प्रमेह रोग की उत्तम दवा क्या है ? Prameh Rog ki Uttam Dava Kya Hai ? धातु क्षीणता और ध्वज भंग की दावा क्या है? Dhaatu Kshinta Aur Dhwaj Bhang Ki Dava kya hai ? नसों की कमजोरी और स्वप्नदोष कैसे दूर करें ? Naso ki Kamjori Aur Swapnadosh Kaise Dur Karen?
आज में आयुर्वेद की एक ऐसी बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि की बात कर रहा हूं जो समस्त प्रकार के प्रमेह रोग नष्ट करता है। यह क्षीण पुरुषों की क्षीड़ता नष्ट करके उनकी अंग वृद्धि करता है और ध्वजभंग आदि रोगों को शीघ्र नष्ट करता है। वर्तमान काल में धातु क्षीणता का प्रमुख कारण अश्लील चित्र देखना, सिनेमा तथा अश्लील गाने सुनना है। अश्लील साहित्य पढ़ने तथा काम विषय चिंतन से मन क्षुब्ध होकर अशांत एवं दुर्बल हो जाता है। जिससे शुक्र स्थान में उष्णता होकर शुक्रवाहिनी नसों में उत्तेजना उत्पन्न होकर स्वप्नदोष तथा धातुक्षीणता रोग उत्पन्न हो जाता है। इसे मिटाने के लिए इस दवा का सेवन तथा विचारों की शुद्धि उत्तम उपाय है।
दवा बनाने की सामग्री (Ingredients)
शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म चंद्रिका रहित, रौप्य भस्म, शुद्ध हड़ताल, कास्य भस्म, लौह भस्म वारितर, स्वर्ण माक्षिक, भस्म स्वर्ण भस्म – प्रत्येक 1-1 भाग, बंग भस्म 9 भाग लेकर, प्रथम पारा गंधक की कज्जली बनावें, उसके पश्चात अन्य भस्मों एकत्र मिलाकर मर्दन करें और आम की छाल का क्वाथ, आंवला स्वरस या क्वाथ, कुल्थी का क्वाथ, लज्जालु स्वरस, बड़ की जटा का क्वाथ, सेमल की जड़ का स्वरस या क्वाथ, इनकी प्रत्येक की क्रम से 3–3 भावना देकर दृण मर्दन करें। उसके पश्चात सूखाकर मर्दन कर, जितना सब द्रव्यों का वजन हो उतना जायफल, लौंग, नागरमोथा, दालचीनी, छोटी इलाइची, जावित्री – ये प्रत्येक द्रव्य समान भाग लेकर सूक्ष्म कपड़छन किया हुआ, इनका चूर्ण मिलाकर आंवले के रस से मर्दन कर एक-एक रत्ती की गोली बनाकर सुखाकर रख लें। भै.र.
दवा लेने का तरीका (Dawa Lene ka Tarika)
एक-एक गोली आवश्यकतानुसार दिन में दो बार आंवला स्वरस और शहद के साथ अथवा मधु से या रोगानुसार उचित अनुपान के साथ दें।
गुण और उपयोग (Chandrakant Ras Ke Gun Aur Upyog)
इस रसायन का प्रयोग करने से समस्त प्रकार के प्रमेह रोग नष्ट होते हैं। यह अत्यंत वृष्य तथा रसायन है। क्षीण पुरुषों की क्षीड़ता नष्ट करके उनकी अंग वृद्धि करता है और ध्वजभंग आदि रोगों को शीघ्र नष्ट करता है। मुद्राघात, अश्मरी, अत्यंत दारूण मधुमेह रोग, उग्र मूत्रातिसार आदि रोगों को नष्ट करता है। पांचो प्रकार का कास रोग, उग्र राज्ययक्ष्मा रोग, भगंदर आदि लोगों को इस प्रकार नष्ट करता है जिस प्रकार इंद्र का वज्र वृक्षों को नष्ट करता है। समस्त प्रकार के अम्ल पित्त, आठों प्रकार के शूल रोगों में भी इसके सेवन से उत्तम लाभ होता है। वर्तमान काल में धातु क्षीणता रोग के प्रसार का प्रमुख कारण अश्लील काम मुद्राओं के चित्र देखना, सिनेमा तथा अश्लील गाने सुनना है। अश्लील साहित्य पढ़ने तथा काम विषय चिंतन करने से मानसिक भाव क्षुब्ध होकर मन और मस्तिष्क को अशांत एवं दुर्बल बना देते हैं। परिणाम स्वरूप शुक्र स्थान में उष्णता एवं शुक्रवाहिनी नसों में उत्तेजना उत्पन्न होकर स्वप्नदोष तथा धातुक्षीणता उत्पन्न हो जाती है। इसे मिटाने के लिए इस रस का सेवन तथा विचारों की शुद्धि सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
नोट : कोई भी दवा प्रयोग करने से पहले किसी भी डॉक्टर या वैद्य की जरूर सलाह लें।