brahmcharya

ब्रह्मचर्य क्या होता है ? Celibacy Kya Hota Hai? जानें ब्रह्मचर्य की महिमा क्या है? Brahmachari Ki Mahima kya hai? ब्रह्मचर्य का प्रभाव कैसे पड़ता है ? Brahmchari ka Prabhav Kaise padta hai? ब्रह्मचर्य क्या है ? Brahmcharya kya hai?

जब तक शरीर में वीर्य है तब तक शत्रु की ताकत नहीं कि वह आप से भिड़ सकें और रोग आप को दबा सके। चोर, डाकू भी ऐसे वीर्यवान से डरते हैं। हिंसक प्राणी व पक्षी भी उसी से दूर भागते हैं। शेर में भी इतनी हिम्मत नहीं कि वीर्यवान व्यक्ति का सामना कर सके। ब्रह्मचारी सिंह के समान हिंसक प्राणी को कान से पकड़ कर बैठा सकता है। वीर्य की रक्षा से ही परशुराम जी ने क्षत्रियों का कई बार संहार किया था। 

ब्रह्मचर्य पालन के प्रताप से ही हनुमान जी समुद्र पार करके लंका जा सके और सीता जी का समाचार ला सके थे। ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही भीष्म पितामह ने अपने अंतिम समय में कई महीनों तक बाणों की शैया पर सो सके एवं अर्जुन से बाणो की  तकिए की मांग कर सकें। वीर्य की रक्षा से लक्ष्मण जी ने मेघनाथ को हराया और ब्रह्मचर्य के प्रताप से भारत के मुकुट मणि महर्षि दयानंद सरस्वती ने दुनिया पर विजय प्राप्त की। 

इस विषय में कितना लिखें, दुनिया में जितने भी सुधारक, ऋषि-मुनि, महात्मा, योगी व संत हो गए हैं, उन सभी ने ब्रह्मचर्य के प्रताप से लोगों के दिलों को जीत लिया था। अतः वीर्य की रक्षा ही जीवन है और वीर्य को गँवाना ही मौत है। 

शास्त्रों ने शरीर को परमात्मा का घर बताया है। उसे पवित्र रखना प्रत्येक स्त्री पुरुष का कर्तव्य है। ब्रह्मचर्य का पालन वही कर सकता है, जिसका मन और इंद्रियों पर नियंत्रण होता है। चाहे वह गृहस्थी हो या त्यागी हो। आजकल जब मैं अपनी बहनों को को देखता हूं तो मेरा हृदय दुख दर्द से आक्रांत हो जाता है कि कहां हैं हमारी वह  प्राचीन माताएं और बहने। जिन्होंने रामचंद्र जी, लक्ष्मण, भीष्म पितामह और भगवान श्री कृष्ण जैसे व्यक्तियों को जन्म दिया था। 

महाभारत का एक प्रसंग है : एक बार इंद्रदेव ने अर्जुन को स्वर्ग में आने के लिए आमंत्रण दिया और अर्जुन ने वह स्वीकार किया। इंद्रदेव ने अर्जुन का अपने पुत्र के समान अत्यंत सम्मान व खूब प्रेम से उसका सत्कार किया। अर्जुन को आनंद हो ऐसी सब चीजें वहां उपस्थित रखी। उसे रणसंग्राम की समस्त विद्या सिखाकर अत्यंत कुशल बनाया। थोड़े समय बाद परीक्षा लेने के लिए अथवा उसे प्रसन्न रखने के लिए राज दरबार में स्वर्ग की अप्सराओं को बुलाया गया। 

इंद्रदेव ने सोचा कि अर्जुन उर्वशी को देखकर मस्त हो जाएगा और उसकी मांग करेगा। परंतु अर्जुन पर उसका कोई प्रभाव न हुआ। इसके विपरीत उर्वशी अर्जुन की शक्ति, गुणों व सुंदरता पर मोहित हो गई। 

इंद्रदेव की अनुमति से उर्वशी रात्रि में अर्जुन के महल में गई एवं अपने दिल की बात कहने लगी : “हे अर्जुन ! मैं आपको चाहती हूं। आपके सिवा अन्य किसी पुरुष को मैं नहीं चाहती। केवल आप ही मेरी आंखों के तारे हो। अरे, मेरी सुंदरता के चंद्र ! मेरी अभिलाषा पूर्ण करो। मेरा यौवन आपको पाने के लिए तड़प रहा है।”

