जिस प्रकार आपने जीवनशैली से जड़ुे रोगों के लिए डी आई पी डाइट (DIP Diet) को सीखा, एन.आई.सी.ई. (N.I.C.E) प्रोटोकॉल को सीखा या 3 स्टेप फ्लू डाइट(3 step flu Diet) की मदद से संक्रामक रोगियों का उपचार किया । उसी तरह आज हम आपको ग्रेड सिस्टम की जानकारी दने लेजा रहे हैं।
ग्रेड सिस्टम (GRAD System)
(Gravitational Resistance and Diet system) ग्रेड सिस्टम का अर्थ है: ग्वीट रेशनल रजिेस्टेंस और यह सिस्टम कई मेडिकल एमर्जेंसी में अधिक तेज़ी से, सुरक्षित तरीके से लंबे समय तक रोगी को निरोगी रखता है। यह तकनीक बहुत कम खर्च में रोग का उपचार करती है और रोगी अपनी चिकित्सा के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहता ।
मैं आपको चनौती देता हूँ कि आप अपने किसी भी ऐसे परिचित रोगी पर इसे आज़मा कर देखें जो डायलसिस करवा रहे हों । वे निश्चित रूप से स्वस्थ होकर आपके सामने होंगे। रेड सिस्टम में 70 प्रतिशत रोगियों का डायलसिस तत्काल बंद हो जाता है।
यह हम मृत्यु सभी जानते हैं कि जो भी संसार में जन्मा है, उसकी मृत्यु अवश्य होगी परतु यदि हम किसी को असमय से बचा सकते हैं तो क्यों न उस उपाय को आज़माया जाए। यह जानकारी आपको केवल कल्पना के आधार पर नहीं दी जा रही । हमारे पास अपनी बातों के लिए यथेष्ट प्रमाण मौजूद हैं जो पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
- ब्लड प्रेशर के सौ प्रतिशत रोगी बिना किसी दवा के तत्काल अपने रक्तचाप को नियंत्रित कर सकते हैं।
- यदि किसी को हार्ट अटैक आ रहा हो तो उस व्यक्ति के प्राणों की रक्षा करना संभसं व हो जाता है।
- यह ग्रेड सिस्टम लीवर सिरोसिस को रोक सकता है।
- अनिद्रा रोग का उपचार करता है।
- यदि किसी व्यक्ति को कोई विषैला कीट-पतंगा आदि काट ले और तेज़ दर्द हो रहा हो तो यह सिस्टम उसका भी तुरंत उपचार करते हुए पीड़ा का प्रबंधन करता है।
- यह ग्रेड सिस्टम हर प्रकार के न्यूरोडिजेनेरटिव रोगों के प्रभावी इलाज में भी सक्षम है जिनमें आप पार्किन्सन और अल्ज़ाइमर का नाम भी ले सकते हैं। वे रोगी भी इस उपचार से लाभान्वित होंगे।
यदि हम अपनी पृष्ठभूमि की बात करें तोें जब हमारे एन.आई.सी.ई. (N.I.C.E) विशेषज्ञों के पास ऐसे रोगी आये जिन्हें साँस लेने में बहुत तकलीफ़ हो रही थी । जिनके फेफड़ों में दिक्कत आ रही थी या निमोनिया हो गया था तो ऐसे में हमारे विशेषज्ञों ने क्या किया ।
दो चरणों वाली चिकित्सा
उन्होंने दो चरणों में रोगियों को चिकित्सा प्रदान कीः प्रथम चरण में प्रोन वेंटीलेशन (Prone Ventilation) दिया गया । गुरुत्वाकर्षण प्रतिरोध का प्रयोग करते हुए, रोगी को पहले आपातकाल से बाहर निकाला और फिर उसे स्थायी रूप से रोगमुक्त करने का प्रयास किया गया । शरीर और ग्रेविटी के संबंध का लाभ उठाया गया । कुछ ही मिनटों में रोगी का ऑक्सीजन का स्तर बढ़ने लगा और कुछ घंटों की प्रोन वेंटीलेशन स्थिति के बाद उसमें इतना सुधार आ गया कि अब उसे प्रोन वेंटीलेशन की जरूरत नहीं रही । इसके विपरीत अस्पताल में ले जाते ही ऐसे रोगियों को गभीर घोषित कर वेंटीलेटर पर डाल दिया जाता है और कहा जाता है कि उसके फेफड़े काम नहीं कर रहे इसलिए वेंटीलेटर उसके शरीर को ऑक्सीजन दने का काम करेगा । महीनों इस स्थिति में रहने के बाद अगर कोई रोगी जीवित बच कर आ भी जाता है तो उसके जीवन की सारी कमाई अस्पताल के नाम पर व्यय हो चकी होती है। वह भी गनीमत हैकि अगर रोगी बच जाए अन्यथा वेंटीलेटर के मामले में रोगी की मौत लगभग सुनिश्चित है।
तो पहले चरण में हमने रोगी के ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाया और फिर 3 स्टेप फ्लू डाइट (3 step flu Diet) और डीआईपी डाइट (DIP Diet) के माध्यम से शरीर में मृत पड़ चुकी कोशिकाओ यानी डेड सैल को जीवित करने का कार्य किया ।
यह कुछ ऐसा ही हुआ कि स्कूटर में तेल नहीं था, उसे टेढ़ा करके बचे-खचुे तेल को इंजन तक पहुचा कर स्कूटर को चलने लायक बनाया गया और स्कूटर पेट्रोल पप तक पहुचा गया जहा उसके लिए ईधन ही ईधन था ।
पहले हमने एमर्जेंसी का प्रबंधन किया और दूसरे चरण में चोट खाई हुई या मृत कोशिकाओ को जीवित करने की प्रक्रिया में डाइट का सहारा लिया । ठीक यही बात किडनी के रोगी या फिर डायलसिस करवानेवाले व्यक्ति के लिए कही जा सकती है।
किडनी की घटी हुई कार्य क्षमता
यदि किसी रोगी की किडनी फेल हो जाती है तो इसका अर्थ होता है कि उसकी किडनी या गुर्दों की कोशिकाए कम काम करने लगी हैं या बहुत सारे किडनी सैल मर चकुे हैं। उनकी कार्यक्षमता कम हो गई है। किडनी काम तो कर रही है परतं इतना काम नहीं कर पा रही कि अपनी सभी गतिविधियों को सही तरह से पूरा कर सके। किडनी कभी
पूरी तरह से काम करना बद नहीं करती, उसकी कार्यक्षमता कम अवश्य हो सकती है।
किडनी की कोशिकाओ को आप नेफरान्स भी कह सकते हैं। किडनी फेलियर से तात्पर्य है कि अधिकतम नेफरान्स कार्य करने में अशक्षम हैं या फिर मृत हो चकुे हैं। अब पहले हमें किडनी में मौजूद बचे हुए नेफरान्स तक पहूँचना है, जैसे हम आपातकाल में स्कूटर में बचे हुए तेल तक पहुंचे। उसमें जिस तरह गुरुत्वाकर्षण प्रतिरोध का प्रयोग करते हुए स्कूटर को चलने लायक बनाया था । यहा भी उसी तरह किडनी को आपातकाल से बाहर लाना है और फिर जिस तरह स्कूटर को पेट्रोल पंप पहुँचा कर भरपूर पेट्रोल दिया गया था, उसी तरह किडनी में नए नेफरान्स बनाने हैं ताकि वह पूरी तरह से रोगमुक्त हो सके। इस तरह किडनी के रोगी को डायलसिस करवाने की आवश्यकता नहीं रहेगी ।