समझ में नहीं आता इसे फिल्म इंडस्ट्री कहें है या अंग प्रदर्शन का अड्डा। बिना जांघ और टांग दिखाएं इनकी कोई फिल्म चलती हीं नहीं है। अभिनेत्रियों के अंग प्रदर्शनो से साफ जाहिर होता है कि न तो फिल्मों की स्टोरी में दम होता है और न तो इनके अभिनय में दम होता है, इसलिए अभिनेत्रियों के जांघ और टांग को परोसा जाता है। और क्या-क्या परोसा जाता है बताना उचित नहीं समझता हूँ। फिल्म इंडस्ट्री में पैसे के लिए अंग प्रदर्शन किया जाता है। स्त्री अंगों को खूब जूम करके और स्लो मोशन में दिखाया जाता है। बॉलीवुड के अभिनेत्रियों को लगता है कि हम तो बहुत हॉट हैं। उनको यह नहीं पता कि उनके जांघ और टांग को कैसे फिल्मों में दिखाया जाता है।जैसे शेर को नॉनवेज पसंद है वैसे ही लोगों के सामने अभिनेत्रियों के जान और टांग को नॉनवेज के रूप में परोसा जाता है
कला के नाम पर अंग प्रदर्शन (kala Ke Naam per Ang Pradarshan)
फिल्मों की टिकट 300 की है। उसकी न कहानी में दम है, न पटकथा में दम है, न कोई उसमे संदेश है, न उनमें गहराई है, न निर्देशन में बारीकी है, तो आप पिक्चर देखने जाओगे ही क्यों ? दो चीजें उसमें होती हैं – एनिमेशन और नंगापन। एनिमेशन ऐसी चीज है कि वह सामान्य है, हर कोई कर लेता है। तो फिर नंगापन खूब करते हैं कि आओ-आओ देखो इससे आगे और दिखाएंगे। जिस आदमी को जीवन जीने की समझ नहीं है, वह जीवन में न मुक्ति मांगता है न आनंद मांगता है। वह क्या मांगता है ? सुख मांगता है और सुख मिलता है पैसे से, और पैसा पाने के लिए अगर अंग प्रदर्शन करना पड़े तो व्यक्ति कहता है – इसमें बुराई क्या है ?
फिल्म इंडस्ट्री तो पूरे देश को तबाह कर रखा है। इन्होंने नग्नता का प्रदर्शन करके, जिस्म को नुमाइश का एक वस्तु बना दिया है और वह भी सिर्फ पैसा कमाने के लिए। पैसा कमाने के लिए आज हमारे बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में स्त्रियों का खूब अंग प्रदर्शन किया जा रहा है। यह काम हमारे देश के पढ़े-लिखे होशियार निर्माता-निर्देशक, पटकथा लेखक कर रहे हैं। हमारे देश का कोई भी नेता या अभिनेता इस पर आक्षेप नहीं उठाता है।
एक युवा स्त्री अपने शरीर का अंग प्रदर्शन करती है तो लोग उसकी तरफ आकर्षित होते हैं। बात बस इतनी सी है। दूसरी बात है कि यह केवल भारत की फिल्म इंडस्ट्री में नहीं है बल्कि दुनिया भर की फिल्म इंडस्ट्री में है। हर जगह अभिनेत्रियां यही कर रही हैं। अभिनेता भी अपना जिस्म दिखाने के लिए बनाता है। इससे तो एक बात साफ है कि यह सारी चीज इंद्रियों को आकर्षक लगता है। इस तरह की तस्वीरें देखकर आदमी आकर्षित होता है। इसलिए उनकी मांग बढ़ती है, उससे उनकी बिक्री बढ़ती है। फिल्म इंडस्ट्री में नग्नता कोई आज से नहीं है यह तो 80 साल से चल रहा है। दुनिया का अधिकांश पैसा पुरुष के हाथ में है। 97% वेल्थ पुरुष के हाथ में है तो पुरुष से पैसा निकलवाने के लिए स्त्री अपना देह दिखाती है। बात इतना सा है । वह शरीर दिखाती है। लोग फिल्म देखने जाते हैं उसे पैसा मिल जाता है।
आप पैसा देकर क्या देखते हैं ? (Aap Paisa dekar Kya Dekhte Hain)
आप नग्न स्त्री शरीरों को पैसा दे-दे कर देखते हो। इंटरनेट का सबसे ज्यादा ट्रैफिक इसी में जाता है। फिल्म इंडस्ट्री की फिल्में चलना बंद हो जाए अगर उसमें नग्नता न हो। फिल्मों का सारा आकर्षण तो नग्नता के कारण है। छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियों से पूछो आजकल कौन सी एक्ट्रेस सबसे हॉट है तो वह खट से बता देंगे। टाउन हॉट, स्टेट हॉट, कंट्री हॉट इन्हीं अलंकारों से तो मीडिया उनको घोषित करती है। आज हमारे देश में एक से एक घटिया पिक्चर बन रही है और इन घटिया फिल्मों को देखने के लिए मध्यम वर्ग के लोग सबसे ज्यादे देखने जाते हैं। अदानी और अंबानी के घर के लोग फिल्म देखने थोड़े जाते हैं। यही मीडियम क्लास के लोग वहां से घटिया संस्कार भी अपने अंदर भरकर लाते हैं ।
आप किस को अपना आदर्श मानते हो ? (Aap Kisko Apna Adarsh Mante Ho)
जिस फ़िल्मी दृश्य को देखकर तुम कहते हो कि क्या हीरो है। क्या नायक है ? तो उसमें नायकत होना भी तो चाहिए। उसमे हीरोपना होना भी तो चाहिए। पर देखो तुम्हारा हीरो वास्तव में कौन है? एक लुच्चा, गौर से देखना जिनको तुम हीरो कहते हो ! वह क्या है ? हीरो एक पवित्र शब्द है। कोई ऐसे हीरो नहीं हो जाता है। नायक का मतलब होता है वह जो तुम्हारा नेतृत्व कर सके। नायक का मतलब होता है ? वह, जिसे तुम अपना आदर्श मानते हो। जिसे एक आदर्श की तरह देख सको। देखो ! फ़िल्मी पिक्चरों में कौन नायक बना बैठा है। उसको हम नायक मानते हैं। हम उसका अनुकरण भी कर लेते हैं, चाहे वह कितना भी घटिया से घटिया आदर्श सामने रखे।
फिल्म इंडस्ट्री के निर्माता निर्देशक और पटकथा लेखक और नायक समाज को क्या दे रहे हैं। और अभिनेत्रियों का तो कहना ही क्या वह तो अपना जिस्म ही बेच रही है। गिरा से गिरा आदर्श जो हो सकता है वह तुम्हारे सामने रखा जा रहा है और तुम अपनी बेहोशी में उसको देखे जा रहे हो। कौन है तुम्हारा नायक ?
