virya nikalne ka nukshan

वीर्य अर्थात् जो शरीर में वीरत्व शक्ति भर दे। जिससे शरीर में बल, बुद्धि, ओज, तेज, आयु  और तंदुरुस्ती कायम रहे।

वीर्य हमारे शरीर का सार तत्व है। यह शरीर की सातवीं धातु होती है, जिसे तैयार होने में महीनो का समय लगता है। आजकल के नौजवान इसको व्यर्थ में बर्बाद कर देते हैं। यही वीर्य जब शरीर में समाहित होने लगता है तो ओज, तेज और असाधारण बल की प्राप्ति  होती है।

वीर्य धारण करने से जो दिव्य शक्ति प्राप्त होती है वह किसी भी प्रकार की साधना करने से प्राप्त नहीं हो सकती हैं। वीर्य नाश से खोई हुई शक्ति को किसी भी आहार या दवायी से दुबारा नहीं प्राप्त किया जा सकता।

सिद्ध लोग इसे अमृत तुल्य मानते थे। आजकल के नौजवानों में वीर्य की कमी के मुख्य कारण हैं – देर तक बैठे बैठे काम करना, चुस्त कपड़ों का इस्तेमाल, समय से पहले यौन क्रियाओं में लिप्त होना वीर्य कम होने का मुख्य कारण है। आजकल शादीशुदा लोगो में शुक्राणु की संख्या कम होती जा रही है। नौजवान लड़के और लड़कियां के शरीर में वीर्य की कमी के कारण कमजोरी, थकान, हताशा, निराशा, आलस्य, सुस्ती आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। जो एक चिंता का विषय है। पहले हमारे पूर्वज फौलाद की तरह होते थे, जो उनके वीर्य संयम का ही परिणाम था।

वीर्य रक्षा का एकमात्र विकल्प है कि जवानी में अपने कीमती समय को अच्छे कार्यों में लगाएं। अपने मन और इन्द्रियों को कंट्रोल में रखें। इसका प्रतिफल आपको जीते जी तो मिलेगा ही, मरने के बाद भी आपको अमर बना देगा। कामवासना की भूख आपके शरीर को जीर्ण शीर्ण बनाकर खोखला कर देगा। आपका शरीर रोगों का घर बन जायेगा और आपको इसका पता भी नहीं चल पाएगा।


वीर्य केवल वीर्यकोष में ही नहीं रहता है यह हमारे पुरे शरीर में व्याप्त रहता है। जैसे ही आपने काम वासना के बारे में सोचना शुरू किया आपकी जन्नेद्रिय में तनाव एवं उत्तेजना उत्पन्न हो जाता है और वीर्य सारे शरीर के अंग प्रत्यंग से खींचता वीर्य कोष में आ जाता है और वह आपको स्खलित करने के बेचैन कर देता है। यह कीमती धातु अनावश्वयक रूप से व्यर्थ में बाहर निकाल जाता है। फिर इसके पश्चात् शरीर की सारी ऊर्जा नाश हो जाती है। उसके बाद फिर धीरे धीरे महीनों में वह तैयार होता है और आदमी फिर वही गलती करता है। वीर्य निकलने के बाद शरीर निढाल सा हो जाता है। इस वीर्य को आजकल के डॉक्टर एक सामान्य प्रक्रिया मानते हैं जबकि ऐसा नहीं है। यह पुरे शरीर को धीरे धीरे निर्बल बना देता है।

अपनी ब्रह्मचर्य शक्ति को सुरक्षित कैसे करें ? (How to secure your brahmacharya power?)

ब्रह्मचर्य का दृढ़ता से पालन करें। इससे आपकी प्राणशक्ति, स्फूर्ति, बुद्धि, ओज और तेज सब सुरक्षित रहेगा । यह सारी चीजें वीर्य से बनता है। इसलिए इस मूलयवान रत्न को जी-जान लगाकर रक्षा करना चाहिये। हमारे शरीर और मन का स्वास्थ्य भी इस वीर्य पर निर्भर है। इसलिए क्षणिक सुख के लिए इसके इस्तेमाल से बचें। इसको नष्ट करने का मतलब हीरे को मिटटी बनाने जैसा है। आप अखण्ड ब्रह्मचर्य धारण करने का प्रयास करें। अगर आप शादीशुदा हैं तो केवल सन्तान प्राप्ति के लिए इसका उपयोग करें। जिससे आपकी प्राणशक्ति सुरक्षित रहे। 

ब्रह्मचर्य पर भगवान शंकर का उदघोष (Declaration of Lord Shankar on Brahmacharya)

भगवान भोले शंकर ने कहा है कि – ‘मरणं विन्दुपातेन जीवनं विन्दुधारणात्” अर्थात् वीर्यनाश करना ही मृत्यु है और वीर्य धारण करना ही जीवन है।

भगवान शंकर आगे कहते हैं- न तपस्तप इत्याहुर्ब्रह्मर्च्यं तपोत्तमम्। ऊर्ध्वरेता भवेद् यस्तु से देवो न तु मानुषः॥ अर्थात्- ब्रह्मचर्य से बढ़कर कोई तप नहीं है। ऊर्ध्वरेता योगी पुरुष प्रत्यक्ष देवता है।

सिद्धे बिन्दौ महायत्ने किन सिद्धयति भूतले। यस्य प्रसादान्महिमाममाप्ये तादृशो भवेत्॥ अर्थात्- यत्न पूर्वक वीर्य की रक्षा करने वाले ब्रह्मचारी के लिए इस पृथ्वी पर कुछ भी दुर्लभ नहीं है? ब्रह्मचर्य रक्षा के प्रताप से मनुष्य ईश्वर के तुल्य हो जाता है।

‘ब्रह्मचर्य परं तपः।’ ब्रह्मचर्य ही परम तप है। “एकतश्चतुरो वेदाः ब्रह्मचर्य तथैकतः।” अर्थात्- एक तरफ चारों वेदों पुण्य का फल रखें और दूसरी ओर ब्रह्मचर्य का फल, तो दोनों में ब्रह्मचर्य ही श्रेष्ठ है।

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