संजय ने दूर दृष्टि से धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का आंखों देखा हाल सुनाया था। हमारे प्राचीन ऋषिगण दूरदर्शनमें सिद्धस्त थे। पलक झपकते ही वे दुनिया के किसी भी कोने की घटना का अवलोकन कर लेते थे। मनुष्य का अंतर्मन एक बेहद शक्तिशाली तरंग है। वह किसी भी सीमा से परे भूत, भविष्य, वर्तमान – वह तरंग कहीं भी जा सकती है। मनुष्य का अंतर्मन कहीं भी भ्रमण कर सकता है। जिस कार्य को करने में विज्ञान ने हाथ खड़े कर दिए हैं वे कार्य अंतर्मन के माध्यम से सहज संपन्न होते देखे गए हैं। मनुष्य का बाह्य मन चंचल व अस्थिर होता है, जबकि अंतर्मन बाहरी क्रियाओं से पूर्णतः शांत और स्वतंत्र होता है। इसे साधने पर दूरदर्शन सिद्धि संभव है।
त्रिकाल दर्शन सिद्धि प्रयोग (Trikal Darshan Siddhi Prayog)
इसके लिए पूर्व दिशा में आसन लगाकर बैठ जाएं। अपने से 2 फूट दूर 12X36 इंच का एक ब्लैकबोर्ड (श्यामपट) अथवा काला कपड़ा दीवार पर लगा दें। उस कपड़े अथवा ब्लैक बोर्ड के मध्य में सफेद पेंट से दीपक की लौ की आकृति बना दें। फिर उस दीपक की लौ पर ध्यान केंद्रित करके रोज ब्रह्म मुहूर्त में त्राटक करें। धीरे-धीरे समय बढ़ाते जाएं। जब दीपक का प्रकाश तीव्र होता जाए तो समझे कि आपका अभ्यास सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। जिस दिन पूरा ब्लैक बोर्ड श्वेत चमकीला नजर आने लगे और उस पर कुछ दृश्य नजर आने लगे तो यह विचार करें कि आपके पिता (अथवा कोई भी संबंधी) उस वक्त घर में क्या कर रहे हैं। शीघ्र आपके पिता सोते हुए अथवा तत्कालीन दशा में श्यामपट्ट पर दृष्टिगोचर होने लगेंगे। अगले दिन अपने घर से निकलकर शहर के किसी भी स्थान की कल्पना कीजिए कि वहां क्या हो रहा है ? आपको श्यामपट्ट पर वही दृश्य दिखाई देने लगेगा। फिर शहर से निकलकर देश-विदेश में देखने का अभ्यास कीजिए। दरअसल, श्यामपट्ट पर दिखाई पड़ने वाला प्रकाश आपके अंतर्मन का प्रकाश होता है और यह आपके आदेश के साथ ही उचित स्थान पर पहुंच कर वहां के दृश्य प्रेषित करने का कार्य करता है। इस तरह नियमित अभ्यास से आप दूरदर्शन सिद्धि (Doordarshan Siddhi) पा सकते हैं।