Shraddh Karna kyon Jaroori Hai

    श्राद्ध क्या होता है? Shraddh Kya Hota Hai ? श्राद्ध क्यों करना चाहिए? Shraddh Kyon karna chahiye ? श्राद्ध नहीं करने पर क्या होता है? Shraddh Nahin karne per Kya nuksan Hota Hai ? पितृरों की नाराजगी से आती है दुख और दरिद्रता। Pitron ki Narajagi se Aati Hai Dukh aur Daridrata. 


    आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को ‘पितृपक्ष’ या ‘महालय पक्ष’ बोलते हैं। श्रद्धया दीयते यत्र, तच्छ्राद्धं परिचक्षते। ‘श्रद्धा से जो पूर्वजों के लिए किया जाता है उसे श्राद्ध कहते हैं।’ आपका एक माह बीतता है तो पितृलोक का 1 दिन होता है। साल में एक बार ही श्राद्ध करने से कुल-खानदान के पितरों को तृप्ति हो जाती है। 

    श्राद्ध करना क्यों जरूरी है ? (Shraddh karna Kyon jaruri hai)

    जो श्राद्ध करते हैं, वे स्वयं भी सुखी संपन्न होते हैं और उनके दादा-परदादा, पुरखे भी सब सुखी होते हैं। श्राद्ध के दिनों में पितर आशा रखते हैं कि हमारे बच्चे हमारे लिए कुछ न कुछ अर्पण करें, हमें तृप्ति हो। शाम तक हुए इधर-उधर निहारते रहते हैं। अगर श्राद्ध नहीं करते तो वह दुत्कार कर चले जाते हैं। फिर घर में सब धन दौलत होते हुए भी कोई न कोई मुसीबतें, आपदाएं बनी रहती है। 

    “‘हारीत स्मृति” में लिखा है : जिसके घर में श्राद्ध नहीं होता, उनके कुल खानदान में वीर पुत्र उत्पन्न नहीं होता। कोई निरोग नहीं रहता। लंबी आयु नहीं होती और किसी न किसी तरह का झंझट और खटपट बनी रहती है। किसी तरह कल्याण नहीं प्राप्त होता।’

    “विष्णु पुराण” में लिखा है : श्राद्ध से ब्रह्मा, इंद्र, वरुण, अष्टवसु, अश्वनी कुमार, सूर्य, अग्नि, वायु, ऋषि, पितृगण, पशु-पक्षी, मनुष्य और जगत भी संतुष्ट होता है। श्राद्ध करने वाले पर इन सभी की दृष्टि रहती है।’ वह इतने लोगों को संतुष्ट करने में सक्षम होता है तो स्वयं असंतुष्ट कैसे रहेगा। 

    श्राद्ध करने की शक्ति न हो तो क्या करें ?

    श्राद्ध पक्ष में अपनी शक्ति के अनुसार श्राद्ध करना चाहिए। चीज, वस्तु लाने की ताकत नहीं हो तो साग से ही श्राद्ध करें। साग खरीदने की भी शक्ति नहीं है तो हरा चारा काट कर गाय माता को खिला दें और हाथ ऊपर कर दें कि ‘हे पितरों ! आप की तृप्ति के लिए मैं गाय को तृप्त करता हूं और आप उसी से तृप्त हो जाइए।’ तभी भी उस व्यक्ति का भाग्य बदल जाएगा। 

    गाय को घास देने की भी शक्ति नहीं है तो जिस तिथि में पिता, माता चले गए उस दिन स्नान करके पूर्वाभिमुख होकर दोनों हाथ ऊपर करें : ‘हे भगवान सूर्य ! मैं लाचार हूं ! कुछ नहीं कर पाता हूं। आप मेरे माता-पिता, दादा-दादी (उनका नाम तथा उनके पिता का नाम व कुल गोत्र का नाम लेकर) को तृप्त करें, संतुष्ट करें।’  जिसके पास साधन सामग्री है और लाचार-लाचार करते हैं वह लाचार बन जाएंगे लेकिन जो सचमुच लाचार हैं उन पर भगवान विशेष कृपा करते हैं। आपकी प्रार्थना से जब पितर तृप्त और संतुष्ट होंगे तो आपके जीवन में धन-धान्य, तृप्ति संतुष्टि चालू हो जाएगी। 

    श्राद्ध का ऐतिहासिक प्रमाण (Shraddh ka Aitihasik Praman)

