एक बार कबीर दास रात को सोये थे। उन्होंने रात में एक स्वप्न देखा। स्वप्न में देखा कि मैं एक बकरा हो गया हूं, और घूम-घूमकर घास खा रहा रहा हूं। यह सपना देखकर सुबह उठे तो बहुत उदास थे। उनके शिष्य पूछने लगे, कभी आपको उदास नहीं देखा, इतने उदास क्यों हो? चेले उदास होते थे, तो पूछते थे कबीर दास से और मार्ग पाते थे। और कबीर जी को तो कभी किसी ने उदास देखा नहीं था।
कबीर दास ने कहा, क्या बताऊं, क्या फायदा है, एक बहुत उलझन में पड़ गया हूं। रात एक सपना देखा कि मैं बकरा हो गया हूं !
शिष्य कहने लगे, महाराज इसमें चिंता की क्या बात है? आप तो कबीर हैं।
कबीर दास ने कहा, मैंने सपना देखा यह चिंता का विषय नहीं है, लेकिन सुबह उठने पर मुझे एक खयाल ने घेर लिया है और वह यह कि रात हमने सपना देखा कि बकरा हो गया हूँ तो कहीं ऐसा तो नहीं है कि अब बकरा सो गया हो और सपना देखता हो कि मैं आदमी हो गया हूँ?
अगर आदमी सपने में बकरा हो सकता है, तो बकरा भी तो सपने में आदमी हो सकता है? तो कबीरदास कहने लगे, मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं कि मैं असली में आदमी हूं या जिसने बकरा का सपना देखा वह बकरा हूं जो आदमी का सपना देख रहा है वह कैसे तय करे कि सही क्या है?
हम यह कैसे तय कर सकते हैं कि जो रात में हम देखते हैं वह सपना है या जो दिन में हम देखते हैं वह सपना है। हम यह कैसे तय करेंगे कि जाग कर जो हम देखते हैं वह सच है या सपना है। जब तक हम यह सुनिश्चित न कर लें कि जो हम जी रहे हैं वह सपना है या सत्य है, तब तक हमारे जीवन का कोई अर्थ नहीं मालूम पड़ता।
जो भी इस सत्य को जानना चाहता है, उसे स्वप्न से जागना पड़ेगा। लेकिन जब रात को हम सोते हैं तो दिन को भूल जाते हैं, यह भी भूल जाते हैं कि हम कौन हैं, क्या हैं। हम धनी हैं या गरीब हैं, जवान हैं या वृद्ध, सब कुछ भूल जाता है, जो जागे हुए पर सब मालूम था लेकिन स्वप्न में सब भूल जाता है।
फिर स्वप्न से जैसे ही उठते हैं तो सपने का सब कुछ भूल जाता है। जाग कर हम कहते हैं, सपना झूठा था। क्योंकि जागरण ने उसे भुला दिया। तो निद्रा में भी हमें कहना चाहिए कि जो जाग कर देखा था, वह भी झूठा था।
मजे की बात यह है कि जागकर तो हमें खयाल रहता है कि सपना देखा था, लेकिन सपने में हमें कभी अपने जागने का थोड़ा भी खयाल नहीं रहता कि हम दूसरे जगह भी थे या हम कभी जागे हुए भी थे। जागने के बाद तो सपने की थोड़ी स्मृति मालूम पड़ती है। सपने में तो जागने की इतनी भी स्मृति नहीं मालूम पड़ती। आदमी इतना भूल जाता है कि सब खो जाता है। फिर इस जीवन का सत्य क्या है ? इसे खोजना चाहिए।
FAQ. :
संसार क्यों एक सपना है? (Sansar kyon ek sapna hai ?)
कैसे जाने की यह दुनिया है सुनने दा संसार? (Kaise Jane ki yah dunia hai supneya da sansar ?)
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