हमारी बर्बादी का कारण कौन है ? (Hamari barbadi ka Karan kaun hai)
तुम्हें बर्बाद करने में अगर किसी एक चीज का योगदान है तो वह है सिनेमा और टीवी। आज जो हमारे शरीर में चेतना है, वह चेतना हमारी है ही नहीं। वह सारी चेतना फिल्मी हो गई है। हम सबने बहुत कुछ सीख रखा है, हमारी बहुत सारी धारणाएं हैं और वह सारी धारणाएं टीवी और सिनेमा से आई हैं। तुम भले ही शिष्य नहीं मानो लेकिन तुमने बहुत सारे गुरु बना रखे हैं। तुम्हारे गुरु यही सब है जो फिल्मों के पदों पर नजर आते हैं। पटकथा लेखक, निर्माता निर्देशक और यह फिल्मी कलाकार। यही सब तुम्हारे गुरु हैं। इन एक्टरों को कलाकार कहना भी बेवकूफी है। इसमें से अधिकांश तो जिस्म के सौदागर हैं। अधिकांश इसलिए प्रसिद्ध नहीं है कि उनको अभिनय की कला आती है। उनमें से अधिकांश तो ऐसे हैं कि उन्होंने अपना जिस्म कामुकता की दृष्टि से उत्तेजक बना रखा है। अगर बात सिर्फ अभिनय कला की होती तो उनमें से बहुत सारे ऐसे हैं, जो कहीं नजर नहीं आते। जिनको तुम अपनी भावनाएं बोलते हो वह वास्तव में फिल्मों ने दिए हैं। तुम उन भावनाओं को लिए फिरते हो और उन भावनाओं को पोषण देते हो और उन्हीं भावनाओं को जीते हो और मरते हो। यहां तक कि जो तुम्हारे चेहरे के भाव हैं वह भी तुम्हारे नहीं हैं। यह सब तुमने फिल्मों से सीखे हैं।
अध्यात्म का सबसे बड़ा दुश्मन है सिनेमा। हमारी संस्कृति का सबसे बड़ा वाहक है आज का सिनेमा। यह मत कहना कि सिनेमा समाज का दर्पण है और सिनेमा वही दिखा रहा है जो समाज में चल रहा है। यह बिल्कुल गलत बात है। समाज में और भी बहुत कुछ मौजूद है उसे नहीं दिखाया जाता है। सिनेमा भले ही वह सब चीजें दिखाता हो जो समाज में मौजूद है, लेकिन सिनेमा उनमें से कुछ चीजें चुन-चुन कर दिखाता है जो तुम्हें उत्तेजित और आकर्षित करता है।
समाज में तो संत भी हैं। बताओ संतो पर कितनी पिक्चर बनती हैं। जो लोग कहते हैं कि सिनेमा बुरा नहीं है, समाज बुरा है। सिनेमा तो वही दिखा रहा है जो समाज में चल रहा है। समाज में क्या कबीर और रैदास नहीं है। बॉलीवुड की पिक्चरों में कबीर और रैदास का जिक्र कितनी बार आता है। एक बार भी नहीं आता है।
श्रद्धा सबसे ऊंची चीज है, तुम्हारे नायक-नायिकाओं में से कोई भी ऐसा है जो श्रद्धालु का किरदार अदा कर सके, क्या उनमे ऐसी खूब है, जिसे तुमने अपना हीरो बना रखा है। समाज का अधिकांश गंदगी सिनेमाघरों से से आ रहा है। बहुत सारे हीरो-हीरोइंस तो ऐसे हैं जो कोई ढंग का किरदार अदा ही नहीं कर सकते। मुझे बताओ ? आज के कलाकारों में ऐसा कौन है जो कबीर दास या रैदास का किरदार निभा सकता है। कम से कम तुम्हारे टॉप के जो हीरो हैं उनमें से तो कोई भी नहीं है। कबीर साहब का किरदार निभाने के लिए कबीर की समझ भी तो होनी चाहिए।
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