प्रकृति का खेल निराला है। वह आपको इस दायरे से बाहर सोचने का मौका ही नहीं देती है कि आप धरती, आसमान से परे के बारे में सोच सको। उसका काम ही है आपको संसार के इस दलदल से बाहर न निकलने देना। लोग कहते हैं शादी दो आत्माओं का मिलन है लेकिन आत्माओं का मिलन होता तो फिर किसी का तलाक नहीं होता। शादी दो आत्माओं का मिलन नहीं बल्कि अंडाणु और शुक्राणु का मिलन होता है। शरीर के ये हमारे शत्रु अकेले रहना नहीं चाहते इसलिए स्त्री पुरुष की ओर पुरुष स्त्री की ओर आकर्षित हो जाते हैं। यह शरीर के अंडाणु और शुक्राणुओ का खेल है। जो आपके दिमाग को मैनिपुलेट कर देते हैं और हम व्याकुल होकर किसी स्त्री के पीछे भागने लगते हैं। शुक्राणुओं का इरादा होता है अंडाणु में जाकर विलय होना। स्त्री की चाह तो यहाँ से उत्पन्न होता है लेकिन हम समझते हैं कि यह प्यार का भूत ही। ये शुक्राणु और अंडाणु आपसे अपना काम पूरा करवाते हैं। इनके पास जुबान नहीं है इसलिए ये आपके मन का इस्तेमाल करते हैं।
जिसे हम प्यार कहते हैं वह किसी और की साजिश होती है। यह साजिश करने वाला आपके अंदर ही छुपा है। उसका जुबान नहीं है इसलिए वह कई तरीकों से आपको उकसाता है। खेल तो वह खेलता है और उसके साजिश के शिकार आप होते हैं। दुनिया का हर प्राणी उसी के साजिश का शिकार है। आज तक किसी को भी यह समझ में नहीं आया की हम किसी और के साजिश का शिकार कैसे हो जाते हैं।
कैसे होते हैं हम किसी और के साजिश का शिकार ?
यह बात ऐसे हो गई कि जुआ कोई और खेलता है और नुकसान हम उठाते हैं। जब आदमी जवान होता है तो सोचता है कि मैं तो सारा काम सोच समझकर कर रहा हूं और इसका परिणाम अच्छा होगा, लेकिन गौर से समझें तो सारा काम विपरीत नजर आता है। हम तो चले थे अपनी जिंदगी को सुखमय और आनंदमय बनाने के लिए लेकिन गुलामी के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ। कोल्हू के बैल की तरह सारी जिंदगी पिसते रहे। फिर भी हमें एहसास नहीं होता है कि हम किसी के साजिस का शिकार हैं।
कौन करता है आपके साथ साजिस ? यदि आप पुरुष है तो आप शरीर के उन शुक्राणुओं के शिकार हो जाते हैं जिनके पास जुबान तो नहीं है लेकिन वह अपना काम आप से करवाते हैं। उन शुक्राणुओं का मुख्य काम है फर्टिलाइजेशन करवाना। वह single-cell शुक्राणु हमेशा डबल सेल होने की कोशिश में लगा रहता है ? यह शरीर के शुक्राणु अपने मतलब के लिए आपके पूरे मानसिक संतुलन को बदल देते हैं। मैनिपुलेट कर देते हैं। उसका एक ही मकसद है कि सिंगल सेल से डबल सेल होना। हमारे शरीर का जो पूरा सिस्टम है वह उसी शुक्राणु का नौकर है। यदि आप स्त्री हैं तो आपके शरीर का जो पूरा सिस्टम है वह अंडाणु का नौकर है।
हम गाना गाते हैं “आए हो मेरी जिंदगी में तुम बहार बनके” यह कितना सही है। आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं। बहार तो नहीं आती है लेकिन जिंदगी वीरान जरूर बन जाती है। जब आदमी को खुजली होता है तो बड़ा मजा आता है लेकिन बाद में बहुत ज्यादा सजा भी हो जाता है। हमें लगता है कि यह सब हम कर रहे हैं लेकिन हमारे पास इतना भी सेंस नहीं है कि हम दूसरे की साजिश को समझ सकें। वैसे तो हम बहुत होशियार बनते हैं लेकिन दूसरे की अर्थी अपने कंधे पर ढोते हैं। कुत्ता जब हड्डी चूसता है तो उसके मुंह से खून निकलने लगता है, उसे लगता है कि यह खून इस हड्डी में से निकल रहा है। उसका वह आनंद लेता है लेकिन वह नहीं जानता की खून तो उसी का है। इसी तरह हमें लगता है कि किसी हैंडसम कचरे में आनंद है लेकिन आनंद तो अपने अंदर से आता है। अगर किसी हैंडसम कचरे में आनंद होता तो उसे दूसरे की जरुरत नहीं पड़ती।
अगर आपको लगता है कि आप किसी और के साजिश का शिकार नहीं है तो किसी डॉक्टर के पास चले जाओ और एक बार स्पर्म को निकलवा कर देखो, सारा प्यार का भूत उतर जाएगा। फिर किसी के प्रति आकर्षण नही रहेगा। अभी तो ऐसे इंजेक्शन आ गए हैं जो आदमी को नपुंसक बना देता है। आप एक बार लगवा कर देखो ! आपका जो प्यार का भूत है वह सारा खत्म हो जाएगा। फिर किसी लड़की या स्त्री को देखकर प्यार उत्पन्न नहीं होगा।
आप प्यार किसके लिए करते हैं। शुक्राणु की गुलामी करने के लिए या अपने जीवन को सँवारने के लिए। यदि आप प्यार जिंदगी को सँवारने के लिए करते हैं तो वह किसी व्यक्ति से नहीं हो सकता। जिंदगी को सँवारने का काम तो केवल परमात्मा या ब्रह्म ज्ञानी गुरु ही कर सकता है।
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