पंडित गुरु शरण शर्मा से अनंत विभूषित संत श्री गुरु शरण जी महाराज पंडोखर सरकार नाम से ख्याति प्राप्त कर चुके युवा गृहस्थ संत का परिचय बताना सूरज को रोशनी दिखाने जैसा है। जिनके नाम में ही अनंत अंधकार छिपा हो और अखंड प्रकाश प्रदीप तो ऐसे गुरुवर का परिचय तो नहीं उनका गुणगान अवश्य किया जा सकता है। लाखों दुखी, वंचित, शोषित एवं पथभ्रष्ट मानवों को घोर अंधकारमय वातावरण से सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि से प्रकाशवान संस्कार का मार्ग दिखाने वाले सद्गुरु श्री गुरु शरण जी महाराज का जीवन चरित्र ही विचित्र है।
परम पवित्र बुंदेलखंड भूमि के मध्य प्रदेश सीमा अंतर्गत भिंड जिले का बरहा ग्राम जहां आप की जन्मस्थली है। वहीं इसी क्षेत्र का विश्व विख्यात तंत्र साधना केंद्र माता पितांबरा शक्ति पीठ धारण किए दतिया जिले का ग्राम पंडोखर आपकी मर्म स्थली अर्थात साधना स्थली है। संपूर्ण प्रदेश और देश के साथ-साथ अब अखिल विश्व आपकी कर्म स्थली है।
बायोग्राफी ऑफ पंडोखर सरकार (Biography of Pandokhar Sarkar)
मध्य प्रदेश के भिंड जिला अंतर्गत लहार तहसील से मात्र 9 किलोमीटर दूरी पर स्थित छोटे से ग्राम बरहा के एक संभ्रांत ब्रह्मभट्ट परिवार में जन्म लेने वाले पूज्यपाद श्री गुरु शरण जी महाराज के पूजा पिता का नाम पंडित श्री अशोक शर्मा है। महाराज जी के बाबा एवं पंडित श्री अशोक शर्मा के पूज्य पिता श्री प्रभु दयाल शर्मा यहां के एक प्रतिष्ठित कृषक परिवार के सदस्य थे। आपकी पूज्य माता श्रीमती शशिप्रभा उपाख्य ठाकुर बेटी भी समीप के कुंभरोल ग्राम के ब्राह्मण कृषक परिवार की बेटी हैं। विवाह के चंद वर्ष उपरांत पंडित अशोक शर्मा के परिवार में एक दिव्य पुत्र रत्न का जन्म 15 अप्रैल वर्ष 1983 को बरहा ग्राम हुआ। आपके जन्म की खुशियां परिवार के साथ साथ समस्त ग्रामवासी मना रहे थे। ऐसे समय में ही लगभग 4 माह की अल्प आयु में आपको लेकर माता-पिता योग्य लालन पालन हेतु ग्राम पंडोखर आ गए। परिवारिक परिस्थितिजन्य कारणों से बरहा से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम पंडोखर आये। बालक गुरु शरण (Balak Guru Sharan ) के माता-पिता यहां विराजमान श्री बालाजी के मंदिर पर शीश झुका कर अपने पुत्र के उज्जवल भविष्य की कामना लिए प्रार्थना करते हैं। इनके पिता पंडित श्री अशोक शर्मा के समक्ष सर्वप्रथम इनके योग्य लालन पालन हेतु यहां रोजगार का संकट था। वही माता श्री ठाकुर बेटी के समक्ष अपनी लाल की उचित देखभाल हेतु योग्य आश्रय की चिंता सता रही थी। श्री बालाजी की कृपा से पंडित श्री अशोक शर्मा ने अपनी छोटी सी जमा पूंजी से रहने लायक निवास की व्यवस्था कर ली और मुख्य सड़क पर स्थित बस स्टैंड पर दुकान खोलकर मिष्ठान प्रसाद का व्यवसाय करने लगे।
ग्राम में ही स्थित पंडोखर थाना इस क्षेत्र व प्रदेश का प्राचीन थाना है। पास ही सरकारी बैंक एवं प्राथमिक शाला भी है। इस कारण ग्राम में सभी जाति वर्ग के लोग रहते हैं। सभी प्यार से आपको ‘गुरु’ नाम से संबोधित से करते रहे हैं। बालक गुरु (Balak Guru Sharan) का लालन-पालन भी इसी परिवेश में परंतु बड़े ही लाड- दुलार और मनोहर से हुआ एवं प्राथमिक शिक्षा भी ऐसे ही वातावरण में यहीं पर हुई। आपकी शिक्षा हाई स्कूल तक ही निकट के ग्राम सालोन बी तथा भांडेर में संपन्न हुई। जो बाल सुलभ स्वभाव आदतें एक सामान्य बालक में होनी चाहिए वह सब नटखट बाल गुरु में भी विद्यमान थी। यदि कोई बात इनमें असामान्य सी थी तो वह अकाटय हनुमत भक्ति थी। श्री बालाजी सरकार पर आप की अटूट आस्था बचपन से ही थी और श्री हनुमान जी सरकार पर विशेष श्रद्धा और विश्वास था।
