सारिवाद्यासव एक आयुर्वेदिक सिरप है। यह रक्त और मूत्र सम्बन्धी बीमारियों को ठीक करता है और यह शरीर के विषाक्त पदार्थों को दूर करता है। यह बीस प्रकार के प्रमेह, मधुमेह, गठिया, पेशाब में जलन, पेशाब करने पर दर्द, फोड़े,-फुंसी, मुहांसा, त्वचा रोग आदि के उपचार दिया जाता है।
सारिवाद्यासव बनाने की सामग्री (Ingredients for making Sarivadyasav)
सारिवा (अनंत मूल), मोथा, लोध, बरगद की छाल, पीपल वृक्ष की छाल, कचूर, अनंत मूल सफेद, पद्माख, सुगंधबाला, पाठा, आंवला, गिलोय, खस, दोनों चंदन, अजवायन, कुटकी – प्रत्येक 4-4 तोला, छोटी और बड़ी इलायची, कूठ, सनाय, हर्रे प्रत्येक 16-6 तोला लेकर सबको जौकुट बना लें, फिर एक मटके में ढाई सेर पानी डालकर उसमें यह चूर्ण और 15 सेर गुण, 40 तोला धाय के फूल तथा 3 सेर मुनक्का डालकर संधान कर दें, और 1 माह पश्चात तैयार होने पर निकालकर छान कर रख ले।
मात्रा और अनुपान : 1 से 2 तोला भोजन के बाद सवेरे और शाम को, सामान भाग जल मिलाकर दें।
सारिवाद्यासव का गुण और उपयोग (Properties and Uses of Sarivadyasava)
यह आसव 20 प्रकार के प्रमेह, पीड़िका, उपदंश और इसके उपद्रव, वातरक्त, भगंदर, मूत्रकृक्ष, नाड़ीब्रण, पीब बहने वाले फोड़े फुंसियों आदि रोगों को नष्ट करता है। यह आसव रक्तशोधक, रक्तप्रसादक, मूत्रशोधक और पेशाब साफ लाने वाला है।
अधिकतर प्रमेह रोग बहुत दिनों तक ध्यान में नहीं आता है। जब इस रोग की तरफ ध्यान जाता है, उस समय यह मधुमेह के रूप में बदल जाता है अथवा पीड़िका उत्पन्न हो गई होती है। ऐसे भयंकर रोग के ऊपर विशेष ध्यान रखना चाहिए। प्राकृतिक नियमों में थोड़ा भी अंतर पड़ जाने से तुरंत किसी अच्छे वैद्य से परामर्श लेकर उचित दवा लेनी चाहिए।
प्रमेह की प्रारंभिक अवस्था में यदि सारिवाद्यासव का सेवन कुछ दिनों तक नियम पूर्वक किया जाए और पथ्य पूर्वक रहा जाए तो निसंदेह रोग आगे न बढ़ कर यहीं समाप्त हो जाता है। फिर मधुमेह या प्रमेह पीड़िका आदि उपद्रव पैदा ही नहीं हो सकते। प्रमेह पीड़िका रोग हो जाने पर भी लगातार कुछ दिनों तक सेवन करने से यह दोष मिट जाता है।
पित्तजन्य प्रमेहों इसका उपयोग किया जाता है। इसका प्रभाव वातवाहिनी नाड़ियों पर तथा मूत्रपिंड, स्त्री जनेन्द्रिय, गर्भाशय, बीजाशय आदि पर अधिक होता है। मस्तिष्क के विकारों में भी इसका अच्छा असर होता है। कोई-कोई वैद्य उन्माद रोग में सर्पगंधा चूर्ण के साथ इस आसव का प्रयोग करने की राय देते हैं और इससे लाभ भी होता है।
मूत्राश्मरी, मूत्रकृक्ष अथवा रुक रुक कर पेशाब होना, पेशाब में जलन होना, लाल रंग का पेशाब होना, पेशाब करते समय पेडू अथवा मूत्र नली में दर्द होना या सुजाक रोग के कारण मूत्र में जलन अथवा दर्द होना या पीब आना आदि विकारों में इस आसव के उपयोग से बहुत लाभ होता है।
सूजाक या उपदंश, पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों के लिए विशेष कष्टदायक है। एक बार जिस स्त्री को यह रोग हो गया हो फिर उसकी जड़ उखाड़ना कठिन हो जाता है। इसमें स्त्रियों को ज्यादा तकलीफ होती है। जनेन्द्रिय में खुजली होती है, काम की प्रवृत्ति विशेष बनी रहती है। मवाद आता है और साथ ही सूजन भी आ जाती है। ऐसी स्थिति में इसका उपयोग करने से बहुत लाभ होता है। साथ ही त्रिफला जल से योनि को धोते रहने और यह क्रिया दिन भर में 3-4 बार करते रहने तथा इस आसव का नियमित रूप से सेवन करने और पथ्यपूर्वक रहने से बहुत शीघ्र लाभ होते देखा गया है। – साभार : आयुर्वेद सार संग्रह
FAQ. :
- सारिवाद्यासव के घटक क्या हैं ? What are the components of Sarivadyasava?
- सारिवाद्यासव के मुख्य गुण और उपयोग क्या है ? What are the main properties and uses of Sarivadyasava?
- सारिवाद्यासव के लाभ क्या है ? What are Sarivadyasava health benefits?
- सारिवाद्यासव के चिकित्सीय उपयोग क्या है ? What are Sarivadyasava medicinal Uses?
- सारिवाद्यासव सेवनविधि क्या है ? How to take Sarivadyasava ?