दाह, पित्तदोष, जलन, आंतरिक गर्मी, कब्ज, मासिक धर्म में अधिक रक्त आना, हाथ पैर और तलवों में जलन, आंखों में जलन तथा गर्मी के कारण आंखें लाल रहना, पसीना अधिक आना, गर्मी के कारण त्वचा का रंग काला पड़ जाना, शरीर में घमौरिया (छोटी-छोटी दानेदार फुंसियां) होना आदि विकारों में भी इसके सेवन से उत्तम लाभ होता है। इसके साथ ही साथ यह दिमाग को शीतल और शांत रखता है।
गुलकंद कैसे बनाते हैं ? (Gulkand Kaise Banaya Jata Hai)
मौसमी गुलाब के ताजे फूलों की डंडिया निकालकर फूलों की पंखुड़ियों को अलग अलग करके, फूलों के वजन से दुगुनी चीनी मिला दें। उसके पश्चात कलईदार बर्तन या एनामेल के तसले (पात्र) में थोड़ी थोड़ी उन पंखुड़ियों और थोड़ी चीनी को मिला हाथ से मसलकर मर्तवान में डालते जाएं। कुछ दिन रखा रहने पर गुलकंद तैयार हो जाता है।
कुछ लोग मर्तवान में नीचे थोड़ी मिश्री डालकर दोनों की मिश्रित तह लगाते हैं। इस प्रकार तहों को लगाकर सबसे ऊपर भी मिश्री की तरह लगाते हैं। फिर मर्तवान का मुंह बंद कर कपड़ मिट्टी करके एक मास तक रखते हैं। इस प्रकार भी गुलकंद बनाते हैं।
मात्रा और अनुपान : एक से 2 तोला आवश्यकतानुसार जल या दूध से लें।
गुलकंद के गुण और उपयोग (Gulkand ke Gun Aur Upyog)
गुलकंद का प्रयोग दाह, पित्तदोष, जलन, आंतरिक गर्मी का बढ़ना और कब्ज के विकार नष्ट करने के लिए किया जाता है। यह मस्तिष्क को शांति पहुंचाता है। इसके सेवन से स्त्रियों के गर्भाशय की गर्मी शांत होकर अत्यार्तव (मासिक धर्म में अधिक रक्त आना) रोग नष्ट होता है। हाथ पैर और तलवों में जलन रहना, आंखों में जलन होना तथा गर्मी के कारण आंखें लाल रहना, पसीना अधिक आना, गर्मी के कारण त्वचा का रंग काला पड़ जाना, शरीर में घमौरिया (छोटी-छोटी दानेदार फुंसियां) होना आदि विकारों में भी इसके सेवन से उत्तम लाभ होता है।
प्रवाल मिश्रित गुलकंद कैसे बनाएं ? (Praval Mishrit Gulkand Kaise Banayen )
उपरोक्त विधि से बनाए हुए 100 तोला गुलकंद में एक तोला चार रत्ती प्रवाल पिष्टी मिलाकर रखने से गुलकंद प्रवाल मिश्रित बन जाता है।
मात्रा और अनुपान : 6 मासे 1 तोला तक आवश्यकतानुसार जल या दूध के साथ प्रयोग करें।
प्रवाल मिश्रित गुलकंद के फायदे (Praval Mishrit Gulkand ke fayde)
इस गुलकंद में प्रवाल का मिश्रण है। जिसके कारण यह प्रवाल रहित गुलकंद से अधिक गुणकारी है। इसमें गुलकंद के गुणों के साथ-साथ प्रवाल के गुणों का पूर्ण समावेश रहता है। जिससे यह कब्ज, प्यास की अधिकता, गर्मी अधिक बढ़ जाना, ब्लड प्रेशर तथा पित्तदोष, रक्तपित्त आदि विकारों को नष्ट करता है। स्त्रियों की गर्भाशयिक दोषों को भी नष्ट करता है। गर्मी के कारण आंखों में जलन होना, आंखों से गर्म पानी निकलना, पेशाब लाल, गरम एवं जलन के साथ होना, पसीना निकलना, खाज खुजली, घमौरी निकलना, त्वचा का रंग काला पड़ जाना आदि विकारों उत्तम गुणकारी है। कितने ही लोग गर्मी के दिनों में प्रातः काल नित्य इसका सेवन करते हैं जिससे गर्मी के कारण होने वाले विकारों का भय नहीं रहता है।
साभार : आयुर्वेद सार संग्रहv