वीर्य शरीर का राजा होता है लेकिन मनुष्य जब भोग और वासना के चक्कर में इसका नाथ कर देता है तो उसका शरीर जीर्ण शीर्ण और रोगों का घर बन जाता है । 16 सितंबर 1977 के द न्यूयॉर्क टाइम्स में एक समाचार छपा था, “यू.एस. पेनल कहती है कि 2 करोड़ या उससे अधिक लोगों को मानसिक चिकित्सा की जरूरत है।” हालांकि बाद में कार्ल गुस्तेव जुंग, एडलर जैसे मूर्धन्य वैज्ञानिकों ने फ्रायड की पोल खोल दी और मार्टिन ग्रोस जैसे कई विद्वानों ने फ्रायड के प्रभाव से समाज को मुक्त करने का प्रयास किया, फिर भी अमेरिका आज तक इस समस्या से मुक्त नहीं हो सका। अपने चारित्रिक मूल्यों का पुनरुत्थान नहीं कर सका।
जैसे किसी नदी पर बनाए गए विशाल बाध को बिना उसकी उपयोगिता को समझे कोई तोड़ दे, फिर उससे होने वाले महाविनाश को देखकर वह उसे रोकने के लिए कितना भी प्रयास करें वह बांध फिर से तुरंत बांध नहीं सकता। वैसे ही धर्म ने जो नैतिक मूल्यों का बांध सर्दियों के परिश्रम से बनाया था उसे धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तोड़ देने से पाश्चात्य देशों का जो महाविनाश हुआ उसे रोकने के सब प्रयत्न विफल हुए हैं। नदी का बांध दूसरे वर्ष फिर से बना सकते हैं पर मनुष्य के चित्त पर जो धर्म और नीति के संस्कारों का बांध था उसका पुनर्निर्माण पाश्चात्य जगत वर्षों के बाद भी नहीं कर पाया और अभी तक उस महाविनाश को रोक नहीं पाया।
भोगवादी पाश्चात्य समाज में एक और समस्या का प्रादुर्भाव हुआ है। उसे ‘कुंवारी माता’ की समस्या कह सकते हैं। यूनिसेफ रिसर्च सेंटर फ्लोरेंस के द्वारा इनोसेंटी रिपोर्ट कार्ड नंबर 3 प्रकाशित किया गया। उसके अनुसार विश्व की दो तिहाई सामग्री का उत्पादन करने वाले 28 देशों में हर साल 12 लाख 50000 किशोरिया 13 से 19 वर्ष की उम्र में गर्भवती हो जाती है, उनमें से 500000 गर्भपात कराती हैं और 750000 कुंवारी माता बन जाती हैं। 12 में से 10 विकसित राष्ट्रों के 66% से अधिक किशोर-किशोरियाँ यौन जीवन में प्रवेश कर लेते हैं। इन कुंवारी माताओं के कारण वहां गरीबी की समस्या पनप रही है। ऐसी किशोरियां प्रायः पढाई छोड़ देती हैं। शिक्षा के अभाव से उनको नौकरी नहीं मिलती। फिर उनको मानसिक अवसाद से पीड़ित होकर पराधीन जीवन बिताना पड़ता है। उनके बच्चे भी पिता के न होने से सामाजिक अवहेलना का भोग बनते हैं।
शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते और फिर अपराधी या शराब के अथवा दवाइयों के नशाखोर बन वे समाज पर बोझ बन जाते हैं। इन 28 में से 14 देशों ने इस समस्या से मुक्त होने के लिए कुछ प्रयास किए हैं। अमेरिका में हर साल प्रत्येक 1000 किशोरियों में से 52 किशोरिया मां बन जाती है। यानी कि हाई स्कूल में 1000 किशोरियां पड़ती है तो वार्षिक परीक्षा पूरी होने पर उनमें से 52 किशोरियां अपने बच्चों के साथ अगली कक्षा में जाती हैं या पढ़ाई छोड़ देती हैं। अमेरिका में हर साल कुल 760185 किशोरियां कुंवारी माता बन जाती है।
छोटी उम्र में ही जो किशोर-किशोरियाँ यौन जीवन में प्रवेश पा लेते हैं, वे मानसिक अवसाद और भावनात्मक चिंता के शिकार बन जाते हैं। अन्य विद्यार्थियों की अपेक्षा उनमें आत्महत्या का प्रमाण बढ़ जाता है। उनमें से कई तो एड्स और अन्य यौन रोगों के शिकार हो जाते हैं। अमेरिका में हर वर्ष करीब 3000000 किशोर किशोरियां यौनरोग से संक्रमित होते हैं। हर साल जो नए मरीज एचआईवी/ एड्स से ग्रस्त पाए जाते हैं उनमें से 25 परसेंट तो 22 वर्ष से छोटी उम्र के होते हैं।
धर्म शास्त्रों में जो निषिद्ध कर्म हैं, जैसे परस्त्रीगमन, व्यभिचार, अविवाहित जीवन में काम भोग – उन निषेधों का उल्लंघन करने पर प्रकृति ने मनुष्य को ऐसे रोग और ऐसी समस्याएं दे दी कि उन धर्मनिरपेक्षतावादी नास्तिकों को भी अब उन धार्मिक निषेधों का प्रचार करना पड़ता है। एड्स का प्रभाव रोकने के लिए अब धर्मनिरपेक्ष सरकारों को भी एक पत्नी व्रत या जीवनसाथी से वफादारी आदि का पाठ पढ़ाना पड़ता है। पर धार्मिक आस्था के लोग उन नियमों का जितना पालन करते थे उतना पालन यह राजनेता नहीं करा सकते।