जवानी में बुढ़ापा जैसा लगने का मुख्य कारण है वीर्य नाश । जवानी में अगर बुढ़ापे जैसा लगता है तो क्या करें ? यदि आप एक युवा है और आपका शरीर जवानी में ही बुढ़ापे जैसा कमजोर हो गया है तो इस दवा का सेवन किसी वैद्य की सलाह लेकर जरूर करें। क्योंकि युवावस्था में शुक्र सम्बन्धी अनेक बीमारियां हो जाती है जिसे आदमी किसी को बताने में शर्माता है, लेकिन यह बीमारी शरीर को धीरे-धीरे खोखला कर देती है।
बंग भस्म गुण और उपयोग (Bang Bhasm ka Gun Aur upyog)
बंग भस्म पर प्रमेह, धातुक्षीणता, बहुमूत्र, वीर्यस्राव, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन नपुंसकता, कास, श्वास, रक्तपित्त, पाण्डु, कृमि, मंदाग्नि, क्षय आदि रोगों को नष्ट करता है। यह उस दीपक, पाचन, रुचिकर, बल वीर्य वर्धक, वातघ्न और किंचित पित्त कारक है। स्त्रियों के गर्भाशय के दोष, अत्यार्तव, कष्टार्तव तथा बंधत्व दूर करने में भी यह बहुत गुणकारी है। उपदंश और सुजाक से दूषित शुक्र को शुद्ध कर संतान उत्पादन के योग्य बनाता है। पुराने रक्त और त्वचा के दोष भी इसके सेवन से दूर हो जाते हैं। सब प्रकार के प्रमेह विशेषत: शुक्रमेह में बंग भस्म का प्रयोग अत्यंत लाभदायक है।
बंग भस्म का प्रभाव शुक्र स्थान पर विशेष रूप से होता है। शुक्र की कमजोरी को दूर कर यह शक्ति प्रदान करता है। कमजोरी किसी भी कारण से क्यों न हो सभी में वातवाहिनी सिरा तथा मांसपेशियां शिथिल हो ही जाती हैं। इनमें शिथिलता आने का प्रधान कारण अधिक शुक्र का क्षरण होता है। जब मनुष्य प्राकृतिक (स्त्री सेवन से या अप्राकृतिक ढंग से हस्तमैथुनादि ) द्वारा शुक्र अधिक दुरुपयोग करता है तब वातवाहिनी सिरा तथा मांसपेशियां कमजोर होकर शुक्र धारण करने में असमर्थ हो जाती हैं। जिसका फल यह होता है कि स्त्री प्रसंग आदि विषयक विचार मन में आते ही या किसी नवयुवती अथवा अश्लील तस्वीर आदि को देखने मात्र से शुक्रस्राव होने लगता है। ऐसी दशा में बंग भस्म का सेवन करना अच्छा है, क्योंकि यह बातवाहिनी तथा मांशपेशी की कमजोरी दूर कर कर्मेंद्रिय में सख्ती पैदा करके, शुक्र को भी गाड़ा कर देता है, जिससे उपरोक्त दोष अपने आप दूर हो जाते हैं।
स्वप्नदोष तथा पेशाब में शुक्र आना (Swapndosh Tatha Peshab Me Shukra Aana)
यह बीमारी प्रायः पित्त प्रकृति वालों को विशेष होती है। इसके अतिरिक्त अन्य प्रकृति वालों को जो खटाई, मिठाई आदि पदार्थों का अधिक सेवन करते हैं उन्हें भी यह बीमारी हो जाती है। इन पदार्थों के सेवन करने से पित्त कुपित होकर रक्त वाहिनी शिरा में हलचल पैदा कर देता है, जिससे मन चंचल हो जाता है और उसके कारण मन में अनेक विचार और भावनाएं पैदा होने लगती हैं। यही विचार या भावना सपने की अवस्था में भी बने रहने के कारण क्षणिक उत्तेजना होकर स्वप्नदोष हो जाता है। ऐसी हालत में बंग भस्म से बढ़कर और कोई दवा नहीं है, क्योंकि शास्त्र में लिखा है कि जो वीर्य रोगी बंग भस्म का सेवन करता है उसे स्वप्न में भी शुक्रस्राव नहीं होता है।
वैसे तो सब प्रकार के प्रमेह पर बंग भस्म का उपयोग करने के लिए शास्त्रकारों ने लिखा है किंतु अनुभव से यह बात जानी गई है कि वंग भस्म जैसा कफ प्रमेह अच्छा और शीघ्र काम करता है वैसा अन्य व्याधियों में नहीं करता है। विशेषतया शुक्रपात या शुक्रक्षय पर बहुत जल्दी यह असर दिखाता है।
बार बार पेशाब का होना (Bar-Bar Peshab Ka Hona)
