Jivan Bhar Nirog Kaise Rahen

संयम अर्थात धीरे की रक्षा। वीर्य की रक्षा को संयम कहते हैं। संयम  मनुष्य की तंदुरुस्ती व शक्ति की सच्ची नींव है। इससे शरीर सब प्रकार की बीमारियों से बच सकता है। संयम पालन से आंखों की रोशनी वृद्धावस्था में भी बनी रहती है। इससे पाचन क्रिया एवं याद शक्ति बढ़ती है। ब्रह्मचर्य-संयम मनुष्य के चेहरे को सुंदर व शरीर को सुदृढ़ बनाने में चमत्कारिक काम करता है। ब्रह्मचर्य संयम के पालन से दांत वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं।

ब्रह्मचर्य के प्रमुख लाभ (Major Benefits of Brahmacharya)

 ब्रम्हचर्य में कितनी ताकत है? ब्रह्मचर्य से दिमाग और शरीर कैसा रहता है ? संक्षेप में, वीर्य की रक्षा से मनुष्य का आरोग्य व शक्ति सदा के लिए टीके रहते हैं। मैं मानता हूं कि केवल वीर्य ही शरीर का अनमोल आभूषण है। वीर्य ही शक्ति है, वीर्य ही ताकत है, वीर्य ही सुंदरता है। शरीर में वीर्य की ही प्रधान वस्तु है। 

वीर्य ही आंखों का तेज है, वीर्य ही ज्ञान है, वीर्य ही प्रकाश है, अर्थात मनुष्य में जो कुछ दिखाई देता है वह शब्द वीर्य से पैदा होता है। अतः वह प्रधान वस्तु है। वीर्य एक ऐसा तत्व है जो शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करके शरीर को सुंदर व सुदृढ़ बनाता है। वीर्य से ही नेत्रों में तेज उत्पन्न होता है। इससे मनुष्य ईश्वर द्वारा निर्मित जगत की प्रत्येक वस्तु देख सकता है। 

वीर्य ही आनंद है, प्रमोद का सागर है। जिस मनुष्य में वीर्य का खजाना है वह दुनिया के सारे आनंद प्रमोद मना सकता है और 100 वर्ष तक जी सकता है। इसके विपरीत जो मनुष्य आवश्यकता से अधिक वीर्य खर्च करता है, वह अपना ही नाश करता है और जीवन बर्बाद करता है। जो लोग इसकी रक्षा करते हैं वह समस्त शारीरिक दुखों से बच जाते हैं, समस्त बीमारियों से दूर रहते हैं। 

युवावस्था में ब्रह्मचर्य की उपयोगिता (Use of celibacy in youth)

जब तक शरीर में वीर्य होता है तब तक शत्रु की ताकत नहीं है कि वह भिड़ सके, रोग दबा नहीं सकता, चोर डाकू भी ऐसे वीर्यवान से डरते हैं। प्राणी एवं पक्षी उससे दूर भागते हैं। शेर में भी इतनी हिम्मत नहीं कि वीर्यवान व्यक्ति का सामना कर सके। ब्रह्मचारी सिंह समान हिंसक प्राणी को कान से पकड़ सकते हैं। वीर्य की रक्षा से ही परशुराम जी ने क्षत्रियों का कई बार संघार किया था। 

ब्रह्मचर्य पालन के प्रताप से हनुमान जी समुद्र पार करके लंका जा सके और सीता जी का समाचार ला सके। ब्रह्मचर्य के प्रताप से भीष्म  पितामह अपने अंतिम समय में कई महीनों तक बाणों की शैया पर सो सके एवं अर्जुन से बाणो के तकिए की मांग कर सकें। वीर्य की रक्षा से लक्ष्मण जी ने मेघनाथ को हराया और ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही भारत के मुकुट मणि महर्षि दयानंद सरस्वती ने दुनिया पर विजय प्राप्त की। 

इस विषय में कितना लिखें, दुनिया में जितने भी सुधारक, ऋषि-मुनि, महात्मा, योगी व संत हो गए हैं, उन सभी ने ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही लोगों के दिल जीत लिए हैं। अतः वीर्य की रक्षा ही जीवन है और वीर्य को गवाना ही मौत है। 

परंतु आजकल के नव युवकों एवं युवतियों की हालत देखकर अफसोस होता है कि भाग्य से ही कोई विरला युवान ऐसा होगा जो वीर्य रक्षा को ध्यान में रखकर केवल प्रजोत्पत्ति के लिए अपनी पत्नी के साथ समागम करता होगा। इसके विपरीत, आजकल के युवान जवानी के जोश में बल और आरोग्य की परवाह किए बिना विषय भोगों में बहादुरी मानते हैं। उन्हें मैं नामर्द ही कहूंगा। 

“ब्रह्मचर्यका क्या महत्व है?” (Importance of Celibacy)

जो युवान अपनी वासना के वश हो जाते हैं, ऐसे युवान दुनिया में जीने के लायक ही नहीं है। वह केवल कुछ दिन के मेहमान हैं। ऐसे युवाओं के आहार की ओर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि केक, बिस्कुट, अंडे, आइसक्रीम, शराब आदि उनके प्रिय व्यंजन होंगे, जो वीर्य को पतला, क्षीण करके शरीर को मृतक बनाने वाली वस्तुएं हैं। ऐसी चीजों का उपयोग वे खुशी से करते हैं और अपनी तंदुरुस्ती की जड़ खुद काटते हैं। 

