क्या आप जानते हैं कि कैलाश मानसरोवर में अभी भी बहुत सारे सिद्ध योगी गुप्त रूप से रहते हैं । हमारे जिन कैलाश मानसरोवर आदि पावन तीर्थों को चीन हड़प चुका है। वहां आज भी कैसे-कैसे महान सिद्ध त्रिकालदर्शी योगी महात्मा रहते हैं इसके संबंध में कुछ आंखों देखी आश्चर्यजनक सच्ची बातें सुनिये। कुछ समय पूर्व भारत के प्रसिद्ध आर्य सन्यासी महात्मा श्री आनंद स्वामी जी पिलखुआ पधारे थे। उन्होंने अपनी कैलाश मानसरोवर यात्रा के संबंध में बड़े महत्वपूर्ण भाषण दिए थे। उन्हीं में से कुछ प्रश्न यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।
अद्भुत आनंद की प्राप्ति (Adbhut Aanand Ki Prapti)
आनंद स्वामी जी महाराज ने बताया कि मैं कैलाश मानसरोवर की यात्रा करके आया हूं। कैलाश मानसरोवर जाना एक प्रकार से मृत्यु के साथ खिलवाड़ करना है। वहां ऐसी बर्फ पड़ती है कि शरीर ठंड से जम गया सा प्रतीत होने लगता है। मैं जब मानसरोवर और गौरीकुंड पहुंचा तब मेरे साथियों ने वहां स्नान नहीं किया। बहुत अधिक सीत होने के कारण उनकी हिम्मत ही नहीं हुई, पर मैं नहीं माना। मुझसे सब ने कहा कि स्वामी जी बहुत ठंड है, बर्फ पड़ रही है आप भी स्नान मत करो। कहीं ठंड में स्नान करने से निमोनिया हो जाएगा तो आप मर जाएंगे।
इस पर मैंने उनसे कहा कि जब मेरी पार्वती माता ने, मेरी गौरी माता ने इसमें स्नान किया है तो भला मैं इसमें स्नान क्यों नहीं करूंगा। मैं यहां मरूंगा तो पवित्र स्थान पर ही मरूंगा। इससे बढ़कर मेरा परम सौभाग्य और क्या होगा। मैंने अपने हाथों से बर्फ हटाकर जब अपने कमंडलु से बर्फ तोड़कर जल भरकर अपने एक हाथ पर डाला तो ऐसा लगा कि मानो हाथ ही नहीं रहा। जब दूसरी ओर जल डालकर स्नान किया तो वहां भी ऐसा ही प्रतीत हुआ। जब अपने सिर पर डाला तो सारा शरीर ही जैसे न रहा हो ऐसा प्रतीत हुआ। तदनंतर मैं कंबल ओढ़ कर वहां ध्यान करने बैठे गया। मुझे वहां बैठे 6-7 घंटे हो गए। ऐसा अद्भुत आनंद आया कि मुझे भान ही नहीं रहा कि मैं यहां कब से बैठा हूं। मेरा मन एकदम एकाग्र और शांत हो गया।
जो महान सुख और अद्भुत आनंद मैंने आज पाया वैसा मैंने जीवन भर में कभी नहीं पाया। तीर्थ यात्रा करने से क्या लाभ है, तीर्थ यात्रा क्यों की जाती है और तीर्थ स्थान का क्या प्रभाव है इसका मुझे अपने जीवन में आज पहली बार अनुभव हुआ। गाइड ने आकर जब मुझे अपने हाथों से झकझोरा तब मुझे होश हुआ। मैंने गाइड से कहा कि तुमने मुझे व्यर्थ ही क्यों छेड़ा। मैं तो दिव्यानंद में डूब रहा था। तुमने मुझे छेड़कर मेरे आनंद में विघ्न डाला। यह ठीक नहीं किया। गाइड ने कहा – महाराज आपको यहां बैठे 6-7 घंटे से भी अधिक हो गए हैं। अब दिन छिपने वाला है, बर्फ भी पढ़नी आरंभ हो गयी है। अब आप यदि और अधिक बैठे तो बर्फ में जम जाओगे और मर जाओगे।
मैंने कहा कि मुझे भले ही मर जाने दो, पर मुझे ऐसा सुख फिर कहां मिलेगा। उसने कहा महाराज यहां मत मरो ! मेरी जिम्मेदारी है, इसलिए अब आप उठो ! उसके बाद मैं वहां से उठा, फिर मैंने सारे पहाड़ की ओर दृष्टि डाली तो चारों ओर बर्फ ही बर्फ जमी थी और वह साक्षात शंकर भगवान का मंदिर सा प्रतीत हो रहा था।
