सारी फसाद की जड़ है कामवासना

हमारे हिंदू संस्कृति में स्त्रियों को नारायणी शब्द से संबोधित किया गया है। स्त्रियों के लिए कहा गया है “नारी तू नारायणी” यानि तू नारी नहीं नारायणी है। हमारे ऋषि-मुनियों का कहना है किसी भी स्त्री या लड़की को किसी भी पर पुरुष के साथ अकेले में नहीं रहना चाहिए। यहां तक कि अपने भाई और बाप के साथ भी लड़की को अकेले में नहीं रहना चाहिए। कामवासना की जब पूर्ति नहीं होती है तो वह क्रोध बन जाता है और यदि उसकी पूर्ति हो जाती है तो वह लोभ बन जाता है। वही लोभ, लालच बन जाता है फिर आदमी के अंदर मद और मत्सर पैदा हो जाता है।


कामवासना से कैसे बचें (Kamvasna Se Kaise bachen)

हमारे ऋषि-मुनि ऐसा मानते थे कि काम बहुत प्रबल है। उसकी चपेट में भले-भले लोग आ जाते हैं। काम इतना अंधा होता है कि वह यह नहीं देखता है कि सामने कौन है। भागवत में आपने पढ़ा होगा कि ब्रह्मा ने जब सरस्वती की रचना की तो वह खुद व्याकुल होकर उसके पीछे भागने लगे। यही नहीं भगवान शंकर भी श्रीकृष्ण के मोहिनी रूप के दीवाने होकर उनके पीछे भागने लगे थे। ऐसे हजारों उदाहरण है जिसके माध्यम से आप समझ सकते हैं कि काम कितना प्रबल शत्रु है। इसलिए किसी भी लड़की को अपने बाप-भाई के साथ भी अकेले में रहने से परहेज करना चाहिए। अभी ऐसा समय आ गया है कि कामवासना के चक्कर में सगे भाई-बहन ही शादी कर लेते हैं। 

कलयुग का इतना प्रभाव है की व्यभिचार रुकने का नाम नहीं ले रहा है। चारों तरफ वासना के दलदल में लोग फसे पड़े हैं। जिसकी वजह से रोज कितनी लड़कियों का शोषण हो जाता है। आप कल्पना नहीं कर सकते कि काम ऐसा नशा है जो जवान पुरुष और स्त्री के दिमाग में हर समय छाया रहता है। मौका देखते ही वह प्रहार करने की कोशिश करता है। 

आज हमारे देश में ग्लैमर इतना बढ़ गया है कि लड़कियां अर्धनग्न कपड़े पहन कर घर से निकल पड़ती है लेकिन घर का कोई भी बुढा-बुजुर्ग उनको रोकने की कोशिश नहीं करता है। लड़की का सबसे बड़ा दुश्मन होता है उसका यौवन। उसके यौवन को देखकर लोग आकर्षित होते हैं और जिसकी वजह से स्त्रियों का शोषण होता है। बॉलीवुड में तो अभिनेत्रियों को अंग प्रदर्शन करके पैसा कमाना होता है लेकिन उसकी नकल हमारे घर की बहू बेटियां भी करने लगती है, जिसका दुष्परिणाम कभी-कभी भयानक हो जाता है। 

शादी होने के बाद भी लोग कामवासना के चुंगल से नहीं बच पाते हैं। काम में आदमी इतना अंधा हो जाता है कि वैरायटी तलाश करता है। जब इंसान की अपनी बीवी से उबान हो जाता है तो दूसरी जगह मुंह मारने की चेष्टा करता है। दूसरी जगह से भी जब उबान हो जाता है तो फिर तीसरी जगह मुंह काला करने की कोशिश करता है। 

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इसका मतलब यह नहीं है कि संयमी लोग धरती पर नहीं हैं। हमारे देश में अभी भी बहुत सारे संयमी लोग मिल जाएंगे जो हमेशा कामवासना से बचकर रहने की कोशिश करते हैं। यदि आप भी कामवासना के दलदल से बचना चाहते हैं तो किसी भी परस्त्री के साथ समय बिताने से बचें। यहां तक कि अगर आपके घर में मां-बहन, बेटी भी है तो उनके साथ अकेले में न रहें। क्योंकि आदमी का मन इतना चंचल है कि कोई भी गलत काम करवा सकता है। कामवासना से बचने के लिए हमेशा सत शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए और किसी न किसी महापुरुष के साथ अपने को जोड़ कर रखना चाहिए। 

सारी फसाद की जड़ है कामवासना (Sari Fasad ki Jad Hai Kamvasna)

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कामवासना के दलदल में जब कोई युवक फस जाता है तो उसकी पूरी जिंदगी नरक बन जाती है। कामवासना जब किसी नौजवान को ग्रसित कर लेता है जाने अनजाने वह अपने शरीर के बल-वीर्य और ओज-तेज को नष्ट करता रहता है। जिसकी वजह से उसका शरीर जीर्ण-शीर्ण और कमजोर हो जाता है। उसकी मानसिक स्थिति भी दुर्बल हो जाती है। उसके पास सोचने समझने की क्षमता कम हो जाती है। जीवन में निर्णय लेने की भी योग्यता नष्ट हो जाती है।  इसलिए हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि किसी भी पुरुष को किसी भी स्त्री के साथ एकांत में नहीं रहना चाहिए। 

कामवासना के दलदल से कैसे बचा अर्जुन (Kamvasna ke daldal Se Kaise bacha Arjun)

कामवासना से ग्रसित होकर उर्वशी जब अर्जुन के पास गई थी तो अर्जुन ने उसको मातृत्व का दर्जा देकर अपने को बचा लिया था। जिसकी वजह से वह महाभारत के युद्ध में विजयी हो सका। जब उर्वशी ने कामवासना की पूर्ति न होने पर अर्जुन को नपुंसक होने का श्राप दिया था, तो वह श्राप भी उसके लिए आशीर्वाद साबित हो गया। इसलिए आदमी को संयमी रहने का प्रयास करना चाहिए। जिससे शरीर में ओज-तेज, बल और वीर्य बना रहे। वीर्य शरीर की वह शक्ति है। जिसको धारण करने से इंसान हर क्षेत्र में सफल हो सकता है। जो कामवासना को पराजित कर देता है उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। 

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