swami vivekanand

स्वामी विवेकानंद को किसी ने बताया कि स्वामी जी हैदराबाद में एक ऐसा आदमी है, जिससे कुछ भी मांगो वह निकालकर दे देता है. Swami Vivekanand के मन में भी जिज्ञासा हुई कि एक बार जाकर देखना चाहिए क़ि यह सब कैसे होता है.

समय निकालकर स्वामी विवेकानंद हैदराबाद गए और उस आदमी से जाकर मुलाक़ात क़ी. मुलाक़ात होने पर उसने पहले स्वामी जी को बोला कि स्वामी जी जरा अपना हाथ मेरे सिर पर रखकर आशीर्वाद दीजिए क़ि मेरा बुखार ठीक हो जाय. फिर स्वामी जी ने उसके सिर पर हाथ रखा और उसे आशीर्वाद दिया. उसके बाद उसने स्वामी जी से अपना चमत्कार दिखाने क़ी बात कही. स्वामी विवेकानंद के सामने वह बैठ गया और उसने अपने शरीर के ऊपर एक बड़ा सा कम्बल डाल लिया और स्वामी विवेकानंद से कहा कि महाराज मागिए, आप जो भी वस्तु मांगेंगे वह मैं इस कम्बल के अंदर से निकालकर दूंगा.

विवेकानंद ने सोचा कि इससे ऐसा फल मांगता हुँ जो इस सीजन में कहीं होता ही न हो. लेकिन विवेकानंद ने जैसे ही उस फल क़ी मांग क़ी उसने करीब 40 किलो फल अपने कम्बल के अंदर से निकालकर दे दिया. स्वामी विवेकानंद को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मैंने ऐसा फल माँगा जो इस सीजन में यहाँ कहीं पर भी नहीं मिल सकता है फिर भी इसने निकालकर दिया, इसका मतलब है कि यह फल इस सीजन में यहाँ भले ही न होता हो लेकिन देश विदेश में कहीं पर तो यह फल इस सीजन में होता होगा जहाँ से निकालकर दिया है.

स्वामी विवेकानंद यह सब खेल देखकर वापस कलकत्ता आ गए. लेकिन उनके मन में यह विचार बार बार यह उठता था कि आखिर यह सब कैसे होता है. उन्होंने सोचा कि कहीं यह मेरे आँखों का धोखा तो नहीं था आखिर यह सब कैसे हुआ. उनको रहा नहीं गया और वह फिर दुबारा हैदराबाद उस आदमी से मिलने पहुँच गए. फिर उन्होंने वैसे ही फल कि डिमांड की जो दूर दूर तक कहीं पैदा न होता हो. और वह फिर कम्बल के अंदर से ढेर सारा फल निकालकर दिया.

उस समय स्वामी विवेकानंद भी योगाभ्यास करते थे और उन्हें पता चला कि यह सब कैसे होता है.

अगर आप भी जानना चाहते हैं क़ि यह सब कैसे होता है तो हमें कमेंट करें. हम आपको स्वामी विवेकानंद की इससे आगे की कहानी बताएँगे.

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