यह योग एक ऐसी अद्भुत कुंजी है, जिसके केवल 6 माह तक नियमित अभ्यास से साधक में अद्भुत परिवर्तन हो जाता है। उसकी मनोकामनाएं पूरी होने लगती हैं। उसके संकल्प में अद्भुत बल आ जाता है। प्रकृति उसके अनुकूल होने लगती है। काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि सब विकारों का वह विजेता हो जाता है। इतना ही नहीं उसका पूजन करके लोग अपनी मनोकामनाएं सिद्ध करने लगते हैं। जो साधक पूर्ण एकाग्रता से इस पुरुषार्थ को साधेगा उसके भाग्य का तो कहना ही क्या? उसकी व्यापकता बढ़ती जाएगी। महानता का अनुभव होगा। वह अपना पूरा जीवन बदला हुआ पाएगा। बहुत तो क्या 3 ही दिनों के अभ्यास से चमत्कार घटेगा। तुम जैसे पहले थे वैसे अब ना रहोगे। काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि सब विकारों पर विजय प्राप्त करोगे।
कागभुशुंडजी जी कहते हैं : “मेरे चीर जीवन और आत्म लाभ का कारण प्राण कला ही है।”
This yoga is such a wonderful key, whose regular practice for only 6 months brings amazing changes in the seeker. His wishes start getting fulfilled. Amazing power comes in his resolve. Nature starts favoring him. He becomes the conqueror of all vices like lust, anger, greed, attachment etc. Not only this, by worshiping him, people start fulfilling their wishes. What to say about the fate of a seeker who will pursue this effort with full concentration? Its prevalence will increase. Greatness will be experienced. He will find his whole life changed. A lot, will miracles happen with just 3 days of practice? You will no longer be the way you were before. You will get victory over all vices like lust, anger, greed, attachment etc.
Kagbhushundji says: “The cause of my ripe life and self-profit is the art of life.”
प्राणायाम की विधि : प्रातः कालीन क्रियाओं से निवृत्त होकर पूर्व अथवा उत्तर विमुख हो कंबल या विद्युत अवरोधक आसन पर पद्मासन की स्थिति में बैठे। गर्म कपड़े के ऊनी आसन पर गर्दन और छाती एक सीधी रेखा में हों। दाहिने हाथ की तर्जनी को अंगुष्ठमूल में स्पर्श कराने से बनी मुद्रा में ॐ अथवा हरिओम या गुरु मंत्र या मानसिक जप शुरू कर अंगूठे से दाया नथुना बंद करके बाएं नथुने से गहरा सांस लो। हाथ के अंगूठे और अंगुलियों से दोनों नथुने बंद कर लो। यह पूरक हुआ।
Method of Pranayama: After retiring from the morning activities, facing east or north, sit in padmasana position on blanket or electric barrier seat. Neck and chest should be in a straight line on a woolen seat of warm cloth. In the mudra formed by touching the index finger of the right hand to the thumb, take a deep breath through the left nostril, closing the right nostril with the thumb, starting Om or Hari Om or Guru Mantra or mental chanting. Close both the nostrils with the thumb and fingers of the hand. It was supplemented.
जितना समय सांस लेने में लगा उससे 4 गुना समय श्वास भीतर रोको। यह अभ्यंतर कुंभ हुआ। अब नथुने से अंगूठा हटाकर दाएं नथुने से धीरे-धीरे पूरा श्वास बाहर निकाल दें। सांस लेने में कितना समय लगा था उससे ठीक दुगना समय सांस छोड़ने में लगाओ, ध्यान रहे कि तेजी से श्वास छोड़ने पर नाड़ी तंत्र में दुर्बलता आती है। अब श्वास बाहर ही रोके रखो। अंगूठे और अंगुलियों से दोंनो नथुने बंद कर लो। इसे बहिर्कुम्भक कहते हैं। सांस लेने में आपको जितना समय लगा उससे दुगना समय बहिर्कुम्भक में लगाएं।
Hold the breath in for 4 times the time it took to breathe. This was the inner Kumbh. Now remove the thumb from the nostril and exhale slowly through the right nostril. Spend exactly twice the time in exhaling than how much time it took in breathing, keep in mind that there is weakness in the nervous system on exhaling rapidly. Now hold the breath outside. Close both the nostrils with thumb and fingers. This is called Bahirkumbhaka. Spend twice as much time in Bahirkumbhak as it took you to breathe.
इस प्रकार पूरक – अभियंतर – कुंभक – रेचक – बहिर्कुभक के समय का प्रमाण अनुपात में इस प्रकार होगा -1:4:2:2 । अब दाएं नथुने से अंगूठा हटाकर गहरा श्वास लें। दोनों नथुने बंद करें। 4 गुना समय अभ्यंतर करें। दुगने समय में बाएं नथुने से रेचक करें। दुगना समय ही बहिर्कुम्भक करें। यह एक प्राणायाम हुआ। इस सचोट योगिक क्रिया के दौरान ओम, हरि ओम मंत्र का मानसिक जप चालू रखें।
In this way, the proof of the timing of puraka-abhyantar-kumbhaka-rechaka-bahirkumbhak will be in the ratio -1:4:2:2. Now take a deep breath by removing the thumb from the right nostril. Close both the nostrils. Enter 4 times the time. Exhale through the left nostril twice a day. Do Bahirkumbhak twice the time. This became a pranayama. During this Sachot Yogic Kriya, keep on chanting the mantra Om, Hari Om mentally.
