Sabari Mantra Ka Chamatkar

आंखें देखी शाबरी मंत्र का चमत्कार। Aankhon Dekhi Shabari Mantra Ka Chamatkar.

सिद्ध तांत्रिकों से मुलकत की कहानी। Siddh tantrikon Se Mulakat ki kahani.

क्या भारत में अभी भी मौजूद है सिद्ध तांत्रिक ? Kya Bharat Me Abhi Bhi Maujud Hai Sidhh Tantrik?


यदि आप यंत्र, तंत्र, मंत्र और भूत-प्रेत, पिशाच आदि को नहीं मानते हैं तो आप इस आर्टिकल को एक बार जरूर पढ़ें। आपको इसके बारे में सारी सच्चाई का पता चल जाएगा। यह सभी घटना पंडित अरुण कुमार शर्मा के आंखों के सामने हुआ है, जिसका सारा दृष्टांत सहित विवरण दिया जा रहा है। 

शिवा भारती एक उच्च कोटि की तांत्रिक साधिका थी। उनके साथ बिताए हुए बहुत सारी स्मृतियां है। जिसे मैं यहां विस्तार से वर्णन कर रहा हूं। एक बार मैं और शिवा भारती किले की बृजी पर रोज की तरह बैठ साबरी मंत्रों के विषय में चर्चा कर रहे थे। साबरी मंत्र के बराबर डाबरी मंत्र भी है। इन दोनों प्रकार के मंत्रों का सीधा संबंध प्रकृति के तमोगुण राज्य से है। भूत प्रेत, पिशाच – बेताल और हाकिनी, डाकिनी, शाकिनी आदि अपदेवता उसी तमोगुण राज्य के प्राणी हैं। साबरी और साबरी मंत्रों के आकर्षण के वशीभूत होकर वे अपदेवता साधक के संकल्प बल का आश्रय लेकर उसी के अनुसार कार्य संपन्न कर दिया करते हैं। बस मंत्र सिद्ध होना चाहिए और साथ ही संकल्प में दृढ़ता होनी चाहिए। इन्हीं दोनों पर निर्भर है सब कुछ। 

इतना कहकर शिवा भारती में गहरी नजरों से आकाश की ओर देखा। उस समय हल्की सी बारिश हो रही थी लेकिन कुछ देर बाद बारिश जब थम गया और आकाश में पक्षी इधर-उधर उड़ रहे थे, तो शिवा भारती ने मुझसे कहा कि पंडित जी आपको मैं एक चमत्कार दिखाना चाहती हूं। आकाश की ओर देखती हुई वह बोली। ऐसा कौन सा चमत्कार शिवा भारती दिखाना चाहती थी। मेरे समझ में नहीं आया। सिर हिलाकर मैंने हामी भर दी और कहा दिखाइए। वह देखो दूर आकाश में एक गिद्द उड़ रहा है। सांझ के धुँधलके में स्पष्ट सा दिखाई दिया। बहुत दूर आकाश में उड़ रहा था। 

बोला हाँ, उड़ तो रहा है। ध्यान से देखो उसकी ओर !

मैंने वैसा ही किया और ध्यान से अपलग नजरों से उस गिद्ध को देखने लगा। कुछ क्षण बाद उड़ता हुआ गिद्ध गायब हो गया। और लगभग 10-15 मिनट के बाद पंख फड़फड़ाता हुआ मेरे सामने आकर गिर पड़ा। 

यह क्या ? … एक बार घबरा गया मैं। कुछ समझ में नहीं आया कि यह कैसे, क्या हो गया। इस प्रकार चीखता चिल्लाता हुआ, कैसे मेरे पास चला आया। आकाश में इतनी दूर उड़ रहा था वह गिद्ध। मेरा आश्चर्य और कौतूहल देखकर शिवा भारती ने कहा कि पंडित जी यह साबरी मंत्र का चमत्कार है और कुछ नहीं। 

उसी की प्रबल शक्ति से इस गिद्ध को मैंने आकर्षित करके बुला लिया है। षट्कर्म के अंतर्गत जिसे आकर्षण कहते हैं वहीं आकर्षण क्रिया है यह। इसमें भी पैशाचिक  बल ही काम करता है। हतप्रभ सा मुंह बाये कभी मैं जमीन पर पड़े और हांफते हुए गिद्ध को देखता – तो कभी शिवा भारती के चेहरे की ओर देखता। उस समय मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं थी। 