    भगवान श्री रामचंद्र जी वनवास के समय पुष्कर में ठहरे थे। दशरथ जी स्वर्गवासी हो गए और श्राद्ध की तिथियां आई। रामजी ऋषि-मुनियों, ब्राह्मणों को आमंत्रण दे आए। जो कुछ कंदमूल भाई लक्ष्मण को लाना था लाया और सीता जी ने संवारा। सीता जी ब्राह्मणों को भोजन परोसने लगी और राम जी भी देने लगे, लेकिन अचानक जैसे शेर को देख हिरनी कूद कर भाग जाती है जंगल में, ऐसे ही सीता जी झाड़ियों में चली गई। राम जी ने लक्ष्मण की मदद ली, सीता जी की जगह परोसकर ब्राह्मणों को भोजन कराया। जब वे सब चले गए तो जैसे डरी-डरी हिरनी आती है ऐसे सीता जी आईं। 

    “सीते ! आज का तेरा व्यवहार मुझे आश्चर्य में डाले बिना नहीं रहता है।” 

    सीता जी बोली : नाथ ! मैं क्या कहूं, जिनको श्राद्ध के निमित्त बुलाया था वे बैठे, इतने में आपके पिताजी, मेरे ससुर जी मुझे उनमें दिखाई दिए। अब ससुर जी के आगे ऐसे वल्कल पहनकर मैं कैसे घुमुंगी। इसलिए मैं शर्म के मारे भाग गई। ऐसी कथा आती है। 

    देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। 

    नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः।। 

    ‘देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा और स्वाहा को मेरा सर्वदा नमस्कार है।’  अग्नि पुराण (117. 22)

    श्राद्ध के आरंभ व अंत में इस मंत्र का 3 बार उच्चारण करने से श्राद्ध की त्रुटियां क्षम्य हो जाती हैं। पितर प्रसन्न हो जाते हैं और आसुरी शक्तियां भाग जाती हैं। 

    श्राद्ध के लिए उचित स्थान (Shraddh ke liye uchit sthan)

    गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार तीर्थ अथवा गौशाला, देवालय या नदी तट भी श्राद्ध के लिए उत्तम जगह मानी जाती है। नहीं तो अपने घर में ही परमात्मा देव के नाम से पानी छिटक के गोबर अथवा गोधुली, गोमूत्र आदि से लीपन करके फिर श्राद्ध करें तो भी पवित्र माना जाता है। श्राद्ध में तुलसी के पत्तों का उपयोग होता है तो पितर प्रलय प्रयन्त तृप्त रहते हैं और ब्रह्मलोक तक जाते हैं। 

    पितरों की संतुष्टि देती है सुखमय जीवन (Pitron ki Santushti Se Sukhmay Jeevan)

    आपके घर 25 मेहमान आ गए। आपने सबको खानपान का अनुरोध किया। किसी ने खाया किसी ने नहीं खाया लेकिन आपके मधुर व्यवहार से सब तृप्त होकर गए।  तो आपका सब काम सफल होता है। 

    श्राद्ध करने से पितरों को तृप्त करते हैं तो वह भी आपको तृप्ति की भावनाओं से तृप्त करते हैं। श्राद्ध कर्म करने वाले की दरिद्रता चली जाती है। रोग और बीमारियां भगाने बढ़ जाएगी। घर में स्वर्गीय वातावरण बन जाता है। आयु, प्रज्ञा, धन, विद्या और स्वर्ग आदि की प्राप्ति के लिए श्राद्ध फायदे वाला है। श्राद्ध से संतुष्ट होकर पित्रगण श्राद्ध करता को मुक्ति के रास्ते भी प्रेरित करते हैं। 

    श्राद्ध में रखने योग्य सावधानियां (Shraddh Me Rakhne Yogya Savdhaniya)

    1. पितरों  को खिलाएं बिना नहीं खाएं। पराया अन्न भी नहीं खाना चाहिए। 
    2. श्राद्धकर्ता, श्राद्ध पक्ष में पान खाना, तेल मालिश, स्त्री संभोग, संग्रह आदि न करे। श्राद्ध का भोक्ता दुबारा भोजन तथा यात्रा आदि न करे। श्राद्ध खाने के बाद परिश्रम और प्रतीग्रह से बचें। 
    3. श्राद्ध करने वाला व्यक्ति 3 से ज्यादा ब्राह्मणों तथा ज्यादा रिश्तेदारों को न भुलाए। 
    4. श्राद्ध के दिनों में ब्रह्मचर्य व सत्य का पालन करें और ब्राह्मण भी ब्रह्मचर्य का पालन करके श्राद्ध ग्रहण करने आए। 

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