मैंने वहां एक बड़ा ही अद्भुत दिव्य स्थान देखा। सारे पहाड़ पर बर्फ जमी होने पर भी बीच में वह स्थान था जहां बिल्कुल भी बर्फ नहीं थी। कहते हैं कि यह वही दिव्य स्थान है जहां बैठकर श्री शिव जी ने श्री पार्वती जी को अमर कथा सुनाई थी। मैंने अपने गाइड से कहा कि तुम मुझे वहां पर ले चलो जहां भगवान शंकर जी ने माता पार्वती को अमर कथा सुनाइ थी। उसने कहा महाराज ! वहां कोई नहीं जाता है, उधर बहुत ज्यादा बर्फ है और जाने का कोई रास्ता भी नहीं है। वह मुझे बहुत मना करता रहा पर मैं नहीं माना, मैंने उससे कहा कि मैं तो वहां अवश्य ही जाऊंगा। मैं वहां गया, पर बड़े ही कष्ट से गया। कहीं पर बर्फ से फिसल कर गिरा, कहीं पैर फिसला तो कहीं चोट लगी। अंत में जैसे तैसे मैं वहां पहुंच गया और मैं उस दिव्य अद्भुत स्थान पर बैठकर आया, जहां शंकर भगवान पार्वती जी को कथा सुनाया करते थे। वहां बैठते ही मेरा मन एकदम शांत हो गया और मुझे एक प्रकार से समाधि सी लगने लगी। वहां से उतरने पर मैंने देखा कि एक मद्रासी साधु बेहोशी की हालत में एक किनारे पर मुर्दा जैसा पढ़ा हुआ था।
कहते हैं की मना करने पर भी उसने कुंड में स्नान के लिए छलांग लगा दी थी। इसी से ठंड के मारे बेहोश हो गया था और अब उसके बचने की कोई आशा नहीं थी। मैंने गाइड से कहा और उस साधु को एक झब्बू पर लदवाया फिर उसे बेहोशी की हालत में ही नीचे लाया गया। तदनंतर उसे अग्नि से तपाया गया तब उसे कुछ होश आया। वहां जलाने की लकड़ी बिल्कुल नहीं मिलती। वृक्षों का भला वहां क्या काम। बकरियों की मैंगनी ही वहां पर जलाई जाती है।
योगी प्रणवानंद जी महाराज के दर्शन (Siddh Yogi Ke Darshan)
योगी स्वामी श्री प्रणवानंद जी महाराज मानसरोवर में लगभग 20 वर्ष रहते हैं। मैंने जब उनकी कुटिया में जाकर देखा तो मुझे वे पूर्व परिचित से प्रतीत हुए। याद आते ही मैंने कहा – सोमयाजी ! सोमयाजी !! वह भी मेरी ओर देखने लगे। वह 20 वर्ष पूर्व जब लाहौर में रहते थे तब कुछ दिनों तक मेरे पास रहे थे। उस समय वे राजनीति में भाग लिया करते थे। मैंने उन्हें जब इस बात का स्मरण दिलाया तो उन्हें भी याद आ गया, और उन्होंने मुझसे कहा कि मैं 20 वर्ष पहले राजनीति में भाग लेता था और राजनीतिक नेताओं के साथ मिलकर काम किया करता था। पर जब मैंने देखा कि राजनीति में भाग लेने वाले प्रायः सभी चरित्र भ्रष्ट हैं, तब मेरे मन में बड़ी ग्लानि हुई और मैं एकदम वहां से हटकर यहां चला आया। तब से योगाभ्यास करता हुआ मैं यहीं पर रहता हूं। मैंने जब उनसे पूछा कि “आपने योग में क्या सीखा है ? तब उन्होंने मुझे कुछ क्रियाएं दिखायी।
प्राणायाम द्वारा लंबे-लंबे स्वास खींचे और पेट, छाती, टांग, बांह, सिर सभी को फुटबॉल की तरह फुला दिया। फिर एकदम बैठे-बैठे उनका आसन पृथ्वी से ऊपर उठ गया और ऊपर छत तक लग गया, फिर नीचे आ गया। उनके योग का यह आश्चर्यजनक चमत्कार मैंने अपनी आंखों से देखा। उन्होंने और भी बहुत सी योग की बातें बताएं जो सर्वसाधारण के सामने नहीं बताई जा सकती।
