बहुत लोग जानना चाहते हैं कि वीर्य का ऊर्ध्वगमन (Virya Ka Urdhvagaman) क्या है ? वीर्य के ऊर्ध्वगमन का अर्थ है यह नहीं है कि वीर्य स्थूल रूप से ऊपर सहस्रार की ओर जाता है। इस विषय में कई लोग भ्रमित हैं। वीर्य तो वही रहता है मगर उसे संचालित करने वाली जो काम सकती है उसका ऊर्ध्वगमन होता है। वीर्य को ऊपर चढ़ाने की नाडी शरीर के भीतर नहीं है, इसलिए शुक्राणु ऊपर नहीं जाते बल्कि हमारे भीतर एक विद्युत चुंबकीय शक्ति होती है। जो नीचे की ओर बहती है तब शुक्राणु सक्रिय होते हैं।
इसलिए जब पुरुष की दृष्टि भड़कीले वस्त्रों पर पड़ती है या उसका मन स्त्री का चिंतन करता है तब यही शक्ति उसके चिंतन मात्र से नीचे मूलाधार केंद्र के नीचे जो काम केंद्र है, उसको सक्रिय कर वीर्य को बाहर धकेलती है। वीर्य स्खलित होते ही उसके जीवन की उतनी काम शक्ति व्यर्थ में खर्च हो जाती है। योगी और तांत्रिक लोग इस सूक्ष्म बात से परिचित थे। स्थूल विज्ञान वाले जीवशास्त्री और डॉक्टर लोग इस बात को ठीक से समझ नहीं पाए, इसलिए आधुनिकतम औजार होते हुए भी कई गंभीर रोगों को ठीक नहीं कर पाते। जबकि योगी के दृष्टिपात मात्र से या आशीर्वाद से ही रोग ठीक होने के चमत्कार हम प्रायः देखा सुना करते हैं। आप बहुत योग साधना करके ऊर्ध्वरेता योगी न भी बनो फिर भी वीर्य रक्षण के लिए इतना छोटा सा प्रयोग तो अवश्य ही कर सकते हो।
वीर्य रक्षा का महत्वपूर्ण प्रयोग (Virya Raksha Kaise Karen)
अपना जो काम संस्थान है वह जब सक्रिय होता है तब वीर्य को बाहर धकेलता है किंतु निम्न प्रयोग द्वारा उसको सक्रिय होने से बचाया जा सकता है। किसी स्त्री के दर्शन से या कामुक विचार से आपका ध्यान अपनी जनेन्द्रिय की तरफ खींचने लगे तभी आप सतर्क हो जाओ। आप तुरंत जनेन्द्रीय को भीतर पेट की तरफ खींचो। जैसे पंप का पिस्टन खींचते हैं इस प्रकार की क्रिया मन को जनेन्द्रिय में केंद्रित करके करनी है। योग की भाषा में इसे योनि मुद्रा कहते हैं।
अब आंखें बंद करो। फिर ऐसी भावना करो कि मैं अपने जनेन्द्रिय संस्थान से ऊपर सिर में स्थित सहस्रार की तरफ देख रहा हूं। जिधर हमारा मन लगता है उधर ही यह शक्ति बहने लगती है। सहस्रार की तरफ वृत्ति लगाने से जो शक्ति मूलाधार में सक्रिय होकर वीर्य को स्खलित करने वाली थी, वही शक्ति ऊर्ध्वगामी होकर आपको वीर्यपतन से बचा लेगी। लेकिन ध्यान रहे यदि आप का मन काम विकार का मजा लेने में अटक गया तो आप सफल नहीं हो पाएंगे। थोड़े संकल्प और विवेक का सहारा लिया तो कुछ ही दिनों के प्रयोग से महत्वपूर्ण फायदा होने लगेगा। आप स्पष्ट महसूस करेंगे कि एक आंधी की तरह काम आवेग आया और इस प्रयोग से वह कुछ ही क्षणों में शांत हो गया।
वीर्य रक्षा का दूसरा प्रयोग (Virya Raksha ka Dusra Prayog)
जब भी काम का वेग उठे मूलबंध (योनि का संकुचन) व उद्यानबंध (पेट को भीतर खींचना) करके फेफड़े में भरी वायु को जोर से बाहर फेंको। जितना अधिक बार फेक सको उतना उत्तम। दो-तीन बार के प्रयोग से काम विकार शांत हो जाएगा और आप वीर्यपतन से बच जाओगे।
यह प्रयोग दिखता छोटा सा है मगर बड़ा महत्वपूर्ण योगिक प्रयोग है। भीतर का श्वास काम शक्ति को नीचे की ओर धकेलता है। उसे ज़ोर से और अधिक मात्रा में बाहर फेंकने से वह मूलाधार चक्र में कामकेंद्र को सक्रिय नहीं कर पाएगा। फिर पेट और नाभि को भीतर संकोचंने से वहां खाली जगह बन जाती है। खाली जगह को भरने के लिए कामकेंद्र के आसपास की सारी शक्ति जो वीर्यपतन में सहयोगी बनती है खींचकर नाभि की तरफ चली जाती है। इस प्रकार आप वीर्य पतन से बच जाएंगे।
इस प्रयोग को करने में ना कोई खर्च है ना कोई विशेष स्थान ढूंढने की जरूरत है। कहीं भी बैठकर कर सकते हैं। काम विकार न उठे तब भी यह प्रयोग करके आप अनुपम लाभ उठा सकते हैं। इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है। पेट की बीमारियां मिटती है। जीवन तेजस्वी बनता है और वीर्य रक्षा सहज में होने लगता है।
वीर्य रक्षा के लिए मंत्र प्रयोग (Virya Raksha ke liye Mantra Prayog)
“‘ॐ अर्यमाये नमः।” भगवान अर्यमा का यह मंत्र श्रद्धा से अपने वाला विकारी वातावरण व विकारी लोगों के बीच से भी बच कर निकल सकता है। श्रद्धा से जपने पर बहुत लाभ होता है। यह कईयों का अनुभव है। स्त्री पुरुष जिनको भी काम विकार गिराता हो उन्हें इस मंत्र का जप करना चाहिए। रात्रि को सोने से पूर्व 21 बार इस मंत्र का जप करने से बुरे बिचार व बुरे सपनो से बचा जा सकता है।