहां तो लगता है कि 500 रुपया देगा तब जाकर कहीं पेट भरेगा. जितने भी फल, सब्जी या किराने क़ी दुकान वाले हैं वह सोचते हैं हमारा सारा माल भी पड़ा रहे और ढेर सारा पैसा भी मिल जाय. आज 100 में से 90% दुकानदार कम तोलते है. अब तो वह इलेक्ट्रिक वजन करने क़ी मशीन में ही कांटा सेट करवा देते हैं. और क्या बताऊँ सरकार गरीब लोगों को राशन देती हैं लेकिन कोटेदार 5 से 7 किलो राशन लोगों को कम तोलकर देते हैं. स्टेशन पर जाओ रेलवे कर्मचारी भी 5-7 रूपये हड़प लेता है, बोलता है खुल्ला नहीं है. अरे भाई! इंसान हो तो इंसानियत को तो निभाओ. जितना दाम लेते हो क्या उतने का माल दे रहे हो? अगर नहीं दे रहे हो तो विचार करो और सुधार करो. और क्या क्या बताऊँ सब जगह गोरख धंधा हैं, जिसकी चल गयी उसकी तो बल्ले बल्ले है.

कहीं लोग नोटों को रखकर सड़ा रहे हैं तो कहीं लोग उन्हीं नोटों के लिए दर बदर भटक रहे हैं. गरीब और गरीब होते जा रहा है और अमीर और अमीर होते जा रहा है. आज कम्पनियों क़ी ठेकेदारी प्रथा में गरीब मजदूरों का esi औऱ PF का पैसा मार लिया जाता है. हाल यह है कि कोई मजदूर काम छोड़कर चला जाता है तो उसके पैसे भी कम्पनी मालिक या ठेकेदार नहीं देते हैं.

जब सब जगह से इंसान लाचार हो जाता है तब गमन करता है बाबा के पास कि शायद कोई बाबा मिल जाय औऱ कल्याण हो जाय, लेकिन गरीब का भाग्य भी गरीब ही होता है. यह बात हर गरीब को पता चल जाता है कि बाबा के दरबार में भी अमीरों का ही बोलबाला है. फिर कुछ संत औऱ बाबा ऐसे हैं जो सबकी सुनते हैं औऱ उनका कल्याण भी करते हैं. किसी ने सही कहा है संत न होते जगत में तो जल मरता संसार.

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