भगवान को हम अपनी पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्म इंद्रियों द्वारा देख और समझ नहीं सकते। उस ईश्वर के अंतर्निहित गुणों के कारण केवल उसे अनुभव किया जा सकता है।
योग वशिष्ट महारामायण में आता है कि एक बार भगवान भोले शंकर माँ पार्वती के साथ वशिष्ठ जी से मिलने के लिए उनके आश्रम में गए। भगवान शंकर की अर्धांगिनी मां पार्वती वशिष्ठ जी की पत्नी अरुंधति के पास वार्तालाप करने के लिए चली गई। इधर वशिष्ठ जी ने शंकर भगवान का अर्ध्यपाद से पूजन किया। उसके बाद उन्होंने भगवान शंकर से पूछा कि “प्रभु आपको तो सारे संसार के लोग महादेव मानकर पूजा करते हैं, इसलिए मैं आपसे पूछता हूं कि वास्तव में असली देव (भगवान) कौन है। तब भगवान शंकर ने कहा की ऋषिवर “ना मैं देव हूं, ब्रह्मा देव हैं और न विष्णु देव हैं। देवों का देव महादेव तो वह एक चैतन्य सत्ता है जो सबका आधार है। वही एकमात्र वास्तविक परम देव है। जिससे सारे देव उत्पन्न होते हैं और जिसमें फिर समाहित हो जाते हैं। उस देव की पूजा धूप, दीप, अगरबत्ती से नहीं होती है। उस देव की पूजा का एकमात्र साधन है ध्यान।
भगवान क्या है ? (What is god)
वे सभी नाम जिनको हम भगवान मानते हैं, भगवान महावीर, भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान शिव आदि हों। वह भी एक सामान्य मनुष्य की तरह ही धरती पर जन्म लिए थे। जिन्हें बाद में भगवान के रूप में पूजा जाने लगा। इसका मतलब यह है कि भगवान एक नाम नहीं बल्कि आम विशेषण है।
जब यह उपरोक्त सारे भगवान धरती पर विद्यमान थे, तब उन्होंने किसी भी धर्म संप्रदाय और अनुष्ठानों को पालन करने के लिए नहीं बनाया। नहीं उन्होंने अपने को कभी भगवान के रूप में प्रदर्शित किया कि मैं भगवान हूं। उन्होंने तो केवल भगवान को महसूस किया और इस दुनिया को समझाया कि भगवान को महसूस किया जा सकता है और लोगों को उसका एहसास भी कराया। उन्होंने अपने उपदेशों को के द्वारा सारी दुनिया को बताया कि भगवान हमारे सच्चे स्वरूप के अलावा और कुछ नहीं है ।
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परमात्मा न तो जगत का निर्माता है और नहीं जगत का शासक है वह तो शुद्ध चैतन्य आत्मा के रूप में अविभाज्य रूप से हर एक जीव के अंदर व्याप्त है। जब तक आपके पास “मैं कौन हूं” इसकी अज्ञानता है तब तक आप अपने को एक शरीर मानोगे, एक साधारण जीव मानोगे लेकिन जब अज्ञानता नष्ट होगी तब महसूस करोगे कि शरीर को दिया गया नाम मैं नहीं हूँ। मैं तो केवल शुद्ध चैतन्य आत्मा हूं, मैं ही भगवान हूँ।
भगवान कैसा दिखता है ? (What Does God Look Like)
भगवान को हम अपनी पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्म इंद्रियों द्वारा देख और समझ नहीं सकते। उस ईश्वर के अंतर्निहित गुणों के कारण केवल उसे अनुभव किया जा सकता है। चैतन्य आत्मा में अनंत गुण विद्यमान है। यही इसकी परिभाषा है। इसलिए भगवान अनंत है और उनकी महिमा भी अनंत है। भगवान परम सत्य है, भगवान शुद्ध प्रेम है, भगवान सुख और दुख से प्रभावित है, भगवान अनंत सुख का धाम है।
प्रत्येक जीव की आत्मा हर तरह से परिपूर्ण है और वह शरीर के भीतर रहते हुए भी उसकी आंतरिक विचारों और बाहरी कार्यों से पूरी तरह स्वतंत्र है। जिस प्रकार तेल और पानी कभी आपस में नहीं मिल सकते उसी तरह आत्मा और शरीर कभी नहीं मिल सकते। हम इसके अस्तित्व को नहीं जानते हैं क्योंकि हम अज्ञानता के आवरण से पूरी तरह ढके हुए हैं।
अज्ञान का यह आवरण आत्म साक्षात्कार के बाद ही टूट सकता है। यह वह समय होता है जब मनुष्य अपने सभी कर्म बंधनो को तोड़ देता है। जब अपने सभी कर्मों को पूरा कर लेता है और उसके सभी कर्म समाप्त हो जाते हैं. तब शुद्ध आत्मा जागृत हो जाती है और उसे पता चलता है कि मैं ही पूर्ण परमेश्वर हूँ।