उस घटना के लगभग 15-20 दिनों बाद शिवा भारती का एक और अलौकिक चमत्कार देखने को मिला। साईं काल का समय था। नित्य की तरह उस दिन भी हम चेत सिंह के किले की बुर्जी पर बैठकर भूत प्रेत और तंत्र मंत्र से संबंधित विषयों पर चर्चा कर रहे थे। उस दिन शिवा भारती ने हमें डामरी मंत्र का कौतुक दिखाने के लिए कहा। 

मैंने सोचा अभी तक तो साबरी मंत्र की शक्ति देखी ही है। उसी से मेरी हालत खराब हो गई है। मन प्राण दोनों कांप उठे। अब डामरी मंत्र के चमत्कार को देखकर मेरी क्या दशा होगी ? मैं सोचने लगा। 

शिवा भारती ने कहा इस किले की जो हालत तुम देख रहे हो। वह एक महान अघोरी संत के श्राप का फल है। उसने श्राप देते हुए कहा था कि इस किले में कबूतर बीट करेंगे और जहां जंगली कबूतर रहते हैं और बीट करते हैं। वहां जानते हो तरह-तरह के प्रेतों का वास होता है। अभिशप्त किले में हिंदू प्रेत तो है ही उनके अलावा मुसलमान और अंग्रेज प्रेत भी निवास करते हैं। कुछ ऐसी प्रेत आत्माएं हैं जो सर्प के रूप में यहां विचरण करती है। मगर एक बात जान लेनी चाहिए कि दोनों वर्गों के अपदेवताओं के शरीर अग्नि तत्व और वायु तत्व प्रधान होते हैं। पृथ्वी तत्व न रहने के कारण उन्हें स्थूल दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। उन्हें प्रकट करने के लिए किसी न किसी पार्थिव वस्तु को माध्यम बनाना आवश्यक होता है। 

प्रेतात्मा द्वारा कार्य सिद्धि (Pret Aatma Dwara Karya siddhi)

इतना कहकर शिवा भारती ने सामने पड़ी एक डंठल उठा ली। वह किसी पेड़ की डंठल थी। कुछ देर तक स्थिर दृष्टि से देखती रही। अचानक वह सुखी और पतली सी डंठल अपने आप जोर जोर से कांपने लगी। कुछ क्षण तक उस डंठल हाथ से पकड़ी रही। फिर उसे उन्होंने छोड़ दिया। जमीन पर गिरकर बराबर कांपती रही। 

यह देखकर मुझे घोर आश्चर्य हुआ। शिवा भारती ने कहा इस छोटी सी डंठल में इस किले में निवास करने वाली एक प्रेत आत्मा का वास हो गया है। यह प्रेतात्मा किसी अंग्रेज की है। यह सुनकर मैं दंग रह गया। 

शिवा भारती कहने लगी। इस लकड़ी में प्रविश्ट अंग्रेज की आत्मा को कहीं भी भेज कर कोई भी काम करा सकती हूँ। बोलो – तुम्हारा कोई काम है तो ?

मैंने बोला नहीं मेरा कोई काम नहीं है। मगर उसी समय याद आया मेरे एक मित्र थे उनके बड़े भाई को किसी कत्ल के मुकदमे में शत्रु बश फंसा दिया गया था। उन्हें आजीवन कारावास की सजा हो गई थी। उन्हे इस बात की आशा नहीं थी कि वे बेदाग छूट पाएंगे। सजा में कमी हो जाएगी मेरे मित्र धनी परिवार के थे और अमदाबाद में रहते थे। 

मैंने शिवा भारती से कहा – क्या मेरे बड़े भाई के मित्र की अपील की सुनवाई हो सकती हैं। क्या वह छूट जाएंगे। 

अभी तक वह सुखी और पतली सी लकड़ी अपनी जगह पर पहले की तरह कांप रही थी। 

शिवा भारती ने कहा क्यों नहीं, हो जायेगा। शिवा भारती ने कहा नाम बोलो !

नाम बतला दिया मैंने। उनको देखे हो ?  हां ! मैं देखा हूं। बातें भी की है। 

उनके स्वरूप का मन में ध्यान करो। मैंने वैसा ही किया आंखें बंद कर मन ही मन मित्र के बड़े भाई का ध्यान करने लगा। मगर जब आंख खुली तो देखा वहां अपने स्थान पर वह लकड़ी नहीं थी। वह गायब हो चुकी थी। 

एक महीने बाद सारा सत्य मेरे सामने आ गया। अपील स्वीकृत हो गई थी और मेरे मित्र के बड़े भाई बेदाग छूट गए थे। 

– पंडित अरुण कुमार शर्मा

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