शरीर को बज्र बनाने वाली औषधि का नाम है हीरा भस्म । रससिंदूर युक्त हीरा भस्म में कपूर, खांड तथा छोटी इलायची के बीज का चूर्ण मिलाकर इसको दूध के अनुपान के साथ निरंतर 6 महीने तक सेवन करने तथा मधुर पदार्थों के सेवन करने से पुरुष में अनेक स्त्रियों के साथ समागम करने की शक्ति आती है।
परिचय : आयुर्वेद में हीरा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र भेद से चार प्रकार का होता है। क्षत्रिय जाति के हीरा में सफेद वर्ण होते हुए भी इसमें लाल झाई होती है। यह बुढ़ापा और सब रोगों को नष्ट करने वाला होता है। ब्राह्मण
जाति का हीरा सफेद वर्ण का होता है। यह रसायन कार्य के लिए उत्तम है। वैश्य जाति के हिरे में कुछ पीली झाई होती है। यह धनदायक और शरीर को दृढ़ करने वाला है। शूद्र जाति के हीरे में थोड़ी काली झाई होती है। यह व्याधि नाशक और एंटी एजिंग का काम करता है।
इसी तरह पुरुष, स्त्री और नपुंशक भेद से तीन जातियां इनकी और बतलायी गयी है। इनमें पुरुष जाति का हीरा उत्तम, गोल, रेखा तथा बिंदु से रहित चमकदार और बड़े आकार का होता है और स्त्री जाति का रेखा और बिंदु से युक्त होने छह कोनेवाला होता है। नपुंसक जाति का हीरा त्रिकोण युक्त बड़े आकार का होता है। इसमें पुरुष जाति का हीरा सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इसका प्रयोग सब रोगों तथा अवस्थाओं में होता है। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार हीरा शुद्ध काजल (कार्बन) है। भूगर्भ में अत्यधिक भार के दबाव और ताप से यह काजल अत्यंत उज्ज्वलवर्ण और कठोर रूप में बदल जाता है। इसका विशिष्ट गुरुत्व 3 और काठिन्य 10 होता है।
उत्तम हीरा की परीक्षा
उत्तम हीरा को कसौटी पर जोर से देर तक कि घिसने अथवा किसी दृढ़ पत्थर पर खूब घिसने पर बिल्कुल नहीं घिसता बल्कि अपनी तेज नोक से कसौटी, कांच आदि को बड़ी आसानी से काट देता है।
शोधन विधि : Heera को एक प्रहार तक कुल्थी या कोदो के क्वाथ में दोला यंत्र विधि से स्वेदन करने से शुद्ध हो जाता है। दूसरी विधि : कोयले की तेज आंच पर हीरा को मूषा में रखकर गर्म कर 100 बार पारद में बुझाने पर शुद्ध हो जाता है।
भस्म-विधि : कुल्थी के क्वाथ में हींग और सेंधा नमक का चूर्ण मिलाकर रख लें। फिर इसके काढ़े में हीरा को उत्तम चिकने खरल में घोंटे। गोला बन जाने पर शराब सम्पुट में बंद कर लघु पुट में फूक दे। ऐसे 21 फुट देने से कुछ सुर्खी- मायल रंग की भस्म तैयार होगी। यदि सुर्खी न आवे तो एक खुला पुट देने से सुर्खी आ जाएगी।
दूसरी विधि : शुद्ध हीरे का चूर्ण, रस सिंदूर, शुद्ध मैनशील, शुद्ध गंधक प्रत्येक संभाग लेकर एकत्र खरल में मर्दन कर सम्पुट में अच्छी तरह बंद करके गजपुट में फूंक दें। इस तरह 14 फुट में हीरे की भस्म अवश्य हो जाती है। रस सिंदूर प्रथम में ही देना चाहिए।
मात्रा और अनुपान : 1 रत्ती उत्तम हीरा भस्म को एक उत्तम खरल में डालकर उसमें चार माशा उत्तम रस सिंदूर मिलाकर अच्छी तरह पीसकर रख लें। आवश्यकता पड़ने पर इसमें एक रत्ती से दो रत्ती तक की मात्रा में प्रयोग करें।
गुण और उपयोग : हीरा भस्म शरीर को सुदृढ़ बनाने वाली पौष्टिक, बलदायक और कामोत्तेजक है। यह शरीर के वर्ण को सुंदर करने वाला, सुखदायक तथा वात, पित्त, कुष्ठ, क्षय, भ्रम, कफ, शोथ, मेद, प्रमेह, भगन्दर और पाण्डु रोग नाशक है। यह सारक, शीतल, कसैला, मधुर, नेत्रों को हितकारी और शरीर को अपार शक्ति प्रदान करने वाला है।
Heera Bhasm नपुंसकता की अद्वितीय औषधि है। यह शरीर के सभी अंगों को बल देने वाला, आयुवर्धक, नेत्र ज्योतिवर्धक, वलवर्धक, त्रिदोषनाशक, वर्ण्य और मेधावर्धक है। हीरा भस्म, रस सिंदूर या मकरध्वज मिलाकर मलाई के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से भयंकर नपुंसकता नष्ट हो जाता है।
क्षय रोग में Heera Bhasm को स्वर्ण भस्म तथा रस सिंदूर के साथ मिलाकर सेवन करने से आश्चर्यजनक लाभ होता है।
रससिंदूर युक्त हीरा भस्म में कपूर, खांड तथा छोटी इलायची के बीज का चूर्ण मिलाकर इसको दूध के अनुपान के साथ निरंतर 6 महीने तक सेवन करने तथा मधुर पदार्थों के सेवन करने से पुरुष में अनेक स्त्रियों के साथ समागम करने की शक्ति आती है।
इसके सेवन से शरीर में सुंदरता, तीव्र पाचन शक्ति, अतुल बल और प्रखर बुद्धि की प्राप्ति होती है। हृदय की दुर्बलता एवं रक्तचाप वृद्धि रोड में हीरा भस्म ३ रत्ती को मुक्तापिष्टी 1 रत्ती के साथ मधु में मिलाकर देने से बहुत उत्तम लाभ होता है। डॉक्टरों से त्यक्त रोगी भी इससे अच्छे होते देखे गए हैं। कर्कट और व्रण में भी ताम्र भस्म आधी रत्ती के साथ मिलाकर देने से अच्छा लाभ होता है।