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आज से 20 25 वर्ष पहले छोटे बड़े युवान-वृद्ध, पुरुष स्त्रियों सभी दूध, दही, मक्खन तथा घी खाना पसंद करते थे, परंतु आजकल के युवान एवं युवतियां दूध के प्रति अरुचि व्यक्त करते हैं। साथ ही केक, बिस्कुट, चाय, काफी या जो तंदुरुस्ती को बर्बाद करने वाली चीजें हैं उनका ही सेवन करते हैं। यह देखकर विचार आता है कि ऐसे स्त्री पुरुष समाज को श्रेष्ठ संतान कैसे दे सकेंगे। निरोगी माता-पिता की संतान ही निरोगी पैदा होती है। 

“ब्रह्मचर्य के लिए भोजन” (Food for celibacy)

मित्रों ! जरा रुको और समझदारी पूर्वक विचार करो कि हमारे स्वास्थ्य तथा बल की रक्षा कैसे होगी ? इस दुनिया में जन्म लेकर जिसने ऐश-आराम की जिंदगी गुजारी उसका तो दुनिया में आना ही व्यर्थ है। मेरा नम्र निवेदन है कि प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि दुनिया में आकर दीर्घायु भोगने के लिए अपने स्वास्थ्य व बल की सुरक्षा का प्रयास करें तथा शरीर को सुदृढ़ व मजबूत रखने के लिए दूध, घी, मक्खन और मलाई युक्त सात्विक आहार के सेवन का आग्रह रखें। 

स्वास्थ्य की संभाल व ब्रह्मचर्य के पालन हेतु आंवले का चूर्ण और मिश्री के मिश्रण को पानी में मिलाकर पीने से बहुत लाभ होता है। इस मिश्रण व दूध के सेवन के बीच 2 घंटे का अंतर होना चाहिए। अध्यात्मिक व बौद्धिक विकास की नीव ब्रह्मचर्य है। अतः परमात्मा को प्रार्थना करें कि वह सद्बुद्धि दें। वह सन्मार्ग की ओर मोड़ें। वीर्य शरीर में फौज के सेनानायक की नाई कार्य करता है जबकि दूसरे अवयव सैनिकों की नाई फर्ज निभाते हैं। जैसे सेनानायक की मृत्यु होने पर सैनिकों की दुर्दशा हो जाती है वैसे ही वीर्य का नाश होने से शरीर निस्तेज हो जाता है। 

शास्त्रों ने शरीर को परमात्मा का घर बताया है। अतः उसे पवित्र रखना प्रत्येक स्त्री पुरुष का पवित्र कर्तव्य है। ब्रह्मचर्य का पालन वही कर सकता है जिसका मन और इंद्रियों पर नियंत्रण होता है। फिर वह चाहे गृहस्थी हो या त्यागी। 

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आधुनिक नव युवकों की हालत देखकर अफसोस होता है कि उन्होंने हमारे महापुरुषों के नाम पर कलंक लगाया है। वह इतने आलसी व सुस्त हो गए हैं कि 1 से 2 मील चलने में भी उन्हें थकान लगती है। वह बहुत ही डरपोक और कायर हो गए हैं। 

“ब्रह्मचर्य की प्रचण्ड शक्ति” (The Tremendous Power of Celibacy)

मैं सोचता हूं कि भारत के वीरो को यह क्या हो गया है। ऐसे कार्यहीन  व निष्क्रिय क्यों हो गए हैं। ऐसे डरपोक क्यों हो गए हैं। क्या हिमालय के पहाड़ी वातावरण में पहले जैसा प्रभाव नहीं रहा ? क्या भारत की मिट्टी में वह प्रभाव नहीं रहा कि वह उत्तम अन्न पैदा कर सके ?स्वादिष्ट, सुंदर, फल-फूल पैदा कर सके ? क्या गंगा मैया ने अपने जल में से अमृत खींच लिया है ? नहीं, यह सब तो पूर्वक ही है तो फिर किस कारण से हमारी शक्ति व शूरवीरता नष्ट हो गई है। भीम और अर्जुन जैसी विभूतियां हम क्यों पैदा नहीं कर पाते ?

मैं मानता हूं कि हमारे में शक्ति, शौर्य, आरोग्य व बहादुरी सब कुछ विद्यमान है, परंतु कुदरत के नियमों पर अमल हम नहीं कर रहे हैं। इसके विपरीत हम कुदरत के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं व प्रतिपल भोग विलास तथा शरीर के बाह्य दिखावे को सजाने में मग्न रहते हैं और अपने आरोग्य के विषय में तो जरा भी नहीं सोचते हैं। 

संभोग प्रजोत्पत्ति का कार्य है। तो कैसी प्रजा उत्पन्न करोगे। 

एक कवि ने कहा है :

जननी जने तो भक्तजन या दाता या शूर। 

नहीं तो रहना बाझ ही, मत गवाना नूर।। 

आज के जमाने में संभोग को भोग-विलास का एक साधन ही मान लिया गया है। जिन लोगों ने इस पवित्र कार्य को मौज-मजा व भोग-विलास का साधन बना रखा है, वह लोग मनुष्य कहलाने के लायक भी नहीं रहे। संयमी जीवन से ही दुनिया में महापुरुष, महात्मा, योगी, संत, पैगंबर व मुनिजन उन्नति के शिखर पर पहुंच सके हैं। भोले-भटके हुए लोगों को उन्होंने अपनी पवित्र वाणी व प्रवचनों से सत्य का मार्ग दिखाया है।

वर्तमान परिस्थितियों में भारतवर्ष में ब्रह्मचारियों की विशेष आवश्यकता है। आज हमारी शारीरिक स्थिति दया के योग्य है। हमारा कर्तव्य है कि हम शीघ्र सावधान होकर ब्रह्मचर्य के सिद्धांतों को अपना लें और परमात्मा की भक्ति के द्वारा प्रतिष्ठामय दिव्य जीवन व्यतीत करें।  

– ब्रह्मनिष्ठ संत श्री लीलाशाहजी महाराज

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