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योग सिद्ध योगेश्वरी मां ने बताया की तांत्रिकों का यह विशेष अनुभव था कि अगर कोई साधक पूर्ण नग्न युवती के सम्मुख पूज्य भाव से तंत्र की विशेष प्रक्रिया कर ले तो वह स्त्री के आकर्षण से सदैव के लिए मुक्त हो जाएगा। इसी प्रकार कोई साधिका पूर्ण नग्न पुरुष के सम्मुख विशेष क्रियाओं से साधना कर ले तो वह सदैव के लिए पुरुष के आकर्षण से मुक्त हो जा सकती है। वास्तव में यदि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इस पर विचार किया जाए तो समझ में आएगा कि स्त्री और पुरुष के बीच जो मैग्नेटिक फोर्सेस हैं – वे  उनको बांधने की व्यवस्थाएं हैं। अगर एक नग्न युवती को साधना भूमि में पूज्य भाव से देखने में समर्थ हो जाए तो वह साधारण घटना नहीं है अति मूल्यवान और अति महत्वपूर्ण घटना है। 

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आपको मालूम होना चाहिए कि स्त्री को भोगने के भाव से समर्थ होना हमें प्रकृति ने बनाया है लेकिन स्त्री को पूज्य भाव से देखने में अगर कोई पुरुष पूर्णतया समर्थ हो जाता है तो उसकी जो काम शक्ति की ऊर्जा धारा बाहर की ओर प्रवाहित हो रही थी वह भीतर की ओर प्रवाहित होने लग जाती है। इसी अवस्था को योग में अंतर्संभोग  अथवा अंतर मिलन कहते हैं। इस अवस्था में बाहर की स्त्री साधक के लिए मातृरूपा, देवीरूपा और पूज्या हो जाती है। इसलिए कि उसमें जो स्त्री का आकर्षण था और उसके प्रति जो भोग्या भाव था वह हमेशा के लिए समाप्त हो गया होता है। अब तक जिस काम उर्जा का प्रवाह बहिर्मुखी था वह अंतर्मुखी हो गया होता है। कोई भी शक्ति नष्ट नहीं होती केवल उसके रूप में परिवर्तन होता है। मार्ग में परिवर्तन होता है। शक्ति तो वही रहती है जो पहले थी। बाहर की स्त्री जब पूज्या हो जाती है तो साधक के काम शक्ति की उर्जा का प्रवाह उसके भीतर स्थित स्त्री शरीर की ओर उन्मुख हो जाता है। श्री रामकृष्ण परमहंस ऐसी अवस्था को उपलब्ध साधना थे। वासना की दृष्टि से बाहर की स्त्री को कोई मूल्य और महत्व नहीं था। जगत की समस्त स्त्रियों के प्रति उनके चित्त में मां का भाव था। यहां तक कि अपनी पत्नी शारदा के प्रति भी मां का भाव था। मतलब है यह है कि इस परम अवस्था में स्त्री के प्रति भोग भाव समाप्त हो जाता है। 

तांत्रिक पूजा में स्त्री की उपयोगिता 

प्राचीन काल में नग्न स्त्री को पूज्य भाव से देखने की विशेष प्रक्रियायें  थी। विशेष मनोदशायें थी। ध्यान के विशेष प्रयोग थे। विशेष मंत्र थे। विशेष शब्द थे। तंत्र और उन सब के बीच विशेष योगिक क्रिया करने पर यह परम अवस्था प्राप्त हो जाती थी। कहने की आवश्यकता नहीं है, वर्तमान में इन सब विषयों के संबंध में जो कुछ भी लिखा है वह सब आधा अधूरा है। उनका पूरा विज्ञान, पूरी क्रिया और पूरी कुंजी किसी भी तंत्र ग्रंथ में उपलब्ध नहीं है। बस इतना ही लिखा गया है कि नग्न स्त्री की पूजा करने पर साधक की ऊर्जा भीतर प्रवाहित हो जाती है। 

कुमारी पूजा, गुह्य पूजा, अष्टांग पूजा, योनि पूजा, चक्र पूजा आदि पूजाओं का अपना तांत्रिक महत्व है और उनका महत्वपूर्ण अध्यात्मिक परिणाम है। इसी प्रकार भैरवी साधना, पंचमकार साधना, कपाल साधना, श्मशान साधना, चिता साधना, शव साधना आदि गोपनीय तांत्रिक साधनाओं की भी आध्यात्मिक उपलब्धियां हैं लेकिन इन सब के विषय में थोड़ी बहुत इन विषयों पर पढ़ने के लिए सामग्री प्राप्त होती भी है तो वह मार्ग भ्रष्ट और दिशा भ्रम का कारण ही समझ में आता है। 

प्राचीन काल में नग्न स्त्री की पूजा के विशेष कारण 

ऊर्जा को अंतर्मुखी बनाने की जितनी भी व्यवस्थाएं तंत्र में हैं। उनमें कोई ऐसी व्यवस्था नई है जिसमें नग्न पुरुष की पूजा स्त्रियां करती हों। स्त्री की ही नग्न पूजा क्यों ?

यह थोड़ी समझने की बात है। कभी किसी काल में ऐसी कोई तांत्रिक व्यवस्था नहीं रही जहां पुरुष को नग्न खड़ा किया गया हो और स्त्री पूजा कर रही हो । इसके भी कारण हैं। यह अनावश्यक है। इसके भी दो-तीन कारण हैं – पहला कारण यह है कि पुरुष के मन में जब भी किसी स्त्री के प्रति आकर्षण होता है तो वह उसे नग्न करना चाहता है। स्त्री ऐसा नहीं करना चाहती। यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है। पुरुष स्त्री को नग्न देखना चाहता है लेकिन स्त्री पुरुष को नग्न देखना नहीं चाहती। इसलिए संभोग काल में 99% स्त्रियां नेत्र बंद कर लेती हैं। पुरुष नेत्र खुला रखता है। अगर स्त्री को पुरुष केवल आलिंगन करता है अथवा उसका चुंबन भी लेता है तो उस अवस्था में भी अपने नेत्र बंद कर लेती है। नेत्र बंद करने का कारण है और वह यह कि स्त्री उस परमानंद के क्षणों में बाहर नहीं जीना चाहती। वह तो उन महत्वपूर्ण क्षणों को अपने भीतर समेट लेना चाहती हैं। उन्हें आत्मसात कर लेना चाहती है। 

यही एकमात्र मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि पुरुषों ने तो स्त्रियों की इतनी मूर्तियां बनायी। इतने चित्र बनाये उनके। उनका आश्रय लेकर इतनी कथाएं और इतनी कविताएं लिखी। उनके चरित्रों को लेकर इतने उपन्यास और काव्य लिखे गए लेकिन स्त्रियों ने नग्न पुरुषों के प्रति किसी भी प्रकार की उत्सुकता व्यक्त नहीं की। नग्न पुरुष में स्त्रियों का कोई आकर्षण नहीं लेकिन नग्न स्त्री में पुरुष की उत्सुकता अत्यंत गहरी है। 

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