Aakahgamini Vidya

दोस्तों ! आज से करीब 40 साल पहले हॉलीवुड की अभिनेत्री मैकमिलन एक बार भूटान की पर्वतीय प्रदेशों की यात्रा पर गई थीं । उन्होंने अपनी यात्रा से संबंधित संस्करण में लिखा है कि उन्होंने आकाश में पीत वस्त्रधारी एक लामा को उड़ते देखा। आश्चर्यजनक दृश्य को देखकर उनके मुख से निकल पड़ा काश ! आज न्यूटन और आइंस्टीन यहाँ होते तो वे अपने गुरुत्वाकर्षण से संबंधित लंबे चौड़े शोध ग्रंथों को फाड़ कर फेंक देते।यह एक सशक्त प्रमाण है कि आकाशगामिनी विद्या अभी भी भारत में जीवित है। 

चक्रपाणि महाशय बहुत बड़े विद्वान थे और उन्होंने आकाश गामिनी विद्या का जो ऐतिहासिक विवरण और सांस्कृतिक स्वरूप का वर्णन किया वह निश्चय ही मेरे लिए बहुत ही मूल्यवान है। मैंने चक्रपाणि महाशय से पूछा कि क्या आकाश गमन की विद्या भारत में अभी भी है तो इस विषय में चक्रपाणि ने बताया कि 12 वी और 14वीं शताब्दी के बीच चिकित्सा शास्त्र में बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी गई। इन रचनाओं में ऐसी एक गुटका का निर्माण और विधि लिखी गई है जिससे आकाश गमन यानी आकाश विचरण की सिद्धि मिल जाती है। वास्तव में यह तमाम पुस्तके प्राचीन विद्याओं की स्मृति मात्र हैं जिन्हें संकलित करना रचनाकारों ने अपना कर्तव्य समझा। कुछ प्राचीन विधियां अभिज्ञात हैं। यदि उन्हें सही ढंग से सिद्ध कर लिया जाए तो आकाश में उड़ने की शक्ति प्राप्त हो सकती है। 

खेचरी गुटिका 

चक्रपाणि महाशय ने बताया कि ऐसी ही एक विधि आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य के गुरु द्वारा रचित – “रस तंत्र” अध्याय 19 में लिखी गई है जो इस प्रकार है। सर्वप्रथम पारद को दुगबंधी बनाए। हीरा, माणिक्य, नीलम, मोती और मरकत इन 5 रत्नों का उसमें क्रमशः जारण मारण करें। फिर सुवर्णबिजयुक्त पारद के साथ अभ्रक सत्व, स्वर्ण माक्षिक सत्व तथा कांतापाषाण सत्व मिलाकर गुटका बनावे। इसे खेचरी गुटिका कहते हैं। यह गुटिका मुख में धारण करते ही अपना प्रभाव दिखाती है। वह मनुष्य सुर, असुर, मनुष्य और सिद्धगड़ सभी का पूज्य हो जाता है। यह क्रिया कठिन अवश्य है क्योंकि खेचरी गुटिका बनाने की विधि ग्रंथ में सूत्र रूप में है। गुरु के बिना उसे सफलतापूर्वक कर पाना शायद संभव हो सके। 

पारद को धूमबँधी बना पाना भी साधारण बात नहीं है। फिर भी तत्वों की जागरण मारण क्रिया भी कोई नहीं जानता। यदि पुस्तकों की सहायता से यह क्रियाएं की भी जाए तो भी मार्गदर्शक और अनुभव सिद्ध गुरू की आवश्यकता बनी रहेगी। यदि विद्वान और विनम्र रस शास्त्री अपने विवेक की सहायता तथा कठोर परिश्रम करे तो इस क्रिया को सफलतापूर्वक संपन्न कर सकते हैं। 

यह सब सुनकर मुझे ऐसा लगा कि चक्रपाणि महाशय ऐसी ही कोई न कोई गुटिका के निर्माण की विधि अवश्य जानते होंगे। इस संबंध में पूछने पर उन्होंने बताया कि खेचरी गुटिका के निर्माण की एक और विधि भी है। काले धतूरे के बीजों को 8 तोले तेल में टंक ( आधा छटाक) शुद्ध पारे को 7 दिन तक लगातार घोटे। जब पारा जौ  के आकार का हो जाए तो उड़द के चूने को गीलाकर उसमें पारे को भलीभांति बंद कर दे। ऊपर से धागे से बांधकर धूप में उसे सुखाये। उसके बाद सरसों के एक सेर तेल में उसे पकाएं। जब सारा तेल जल जाए तो उसे शीतल छाया में रख दें। इसके बाद उसे लेकर जलांशहीन दूध से भरे घड़े में रख दें। जब वह गुटिका सारे दूध को सोख ले तो उसे घड़े से निकालकर काले बकरे के मुंह में रख दे। बकरे के मुख में भयानक जलन होने लगेगी फिर उसी प्रकार की जलन हृदय और पेट में भी होने लगेगी। बकरा अशांत और व्याकुल हो उठेगा। जब वह मर जाए तो उसके पेट से गुटका को निरापद जानकर बाहर निकाल लें और अपने मुख में धारण करें। वह गुटिका यौन रोग, मुख रोग, कर्कट रोग आदि समस्त भयंकर प्राणघातक रोगों को तत्काल नष्ट कर देती है। शरीर यौवन संपन्न, स्वस्थ और आकर्षक हो जाता है।  इतना ही नहीं वह 100 योजन यानि 400 मील तक बिना किसी रूकावट के आकाश मार्ग से कहीं भी जा सकता है। यदि बकरे के स्थान पर मुर्गे का प्रयोग किया जाए तो गुटिका के प्रभाव से मनुष्य अंतर्ध्यान भी हो सकता है। अपने यौवन को अक्षुण भी बनाए रख सकता है। यदि इसी प्रकार बकरे और मुर्गे के स्थान पर तीतर का प्रयोग किया जाए तो मनुष्य आकाश मार्ग के संचरण, विचरण और गमन करने वाले सिद्धों, योगियों और यहां तक की यक्ष, गंधर्व तथा दिव्य शरीर धारी महापुरुषों को भी देख सकता है। लेकिन यह कार्य योग्य गुरु की देखरेख में होना चाहिए। यह विधि थोड़ी कम कठिन है। जिस पुस्तक से इसे चुना गया है वह प्रमाणिक तकनीकी की पुस्तक है।  इसलिए इस खेचरी गुटिका की सत्यता में संदेह नहीं है। 

खेचरी मुद्रा 

योग में एक खेचरी मुद्रा भी है जिसे खेचरी मुद्रा सिद्ध हो जाती है वह भी आकाश गमन करने में समर्थ होते हैं। हिमालय पर एक गुप्त आश्रम है जिसका  नाम है ज्ञानगंज मठ। उसमें निवास करने वाली योगियों को खेचरी मुद्रा सिद्ध है। वे  इच्छानुसार आकाश भ्रमण करते हैं उनके लिए कोई सीमा नहीं है। 

FAQ.

आकाश में उड़ने का तरीका क्या है ?

खेचरी मुद्रा क्या है ?

योगी आकाश में किस विद्या से उड़ते हैं ?

पारद शोधन क्या है ?

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