अदृश्य हो जाने वाले सिद्ध योगी के दर्शन (Adrishya Hone Wale Yogi Ke Darshan)
यात्रा से लौटते समय मुझे एक दूसरे स्थान पर महान सिद्ध योगी मिले। मुझे उनके दर्शनका ही परम सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ बल्कि उनसे मेरी खूब बातें भी हुई। संध्या का समय था। उस दिन वर्फ भी खूब पढ़ रही थी। मेरे सब साथी अपने अपने तंबू में बैठे थे। मैं तंबू से बाहर निकला। मैं खड़ा होकर कहने लगा कि हम यह सुना करते थे कि कैलाश में देवी-देवताओं का निवास है और वहां बड़े-बड़े सिद्ध योगी रहते हैं, पर यहां पर हमें तो कोई भी सिद्ध योगी नहीं मिला, फिर हम कैसे माने कि यहां कोई सिद्ध योगी रहते हैं। मेरा इतना ही कहना था कि वहां मेरे सामने अचानक एक योगी प्रकट होकर खड़े हो गए। मैंने उनकी ओर आश्चर्य के साथ देखा।
उस योगी के सारे शरीर पर भस्म लगी हुई थी। वह बड़े ही भव्य और सुंदर प्रतीत हो रहे थे। मैंने उन्हें नमस्कार किया और उन्होंने मुझे अपने हृदय से लगा लिया। फिर उन्होंने मुझसे कहा कि तुम जो यह कहते थे कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा में कोई सिद्ध योगी नहीं मिला तो योगी मिले कहां से ? योगी की कोई खोज भी तो नहीं करता। जो खोज करता है उसे अवश्य मिलते हैं। इतने में ही मैंने क्या देखा कि वह परम सिद्ध योगी मेरे देखते ही देखते तुरंत अदृश्य हो गए। मैंने इधर उधर देखा तो कहीं पर भी दिखाई नहीं पड़े। मुझे बड़ा भारी आश्चर्य हुआ कि ऐसे पहाड़ों पर जहां बर्फ ही बर्फ पड़ रही है।
वृक्ष का नाम निशान भी नहीं है और कोई मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी भी नहीं रहता। फिर यह योगी यहाँ कैसे रहते हैं। और मेरे मन की बात इन्हें कैसे मालूम हो गई। फिर एकदम अदृश्य कैसे हो गए। मुझे लगा कि कहीं मैंने यह स्वप्न तो नहीं देखा है या मुझे कोई भ्रम तो नहीं हो गया है। मैंने अंदर अपने तंबू में आकर टॉर्च जलाकर गौर से देखा तो रोशनी में मुझे सचमुच अपने कपड़ों पर योगी के शरीर की भस्म लगी दिखाई दी। तब तो मुझे पूरा निश्चय हो गया कि यह सपना या भ्रम नहीं था, वरन बिल्कुल सत्य घटना थी। वास्तव में ही मुझे महान सिद्ध योगी के दर्शन करने का परम सौभाग्य प्राप्त हो गया है, और सचमुच यहां बड़े-बड़े सिद्ध योगी निवास करते हैं।
दूसरे दिन सिद्ध योगी से भेंट (Siddh Yogi Se Mulakat)
दूसरे दिन प्रातः काल मैंने अपने गाइड से, जिसका नाम संभाजी था कहा कि “संभाजी बताइए यहां पर कोई योगी महात्मा रहते हैं ? संभाजी ने कहा कि महाराज ! एक योगी तो रहते हैं। मैंने उनसे कहा कि ‘तुम मुझे उन योगी के दर्शन कराओ ।’ संभाजी ने कहा “महाराज उनके पास जो जाता है वह उसे खा जाते हैं।” मैंने कहा तुम इस बात की परवाह मत करो कि वे योगी मुझे खा जाएंगे। तुम मुझे उनके दर्शन अवश्य करा दो। उन्होंने कहा ‘महाराज मेरी हिम्मत नहीं है कि मैं वहां जाऊं’, वह मुझे जाते ही खा जाएंगे। मैंने कहा अच्छा तुम्हारी जाने की हिम्मत नहीं है तो तुम ना जाओ, पर तुम मुझे वहां का रास्ता बता दो। मैं स्वयं वहां चला जाऊंगा। मुझे बहुत मना करते रहे अंत में मेरे बार-बार आग्रह करने पर मेरे साथ चले और कुछ दूर से ही रास्ता बताने को तैयार हो गए। उन्होंने मुझसे चलती बार कहा कि महाराज आपको कहीं वह योगी खा गया तो हम जिम्मेदार नहीं हैं। अब आप जानो ?’ मैंने कहा कि तुम इस बात की तनिक भी चिंता मत करो, मुझे उनके स्थान की पहचान बता दो। उन्होंने दूर से अपने हाथ का निशाना करके बताया कि सीधे कुछ दूरी पर चलने पर नीचे की ओर इस प्रकार का एक पत्थर आएगा, उसके पास एक और पत्थर है उसे हटा देना उसी गुफा के अंदर योगी रहता है।
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इस तरह बताकर पीछे हट गए और अपने स्थान पर लौट गए। मैं धीरे धीरे चल कर वहां पहुंचा। वहां जाकर मैंने वह पत्थर हटाया और गुफा में देखा वे गत रात्रि को दर्शन देने वाले महान सिद्ध योगी महात्मा ही सारे शरीर पर भस्म लगाए हुए विराजमान थे। उन्होंने मुझे देखा और बड़े प्रेम से पास बुला लिया। अब तो मेरी उनसे खूब खुलकर बात हुई। मैंने उनसे पूछा महाराज क्या यह बात सत्य है कि आपसे जो मिलने आता है उसे आप मारकर खा जाते हैं ? उत्तर में उन्होंने हंसते हुए कहा कि ‘क्या मैं कोई राक्षस हूँ जो मनुष्य को खा जाता हूँ।” कोई मनुष्य मेरे पास तक न आए इसलिए यह डर दिखाया हुआ है और कोई बात नहीं है। मैं किसी को खाता नहीं हूँ ।’
उनसे योगी संत से मेरी बातें होती रही उन्होंने बहुत सी ऐसी बातें भी बतायी, जिनको किसी दूसरे मनुष्य को बताने से मुझे मना कर दिया। इधर मैं उनसे बात कर रहा था और बहुत देर होने के कारण उधर हमारे साथियोंमेँ मेरे न लौटने से बड़ी चिंता हो रही थी। यह सोच रहे थे योगी ने उन्हें मार कर खा तो नहीं लिया। वह दूर से मेरा नाम ले लेकर के आवाज दे रहे थे, पर उनकी इतनी हिम्मत नहीं थी कि जो मेरे पास में आ सके।
मुझे इस बात का कुछ भी पता नहीं था। उन सिद्ध योगी को वहां बैठे-बैठे सब पता चल गया और उन्होंने कहा कि अच्छा ! अब तुम जाओ, तुम्हारे साथी बहुत घबरा रहे हैं। वह बड़े व्याकुल हो रहे हैं। उन्हें चिंता हो गई है कि कहीं योगी ने तुम्हें मार कर खा न डाला हो। मैंने कहा – ‘महाराज आपको यह कैसे मालूम हो गया कि वह बड़े चिंतित हो रहे हैं ? आप तो यहां बैठे हैं ? उन्होंने उत्तर दिया – ”रात्रि को जब तुमने यह कहा था कि हमें कैलाश मानसरोवर की यात्रा में कोई योगी नहीं मिले, तब बताओ मुझे कैसे मालूम हो गया था और मैंने उसी समय प्रकट होकर तुम्हें कैसे दर्शन दिए थे ? मुझे भूत, भविष्य, वर्तमान सब का ज्ञान है। अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, जर्मनी, हिंदुस्तान आदि देशों में कहां कब क्या हो रहा है, इसकी भी मुझे सब पता है।’
मैं उन त्रिकालज्ञ सिद्ध योगी को नमस्कार करके अपने स्थान लौट आया। आकर देखा तो मेरे साथी वास्तव में बहुत घबराए हुए थे और बहुत ही चिंतित थे। मुझे योगी के पास से जिंदा वापस लौटा देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए। मैंने उन महान योगी से भेंट करके अपने जन्म को सफल माना। इससे मुझे जो प्रसन्नता हुई वह वर्णनातीत है।
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