buttermilk drinking

मट्ठा पीना हमारे देश की प्राचीन परंपरा रही है। कहा जाता है कि “जो पीता है मट्ठा वह होता है पट्ठा। मट्ठा पेट की गर्मी और पाचन तंत्र को ठीक रखता है। छाछ में लेक्टोज होता है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर शरीर को ऊर्जावान बनाता है। अगर कब्ज की शिकायत है तो छाछ में अजवाइन मिलाकर पीना चाहिए। गर्मी में छाछ पीने से लू नहीं लगता है अगर लू लग जाए तो छाछ पीना शुरू कर दें, बहुत फायदा होगा। मट्ठे में लोहा, जस्ता, फास्फोरस और पोटेशियम पाया जाता है जो शरीर के लिए बहुत जरूरी मिनरल  होता है। 


दही से मट्ठा बनाने की विधि  (Dahi Se Mattha Banane ki Vidhi)

अच्छा जमाया हुआ दही लेकर उसमें चौथाई भाग पानी मिलाकर मथनी से मथकर उसमें से मक्खन निकाल लें। इस तरह से बना मट्ठा अत्यंत रुचिकर, पचने मे हल्का, मल मूत्र को साफ करने वाला, स्वयं पाचक तथा अन्य द्रव्यो को पचाने के कारण यह अतिसार, संग्रहणी, अर्श, मलाश्रित वायु, पीलिया, पेटशूल, मूत्रकृक्ष, हैजा, मूत्राघात, अश्मरी, उदर और गुल्म आदि रोगों में लाभदायक है। 

मट्ठा यानी छाछ के फायदे (Chhachh Peene Ke Fayde)

अग्निमांध, अरुचि, वात रोग, स्रोतोरोध आदि रोगों में मट्ठा अमृत के समान गुणकारी है। यह विषविकार, छर्दि, लालास्राव, विषम ज्वर, पांडू, ग्रहणी, बवासीर, मूत्रकृक्ष, मूत्राघात, अश्मरी आदि मूत्र विकार, भगंदर, प्रमेह, गुल्, अतिसार, शूल, तिल्ली, उदर, अरुचि, कुष्ठ रोग, कोष्ठगत रोग, कोष्ठ सूजन, तृषा और कृमि का नाश करता है। यह क्षुधा वर्धक (भूख बढ़ाने वाला) नेत्र रोग नाशक, रक्त और मांस वर्धक, आंव व कफ-वात नाश क है।

रोगानुसार मट्ठा का उपयोग (Roganusar Matthe Ka Upyog)

वात विकार में मट्ठे में सेंधा नमक मिलाकर देना चाहिए और पित्त विकार में मट्ठा में शक्कर मिलाकर पीना चाहिए तथा कफ विकार में मक्खन निकाला हुआ मट्ठा में सोंठ, सेंधा नमक, काली मिर्च और पीपल मिला कर देना चाहिए। मूत्रकृक्ष में गुड़ मिलाकर और पांडु रोग में चित्र का चूर्ण मिलाकर देना चाहिए। 

ज्वर रोग में मट्ठे का उपयोग (Jwar Rog Me Matthe Ka Upyog)

वातोदर में पीपल व सेंधा नमक मिलाकर देना, पितोदर में शक्कर तथा काली मिर्च मिलाकर, कफोदर में अजवाइन, सेंधा नमक, जीरा, सोंठ, पीपल, काली मिर्च मिलाकर देना, सन्निपातोदर में सोंठ, कालीमिर्च, पीपल और सेंधा नमक मिलाकर मट्ठा पीना चाहिए। बद्धोदर में हाऊबेर, अजवाइन, जीरा और सेंधा नमक मिलाकर मट्ठा पीना चाहिए। ग्रहणी (संग्रहणी) ग्रस्त रोगी को विशेष रूप से मट्ठा सेवन करना चाहिए। ग्रहणी रोग में अन्न का बिल्कुल परित्याग कर निरंतर खाने पीने से मट्ठा का ही प्रयोग करें। इसमें जरा सा सफेद जीरे को भूनकर मिला लेना अधिक लाभदायक होगा। 

Ques. : मट्ठा कैसे पीना चाहिए?

Ans. : आयुर्वेद के अनुसार मट्ठा को सुबह और दोपहर में खाना खाने के बाद पीना चाहिए ।

Ques. : छाछ और मट्ठा में क्या अंतर है?

Ans. : मट्ठा, छाछ का पर्यायवाची शब्द है। इसे अंग्रेजी में Buttermilk भी कहते हैं। यह एक तरल पदार्थ है, जो दही से बनाया जाता है। दही को मथकर वसा निकालने के बाद बचे हुये तरल पदार्थ को मट्ठा कहते हैं। 

Ques. : मट्ठा पीने से क्या लाभ होता है?

Ans. : मट्ठा पीने से फैट कम होता है। इसमें दूध और दही की अपेक्षा फैट बहुत कम होता है। यह पाचन तंत्र को ठीक रखता है। यह स्वाद और सेहत से भरपूर होता है। यह हड्डियों को बनाए मजबूत बनाता है। यह डिहाईड्रेशन से निजात दिलाता है और इम्युनिटी को बढ़ाता है। 

Ques. : एक दिन में कितना मट्ठा पीना चाहिए?

Ans. : वैसे तो आप कितना भी मट्ठा पीने कोई नुकसान नहीं करता है लेकिन आपको कम से कम एक गिलास मट्ठा रोज पीना चाहिए। इसमें लो कैलोरी और फैट कम होता है।

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