हीरा भस्म ((Heera Bhasma) का परिचय : आयुर्वेदिक मत से हीरा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र भेद से चार प्रकार का होता है। क्षत्रिय जाति के हीरा में सफेद वर्ण होते हुए भी किंचित लाल झाई होती है। यह बुढ़ापा और सब रोगों को नष्ट करने वाला होता है। ब्राह्मण जाति का हीरा सफ़ेद वर्ण का होता है। यह रसायन कार्य के लिए उत्तम है। वैश्य जाति के हीरे में कुछ पीली झाईं होती है, यह धनदायक और शरीर को दृढ़ करने वाला है। शूद्र जाति के हीरे में थोड़ी काली झाईं होती है, यह व्याधिनाशक और अवस्था स्थापक होता है।
इसी तरह पुरुष, स्त्री और नपुंसक भेद से तीन जातियां इनकी और बतलायी गयी है। इसमें पुरुष जाति का हीरा उत्तम, गोल, रेखा तथा बिंदु से रहित, चमकदार और बड़े आकार का होता है और स्त्री जाति रेखा और बिंदु से युक्त तथा छः कोनेवाला होता है। नपुंसक जाति का हीरा त्रिकोणयुक्त बड़े आकार का होता है। इसमें पुरुष जाति का हीरा सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इसका प्रयोग सब रोगों तथा अवस्था में होता है। आधुनिक वैज्ञानिकों के मतानुसार हीरा शुद्ध काजल (Carbon) है। भूगर्भ में अधिक भार के दबाव और ताप से यह काजल अत्यंत उज्जवल वर्ण और कठोर रूप में बदल जाता है। इसका विशिष्ट गुरुत्व 3 और काठिन्य10 होता है।
उत्तम हीरा की परीक्षा (Best Diamond Test)
उत्तम हीरे को कसौटी पर जोर से देर तक घिसने अथवा किसी दृढ पत्थर पर खूब घिसने पर बिल्कुल नहीं घिसता, बल्कि अपनी तेजी नोक से कसौटी, कांच आदि कठिन द्रव्य को बड़ी आसानी से काट देता है।
शोधन विधि : हीरा को एक पहर तक कुल्थी या कोदो के क्वाथ में दोला यंत्र विधि से स्वेदन करने से शुद्ध हो जाता है।
दूसरी विधि : कोयले की तेजाज पर हीरा को मूसा में रखकर गर्म कर सौ बार पारद में बुझाने पर शुद्ध हो जाता है।
हीरा भस्म बनाने की विधि (How to make Heera Bhasma)
कुल्थी के क्वाथ में हींग और सेंधा नमक का चूर्ण मिलाकर रख लें, फिर इसके काढ़े में हीरा को उत्तम चिकने खरल में घोटे। गोला बन जाने पर शराब संपुट में बंद कर लघु पुट में फूंक दे। ऐसे 21 फुट देने से कुछ सुर्खी मायल रंग की भस्म तैयार होती है। यदि सुर्खी न आवे तो एक खुला पुट देने से सुर्खी आ जाएगी।
हीरा भस्म बनाने की दूसरी विधि
शुद्ध हीरे का चूर्ण, रस सिंदूर, शुद्ध मैनशील और शुद्ध गंधक प्रत्येक समभाग लेकर एकत्र खरल में मर्दन कर संपुट में अच्छी तरह बंद करके गजपुट में फूंक दे। इस तरह 14 फुट में हीरे की भस्म अवश्य हो जाती है। रस सिंदूर प्रथम में ही देना चाहिए।
हीरा भस्म लेने का मात्रा और अनुपान (Dosage and dosage of Heera Bhasma)
1 रत्ती उत्तम हीरा भस्म को एक उत्तम खरल में डालकर उसमें चार माशा उत्तम रस सिंदूर मिलाकर अच्छी तरह पीसकर रख लें। आवश्यकता पड़ने पर इसमें से एक रत्ती से दो रत्ती तक की मात्रा में प्रयोग करें।
हीरा भस्म के गुण और उपयोग (Benefits of Heera Bhasma)
हीरा की भस्म (Heera Bhasma) रसायन और देह को दृढ बनाने वाली पौष्टिक, बलदायक और कामोत्तेजक है। यह वर्ण को सुंदर करने वाली, सुखदायक तथा वात, पित्त, कफ, कुष्ठ, क्षय, भ्रम, शोध, मेद, प्रमेह, भगन्दर और पांडु रोग नाशक है। यह सारक, शीतल, कसैला, मधुर, नेत्रों को हितकारी और शरीर को शक्ति प्रदान करने वाला है।
हीरा भस्म नपुंसकता की अदितीय औषध है। यह वृष्य उत्पादक अंगों को बल देने वाला, आयुवर्धक, नेत्र ज्योति वर्धक, बलवर्धक, त्रिदोष नाशक, वर्ण्य और मेधा वर्धक है।
हीरा भस्म रस सिंदर या मकरध्वज मिलाकर मलाई के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से भयंकर नपुंसकता नष्ट हो जाती है। राज्यक्षमा में हीरा भस्म को स्वर्ण भस्म तथा रस सिंदूर के साथ मिलाकर सेवन करने से आश्चर्यजनक लाभ होता है।
रस सिंदूर युक्त हीरा भस्म में कपूर, खांड तथा छोटी इलायची के बीज का चूर्ण मिलाकर इसको दूध के अनुपान के साथ निरंतर 6 महीने तक सेवन करने से तथा मधुर पदार्थों के भोजन करने से पुरुष में अनेक स्त्रियों के साथ समागम करने की शक्ति आ जाती है। इसके सेवन से शरीर में सुंदरता, तीव्र पाचन शक्ति, अतुल बल और प्रखर बुद्धि की प्राप्ति होती है। ह्रदय की दुर्बलता एवं रक्तचाप वृद्धि रोग में 3.5 रत्ती को मुक्ति एक रत्ती के साथ मिलाकर देने से बहुत उत्तम लाभ होता है। डॉक्टरों से त्यक्त रोगी भी इससे अच्छे होते देखे गए हैं। कर्कट-व्रण में भी ताम्र भस्म आधी रत्ती के साथ मिलाकर देने से अच्छा लाभ होता है।