मूत्रपिंड, मूत्राशय या मूत्रवह स्रोतों पर भी इसका असर बहुत जल्दी होता है। शरीर में जब रस, रक्त आदि धातुओं का बनना कम हो जाता है, जिससे शरीर के सब अवयव कमजोर होने लगते हैं और शरीर में जलीय भाग की वृद्धि होने लगती है, तब पेशाब करने के लिए बार-बार जाना पड़ता है। इसकी मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि दिन रात में 20 से 25 बार पेशाब होने लगता है। ऐसी हालत में बंग भस्म का प्रयोग अमृत के समान गुणकारी है, क्योंकि यह मुत्राषय तथा मूत्रबहा नाडी आदि को शक्ति प्रदान कर मूत्राशय में धारण शक्ति उत्पन्न कर देता है, जिससे पेशाब की मात्रा कम हो जाती है और रस-रक्त आदि धातु भी पुष्ट जाती है।
यदि विशेष शुक्रपात के कारण शरीर कमजोर हो गया हो, तो बंग भस्म का उपयोग बहुत लाभ होता है। क्योंकि शुक्रदोष के कारण जो रोग होते हैं उनमें बंग भस्म का प्रयोग करने से वह सर्व प्रथम शुक्र विकार को दूर कर फिर अन्य कार्य करता है। अतः इस रोग में बंग भस्म का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
विशेष शुक्रपात होने की वजह से जो मंदाग्नि हो जाती है, उसने भी बंग भस्म बहुत लाभ करता है। इसमें एकाएक अन्न पर अरुचि और भूख बिल्कुल बंद हो जाती है तथा मुंह का जायका स्वाद भी तीता हो जाता है। इन लक्षणों के उत्पन्न होने पर बंग भस्म के सेवन से बहुत फायदा होता है, क्योंकि बंग भस्म दीपन, पाचन और अग्नि दीपक भी है। अन्य अग्नि दीपक पदार्थ (शंख-कौड़ी-भस्म) चित्रक, हींग आदि की तरह पाचक पित्त को बढ़ाकर अग्नि दीप्त नहीं करता किंतु इसका कार्य प्रथम शुक्र स्थान पर होता है। अतः शुक्र दोषों को दूर कर उसे पुष्ट बनाकर शरीर के अवयवों को बलवान बनाता और जठराग्नि को भी प्रदीप्त करता है।
नपुंसकता मैं बंग भस्म का उपयोग (Napunsakta Me Bang Bhasm ka Upyog)
अधिक स्वप्नदोष या हस्तमैथुन आदि के कारण वातवाहिनी और मांसपेशियां कमजोर हो जाने की वजह से शरीर में शुक्र नहीं रह पाता, जिससे मनुष्य कामवासना से वंचित रह जाता है। ऐसी हालत में बंग भस्म का प्रयोग अति लाभदायक है।
स्त्री रोग में बंग भस्म का उपयोग (Stri Rog Me Bang Bhasm ka Upyog)
प्रदर रोग विशेष मात्रा में बढ़ गया हो अथवा स्त्रियों के डिंबकोष कमजोर हो जाने से बीज धारण शक्ति का ह्रास हो गया हो, बीजधारक शक्ति की कमजोरी के कारण स्त्रियों में गर्भ उत्पन्न करने वाले बीज (आर्तव) की उत्पत्ति न होती हो या उपरोक्त कारणों की वजह से शरीर ज्यादा कमजोर हो गया हो तो ऐसी स्थिति में बंग भस्म अच्छा काम करता है, क्योंकि बंग भस्म का असर गर्भाशय और रजोविकार पर होता है, जिससे उपरोक्त दोष नष्ट होकर शरीर बलवान हो जाता है।
स्त्रियों के कमर दर्द में बंग भस्म (Striyon ke Kamar Dard Me Bang Bhasm ka Upyog)
किसी-किसी स्त्री को रजोदर्शन काल में कमर तथा बस्ती प्रदेश में दर्द होने लगता है। यह दर्द अन्य दर्दों के समान नहीं होता। फिर भी नसों में दर्द होने की वजह से पीड़ा का अनुभव होता है। इस दर्द के कारण मासिक धर्म खुलकर न होकर रज:स्राव थोड़ा-थोड़ा और रुक रुक कर होने लगता है, तथा मासिक धर्म के संचित होने पर भी बंग भस्म बहुत फायदा करता है।
स्वप्नदोष व शुक्राविकार का इलाज (Swapnadosh tatha Shukra Vikar ka ilaaj)
शुक्र पतला होकर निकल जाने से मनुष्य शक्तिहीन हो जाता है। इसका असर दिमाग पर भी पड़ता है। जिसकी वजह से मन में अनेक दुर्भावनायें पैदा होती हैं और इसी कारण स्वप्नदोष आदि विकार भी उत्पन्न हो जाते हैं। इस रोग में बंग भस्म 2 रत्ती, गिलोय का सत्व 4 रत्ती, शिलाजीत 2 रत्ती में मक्खन-मिश्री के साथ देने से यह रोग नष्ट हो जाता है। इससे शुक्र और शुक्रस्थान दोनों पुष्ट हो जाते हैं और इनके पुष्ट होने से रस-रक्तादि धातु पुष्ट होकर शरीर बलवान हो जाता है।
नॉट : इस दवा को प्रयोग करने से पहले किसी वैद्य से जरूर संपर्क करें।
साभार : आयुर्वेद सार संग्रह