“ये जो भगवान है न वो हम जानवरों की नहीं सुनता है, अगर उसे हमारी जान की परवाह होती तो हम क्यों कटते”
एक दिन बकरे ने अपनी बीबी बकरी से कहा : देख मै अब कुछ दिनों का मेहमान हूँ अपने बच्चों की देखरेख ठीक से करना । क्यूंकि काल कभी पूछकर नहीं आता है । बकरी ने कहा : क्यों ऐसी बातें कर रहे हो? क्या हो गया है तुम्हे । बकरे ने जबाब दिया : तू देख नहीं रही है मै पहले से कितना मोटा ताजा हो गया हूँ । बकरी ने कहा : तो फिर क्या हुआ । मोटे ताजे होने से तुम्हे परेशानी क्या है ।
बकरे ने जबाब दिया : प्रिये तू नहीं जानती ये आदमी लोग कितने हब्सी हैं। इनको हमारे ही अन्दर सबसे ज्यादा विटामिन दिखाई देता है । अब मै मोटा हो गया हूँ तो पता नहीं मेरी गर्दन कब कट जाये । इसलिए अपने बच्चों का ख्याल रखना । बकरी ने कहा : हम भगवान से प्रार्थना करेंगे तुम्हारी लम्बी उम्र के लिए । बकरे ने जबाब दिया : ये जो भगवान है न वो हम जानवरों की नहीं सुनता है, अगर उसे हमारी जान की परवाह होती तो हम क्यों कटते । बकरी ने कहा : हमने तो इन इंसानों का कुछ बिगाड़ा नहीं फिर क्यूँ काटते है हमें । क्या हमें जीने का अधिकार नहीं है । ये आदमी लोग चावल दाल, फल, मेवा, मक्खन, मिश्री, दूध सबकुछ खाते हैं फिर हमें क्यों काटते हैं, हमारा खून क्यों पीते हैं, हमारे ही अन्दर उनको विटामिन क्यों दिखाई देता है। बकरे ने कहा : प्रिये वो हमें खिला-पिलाकर काटते हैं । फिर बकरी ने जबाब दिया : उनके माँ बाप ने भी तो उनको खिलाया-पिलाया होगा फिर वो अपने बेटों को क्यों नहीं काटते । इतने में बकरे खरीदने चार ग्राहक आ गए और बकरे का कान पकड़कर लेके चल दिए । बकरी बेचारी क्या करे आँखों में आंसू लिए अपने प्रिये को देखती रही जबतक वो आँखों से ओझल न हुआ ।
सवाल ये है कि जब अपनी बारी आती है तो इन्सान रोता है लेकिन जब बकरा खाने की इच्छा होती है तो निसहाय प्राणी को काटकर खाता है । आदमी निस्सहाय प्राणी का ही मांस खाता है शेर का कभी मांस नहीं खाता है क्योंकि शेर निस्सहाय नहीं है। कमजोर को ही सब शिकार करते हैं शेर का नहीं।
।। बकरा तेरी यही कहानी, आदमी ढूंढे तुझमें अपनी जवानी।।
नोट : बकरे को हम ताकत बढाने के लिए खाते हैं लेकिन हम बकरे का केवल मांस ही नहीं खाते हैं बल्कि उसके साथ उसकी दर्दभरी आहें और चीख को भी खाते हैं। जब बकरे को बेरहमी से काटते हैं तो उस समय उसके शरीर में अत्यंत दुःख और पीड़ा की घडी होती है। इसलिए जब हम किसी भी प्राणी को निर्मम हत्या करके खाते हैं तो उसकी जो चीख और आह है उसका हमारे शरीर और दिलों दिमाग पर असर करता है।
लोग रामायण देखकर सोचते हैं कि हमारे घर में राम जैसा चरित्र स्थापित हो लेकिन कर्म करते हैं राक्षसी प्रवृति का। फिर घर, परिवार और दिमाग में शांति कैसे रहेगी। गहना कर्मणोगतिः।