यदि आजकल के सौंदर्य के पुजारी नवयुवक अर्जुन की जगह होते तो इस प्रसंग को अच्छा अवसर समझ के फिसलकर उर्वशी के अधीन हो। परंतु परमात्मा श्री कृष्ण के परम भक्त अर्जुन ने उर्वशी कहा : “माता ! पुत्र के समक्ष ऐसी बातें करना ठीक नहीं है। आपको मुझसे ऐसी आशा रखना व्यर्थ है।”

तब उर्वशी अनेक प्रकार के हाव-भाव करके अर्जुन को अपने प्रेम में फंसाने की कोशिश करती है, परंतु सच्चा ब्रह्मचारी किसी भी प्रकार चलित नहीं होता, वासना के हवाले नहीं होता। उर्वशी अनेक दलीले देती है परन्तु अर्जुन ने अपने इंद्रिय संयम का परिचय देते हुए कहा :

गच्छ मूर्ध्ना प्रपन्नोस्मि पादौ ते वरवर्णिनी। 

त्वं हि में मातृवत पूज्या रक्षयाहं पुत्रवत त्वया।। 

‘हे वरवर्णिनी ! मैं तुम्हारे चरणों में शीश झुका कर तुम्हारी शरण में आया हूं। तुम वापस चली जाओ। मेरे लिए तुम माता के समान पूजनीया हो और मुझे पुत्र के समान मानकर मेरी रक्षा करो। 

(महाभारत : दान पर्व : 6:47 )

अपनी इच्छा पूरी न होने से उर्वशी ने क्रोधित होकर अर्जुन को श्राप दिया : जाओ, तुम 1 साल के लिए नपुंसक हो जाओगे।” अर्जुन ने अभिशप्त होना नामंजूर किया परंतु पाप में डूबा नहीं। 

प्यारे नौजवानों ! इसी का नाम है सच्चा ब्रह्मचारी। 

श्री गुरु गीता में भगवान शंकर ने पार्वती से कहा है :

सिद्धे बिन्दौ महादेवि किं न सिद्धयति भूतले ?

“हे पार्वती ! बिंदु अर्थात वीर्यरक्षण सिद्ध होने के बाद इस पृथ्वी पर ऐसी कौन सी सिद्धि है जो सिद्ध न हो सके ?” 

वृद्धावस्था तथा अनेक छोटी मोटी बीमारियां ब्रह्मचर्य के पालन से दूर भागती है। 100 साल से पहले मौत नहीं आती है। 80 वर्ष की उम्र में भी आप 40 साल के दिखते हो। शरीर का प्रत्येक हिस्सा स्वस्थ, शुदृढ व मजबूत दिखता है, इसमें बिल्कुल अतिशयोक्ति नहीं है। आप भीष्म पितामह की हकीकत पढ़ो। उनकी उम्र 105 साल की थी फिर भी महाभारत के युद्ध में लड़ रहे थे। वीर अर्जुन और श्री कृष्ण जैसे महान विभूतियां भी उनके साथ युद्ध करने में सकुचाती थी। हजारों योद्धा उनके बाणो का निशाना बनकर युद्ध में मौत को गले लग गए थे। 

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आप जानते हो उनकी मृत्यु कैसे हुई। उन्होंने कहा था कि मैं केवल वीरों के साथ ही युद्ध करूंगा और क्षत्रिय धर्म का पालन करूंगा। जिनमें प्रबल शक्ति हो वे आकर सामना करें। परंतु मैं किसी स्त्री के साथ युद्ध नहीं करूंगा। परमेश्वर श्री कृष्णा ने जानबूझकर उनके सामने शिखंडी को खड़ा कर दिया। भीष्म पितामह ने उसे देखकर पीठ कर ली क्योंकि भीष्म जी शिखंडी को इस जन्म में भी स्त्री ही मानते थे। अवसर मिलते ही अर्जुन ने बाणों की वर्षा कर दी। इससे भीष्म पितामह घायल होकर धरती पर गिर पड़े। आजकल ऐसे ब्रह्मचारी भाग्य से कहीं देखने को मिलते हैं। वर्तमान परिस्थितियों में भारतवर्ष को ऐसे ब्रह्मचारियों की विशेष आवश्यकता है। हमें ऐसी महान विभूतियों के जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए। 

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