panddokhar sarkar dham

बिशनपुरा ग्राम में ही खेतों के बीच में एक चबूतरे पर श्री हनुमान जी का मंदिर है। जिसमें हनुमान लला की सखी मुद्रा (नृत्य मुद्रा) में दक्षिण मुखी प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। उसी समय इस प्रतिमा के चारों ओर एक विशालकाय अजगर को लिपटे हुए यदा-कदा कुछ लोगों द्वारा देख लिया गया। जिसके कारण ग्रामवासी इस मंदिर में जाने से कतराने लगे। परिणाम स्वरूप हनुमान जी की प्रतिमा सिंदूर चोला से वंचित रहने लगी। यह बात जैसे ही बालक गुरुशरण (Gurusharan)को मालूम हुई वे जजमानी से निवृत हो छोटे भाई बहन वह चंद साथियों के साथ मंदिर परिसर में पहुंच गए। 

अपने हठीले स्वभाव के अनुरूप यह बाल-ब्रह्म अजगर के शिकंजे में नृत्य करते हनुमान जी को चोला श्रृंगार चढ़ाने की ठान लेते हैं। मंदिर परिसर में पहुंचकर बालक गुरु शरण मन ही मन हनुमान जी सरकार से प्रार्थना कर चोला श्रृंगार करने की आज्ञा लेते हैं और विशालकाय अजगर से निडर हो जगह छोड़ देने की विनती करते हैं। भयभीत सखा यह सब देखकर हैरत में पड़ जाते हैं कि वह भयंकर कालरुपी विशाल सर्प बड़े आराम से रेंगते हुए अचानक स्थान छोड़कर लुप्त हो जाता है। अजगर द्वारा हनुमान जी महाराज की प्रतिमा को मुक्त कर स्थान छोड़ते ही संगी साथी प्रसन्नता से झूम उठते हैं और बालक गुरुशरण दान में प्राप्त घी-सिंदूर से सखी हनुमान को तन्मयता पूर्वक श्रृंगारित कर देते हैं। इसके बाद तो लगभग प्रतिदिन ही दान में प्राप्त घी से चोला चढ़ाने का उनका क्रम बन गया था। 

एक बार की बात है बालक गुरु शरण दान आदि में प्राप्त सीधा सामग्री लेकर बिशनपुरा से मंदिर की ओर लौट रहे थे, रास्ते में इनसे बड़ी आयु के अन्य बच्चों ने उनका रास्ता रोक कर दान में प्राप्त सामग्री छीन ली और भाग गए। इस घटना से विचलित हो बालक गुरुशरण उदास हो जाते हैं और दुखित होकर सोचने लगते हैं कि अब बिना घी या तेल के हनुमान जी की श्रृंगार सेवा कैसे करूं। बाल मन से अचानक निर्णय लिया और घर में उजाला करने हेतु बनाई गई मिट्टी तेल (केरोसिन) की शीशी उठा लाते हैं और केरोसीन में ही सिंदूर मिलाकर हनुमान जी सरकार को चोला चढ़ा देते हैं। नित्य नियम को भंग न करते हुए दुष्परिणामों से बेखबर आखिर उन्होंने हनुमान जी का चोला श्रृंगार कर अपने आराध्य की सेवा पूरी की। 

श्री हाथीवान एवं पागल दास के कृपा पात्र : श्री गुरु चरण जी महाराज चुकी माता पिता के योग्य संस्कारों की छाया में श्री बालाजी (सूर्यबाला शिवबाला) का संरक्षण गुरु शरण को प्राप्त था तो निश्चित ही नाम के रूप में भक्ति भाव भरा पड़ा था। पिता जब भी अपने पैतृक गांव पर आ जाते तो पुत्र गुरुशरण को अपने साथ लेकर हाथीवान महाराज के सिद्ध धाम एवं गढ़ी पर पूज्य पागल दास जी महाराज की समाधि के दर्शन हेतु अवश्य जाते थे। 

उल्लेखनीय है कि बरहा ग्राम भौतिक अथवा प्रशासकीय दृष्टि से भले ही पिछड़ा हो परंतु यहां स्थित श्री हाथीवान महाराज एवं श्री सिद्ध समाधि वाले पागल दास जी महाराज की साक्षात कृपा से धन-धान्य से संपन्न ग्राम है। यहां के बीहड़ में इतिहास के कारण शायद ही इस ग्राम का कोई ऐसा घर हो जिसमें स्वीकृत शस्त्र न हो। पूज्य पागल दास जी महाराज सिद्ध संत एवं परमहंस थे, जिन्होंने अपनी अध्यात्मिक आत्मशांति के लिए यहां जनमानस के समक्ष घोषणा कर जीवंत समाधि प्राप्त की थी। वहीं दूसरी ओर श्री हाथीवान महाराज जो स्वयं मालवा के राजा थे, जिनका उल्लेख अल्लाह में पीरु राजा के रूप में मिलता है उन्होंने भी अपने वाहन हाथी और साथियों सहित यहां जीवित समाधि प्राप्त की थी। उल्लेखनीय है कि श्री हाथीवान महाराज की सेना में जहां उनका सफेद हाथी पर नेतृत्व सिंहासन होता, वहीं हाथी के मस्तक पर हनुमंत रूप वानर सवार अपने हाथ में धर्म ध्वजा लिए रहता था। ऐसी सिद्धआत्माओं के समाधि स्थल की निरंतर सेवा के परिणाम स्वरूप ही आपके पूर्वजों पर सिद्ध शक्तियों की विशेष कृपा दृष्टि रही है। ऐसे ही कृपा प्राप्त संस्कारों के कारण बालक गुरु हनुमान भक्ति में बचपन से ही रम गए थे। 

– साभार : पंडोखर सरकार (अमूल्य रहस्य) 

FAQ.

  1. पंडोखर सरकार का चमत्कार (Miracle of Pandokhar Sarkar)
  2. पंडोखर सरकार का रहस्य (Pandokhar Sarkar Dham ka Rahashya)
  3. पंडोखर सरकार की सच्चाई (Pandokhar Sarkar ki Sachchai)
  4. पंडोखर सरकार दतिया (म0प्र0) जिले में है (Pandokhar Sarkar kis Jile Me Hai)
  5. पंडोखर सरकार धाम (Pandokhar Sarkar Dham)
  6. पंडोखर धाम जाने का रास्ता (Pandokhar Dham Jane Ki Rasta)

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