धरती पर अनेकों ऐसे स्त्री-पुरुष मिलेंगे जिनके अंदर इतना आकर्षण होता है कि कोई भी व्यक्ति उनके तरफ खिंचा चला जाता है। आखिर यह सब क्यों होता है ? क्यों व्यक्ति आत्म नियंत्रण खोकर दूसरे के वशीभूत हो जाता है। कुछ लोग इसे जादू टोना भी मानते हैं, परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। हर मनुष्य में आकर्षण शक्ति अथवा चुंबकीय शक्ति होती है। इस शक्ति से ही वह किसी भी प्राणी को प्रभावित कर सकता है। यह सारा खेल अवचेतन मन की शक्ति से होता है। अवचेतन मन का मतलब क्या होता है? मनुष्य के दो मन होते हैं – चेतन और अवचेतन मन (Subconscious Mind)। चेतन मन को ऑब्जेक्टिव या कॉन्शियस माइंड भी कहते हैं, चेतन मन शरीर की आंतरिक क्रियाओं का संचालन करता है जबकि अवचेतन मन सब्जेक्टिव माइंड (सबकॉन्शियस माइंड) अव्यक्त है। यह सभी प्रतिबंधों से परे है। पल भर में कल्पना की उड़ान से यह मन कहीं का कहीं पहुंच जाता है। निद्रा अवस्था में आने वाले स्वप्नों के समय यह अवचेतन मन ही सक्रिय रहता है। इस मन की क्रियाशीलता से स्वप्न में हम हर असंभव कार्य को संभव करने के योग्य बन जाते हैं। चेतन मन शिथिल होकर निद्रा लीन हो जाता है किंतु अवचेतन मन (Subconscious Mind) सदैव जागता रहता है। हम सो जाते हैं लेकिन विचारों का मंथन नहीं रुकता, रक्त प्रवाह बराबर बना रहता है। सांस आती जाती रहती है कौन करता है यह सब ? अवचेतन मन।
अवचेतन मन की शक्ति को कैसे जागृत करें? Awaken the Subconscious Mind
अवचेतन मन (Subconscious Mind) में इतनी शक्ति है कि वह भूत, वर्तमान और भविष्य कहीं भी भ्रमण कर सकता है। कई बार हम ऐसे स्वपन देखते हैं जो हमारी पहुंच से सर्वथा दूर होते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि जो सपना देखते हैं वही आगे के दिनों में सत्य हो जाता है और हम रोमांचित हो उठते हैं। दरअसल, यह सब अवचेतन मन के द्वारा ही होता है। हमारे आगे के दिनों में भ्रमण कर स्वप्न के माध्यम से वह उनका अवलोकन करा देता है। अपने अवचेतन मन को और अधिक शक्तिशाली बना कर हम मनचाहे ढंग से भूत भविष्य और वर्तमान में भ्रमण कर वहां से सारी जानकारियां कर सकते हैं। अवचेतन मन (Subconscious Mind) को शक्तिशाली बनाने के लिए हमें शरीर में स्थित ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों की सुषुप्त शक्तियों को जागृत करना होगा। रेचक और कुंभक प्राणायाम से मन को शुद्ध कर सुषुम्ना नाड़ी के नीचे रहने वाली कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर मनुष्य सर्व शक्ति संपन्न हो सकता है। ऐसा होने पर इस ब्रह्मांड में उसके लिए कुछ भी हासिल करना असंभव नहीं रहता है।
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किसी भी सिद्धि को प्राप्त करने के लिए त्राटक के द्वारा मन को एकाग्र कीजिए। मस्तिष्क को विकार रहित बनाइए। एकाग्र मन ही जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है। मन का निर्विकार होना किसी भी साधना की पूर्णता की पहली शर्त है। निर्विकार मन और संपूर्ण प्राणशक्ति से यदि ओम का उच्चारण किसी दीवार के सामने किया जाए तो दीवार टुकड़े-टुकड़े हो सकती है। यह संभव है, लेकिन इसके लिए साधना की चरम दशा समाधि को प्राप्त करना होगा। मनुष्य में ईश्वरत्व भी है। अपने गुणों को सात्विक और विकार रहित बनाकर वह स्वयं ईश्वरतुल्य बन सकता है। कहा भी गया है “अहं ब्रम्हास्मि” अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ।
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