त्रिबंध विवेक : सांस लेने से पहले गुदा तथा नाभी स्थान को अंदर सिकोड़ लें। इसे क्रमस: मूलबंध व उद्यानबंध कहते हैं। श्वास पूरा भरने के बाद ठोड़ी से कंठकूप पर दबाव डालें। इसे जालंधर बंध करते हैं। इस प्रकार त्रिबंध के साथ किया गया उक्त प्राणायाम पूरा लाभदाई सिद्ध होगा एवं चमत्कार पूर्ण परिणाम दिखायेगा।
Tribandha Vivek: Before inhaling, contract the anus and navel space inside. It is called Moolbandha and Udyanbandha respectively. After filling the breath, apply pressure on the larynx with the chin. It is tied to Jalandhar. In this way, the above Pranayama done with Tribandha will prove to be very beneficial and will show miracle full results.
नेत्र स्थिति : इस पूरी प्रक्रिया के दौरान आंखों की पलक न गिरे। ईष्ट, गुरु, ओम अथवा स्वास्तिक की प्रतिमा या चित्र अथवा दीपक की लौ पर आंखों की पुतली को स्थिर करें। आंखें पूरी खुली रखने से शक्ति बाहर बहकर क्षीण होती है और बंद रखने से मनोराज्य होता है। आंखें आधी खुली आधी बंद रखें।
एकाग्रता का दूसरा प्रयोग है जिह्वा को बीच में रखने का। जिह्वा तालू में न लगे और नीचे बिना छुए बीच में स्थिर रहे। मन उसमें लगा रहेगा और मनोराज्य नहीं होगा। परन्तु इससे भी अर्धोन्मिलित नेत्र ज्यादा लाभ करते हैं।
प्राणायाम के बाद त्राटक करने से एकाग्रता बढ़ती है। चंचलता कम होती है। मन शांत होता है। रात भर के किए हुए पाप सुबह के प्राणायाम से नष्ट होते हैं। प्राणायाम के पश्चात आधा या एक घंटा ध्यान करना बड़ा लाभदायी है।
Eye position: The eyelids should not drop during this whole process. Fix the pupil of the eye on the image or picture of Ishta, Guru, Om or Swastika or on the flame of the lamp. By keeping the eyes completely open, the energy flows out, and by keeping them closed, there is a state of mind. Keep your eyes half open and half closed.
Another use of concentration is to keep the tongue in the middle. The tongue should not touch the palate and remain fixed in the middle without touching the bottom. The mind will remain engaged in it and there will be no mental state. But even this semi-conjunctive eyes benefit more.
Doing tratak after pranayama increases concentration. Flexibility is less. The mind becomes calm. Sins committed overnight are destroyed by Pranayama in the morning. Meditating for half an hour after pranayama is very beneficial.
बौधायन संहिता के अनुसार “चंद्रमा शांत हो जाए और सूर्य का उदय ना हो उस समय सब देवताओं (इंद्रियों) का विलय और सब मंत्रों का उदय होता है। इस संधि काल की अवस्था में मंत्र जागृत होते हैं। इस अमूल्य समय में सोए रह कर इसे खोये नहीं बल्कि प्राणायाम जप, ध्यान में मन लगाकर आध्यात्मिक उन्नति के साथ शारीरिक स्वास्थ्य तथा मानसिक एकाग्रता प्राप्त करें।
According to the Baudhayana Samhita, “When the moon becomes calm and the sun does not rise, then all the deities (senses) merge and all the mantras rise. Mantras are awakened during this sandhi period. By sleeping in this priceless time.” Do not lose it, but get physical health and mental concentration along with spiritual progress by concentrating in Pranayama chanting, meditation.
प्राणायाम करते-करते सिद्धि होने पर मन शांत हो जाता है। मन की शांति और इंद्रियों की निश्चलता होने पर बिना किए भी कुंभक होने लगता है। प्राण अपने आप ही बाहर या अंदर स्थित हो जाता है। यह केवल बिना प्रयत्न के कुंभक हो जाने पर केवली कुंभक की स्थिति मानी गई है। केवली कुंभक सिद्ध होने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होने लगती है।
By doing Pranayama, the mind becomes calm when it is accomplished. If there is peace of mind and stillness of the senses, even without doing Kumbhaka starts happening. Prana automatically becomes situated outside or inside. It is considered to be the state of Kevali Kumbhak only when it becomes Kumbhaka without effort. When Kevali Kumbhak is proved, all the wishes start getting fulfilled.