बाल्यावस्था में बालक गुरुशरण ग्राम के ही अन्य ब्राह्मण परिवार के बच्चों के साथ आसपास के ग्रामों में जजमानी करने को जाते थे। अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण गुरु शरण 8 वर्ष की छोटी सी उम्र में ही रामायण पाठ, कथावाचन आदि सामान्य कर्मकांड भी करने लगे थे, और परंपरागत जजमानी करने भी जाया करते थे। पंडोखर धाम से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर एक बिशनपुरा नामक ग्राम है जो यादव जाति बहुल है बिशनपुरा गांव में कोई ब्राह्मण परिवार नहीं था जिसके कारण ग्रामवासी सामान्य कर्मकांड से अपने आप को वंचित महसूस करते थे। अतः इस ग्राम के लोग अक्सर पंडित श्री अशोक शर्मा के पास आकर उनसे आग्रह किया करते थे कि वह अपने बालक पंडित गुरुशरण (Guru Sharan ) को बिशनपुरा भेज दिया करें, जिससे कि ग्रामवासी सामान्य कर्मकांड से वंचित न रहे। पूज्य पिता के आदेश पर श्री गुरु शरण नित्य खेलते कूदते हुए थे हुए बिशनपुरा जाने लगे। मात्र 8 वर्षीय ब्राह्मण बालक को अपने बीच पाकर ग्रामवासी प्रफुल्लित हो उठते थे तथा बड़ी श्रद्धा से सीधा आदि दान कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते थे।
बचपन से ही रहस्यपूर्ण बालक (Rahasya Purn Balak Guru Sharan)
बालक गुरु का बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में कोई खास रुझान नहीं था। इस अवस्था के ग्रामीण तेजतर्रार, बुद्धिमान एवं झगड़ालू बालक के सभी गुण आप में भी विद्यमान रहे थे। नटखट, शरारती, कक्षा से भागने एवं अपने से होशियार सहपाठी की कॉपी पर अपना हक जमाने वाले गुरु शरण पर भी पिता की भांति अपने कुल गुरु हाथीवान महाराज की विशेष कृपा दृष्टि थी। बालक गुरुशरण की करनी से जितना घर, परिवार या ग्रामवासी परेशान नहीं होते उससे कहीं अधिक उनकी कथनी से सभी घबराते थे, क्योंकि बालक गुरु ने जिससे जैसा कह दिया वैसा ही हो जाता था। इसी कारण इन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक भी इनकी करनी को ज्यादा महत्व नहीं देते थे, क्योंकि वे अच्छी तरह समझ चुके थे कि उनका यह नटखट सिर से बालगुरु एक दिन ख्याति अर्जित करेगा। सामान्यत: ग्रामवासी भी इतना अवश्य जानते थे कि गुरुशरण पर श्री बालाजी एवं श्री हनुमान जी की विशेष कृपा है। परंतु उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की थी कि एक दिन उनके गांव का गुरु अनंत श्री विभूषित होकर ग्राम को धाम में परिवर्तित कर देगा।
इस सबके बावजूद गुरुशरण बचपन से ही रहस्य पूर्ण रहे हैं। बालक गुरु शरण के क्रियाकलाप क्षेत्र व ग्राम वासियों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लिया करते थे। उनके बचपन से जुड़े अनेक किस्से आज भी मशहूर हैं जिन्हें उनके सहपाठी व ग्राम के बुजुर्ग बड़े चाव से सुनाते हैं। अपनी बाल सुलभ हरकतों से हर किसी को सम्मोहित कर लेने वाले गुरु शरण (Guru Sharan ) जब प्राथमिक शाला में पढ़ने जाते थे तो राह चलते किसी भी राहगीर या अन्य छात्र के कान में थप्पड़ मार देते और आश्चर्यजनक रूप से पलक झपकते उसी हाथ में काजू निकाल देते थे। थप्पड़ की मार से कभी नारियल निकाल दिया करते थे, कभी टॉफी निकाल दिया करते थे, तो कभी पैसे बना दिया करते थे। इनके इस व्यवहार से व्यक्ति थप्पड़ से जरूर थोड़ी असहज होता परंतु परिणाम देख रोमांचित हो उठता और रहस्यों से परिपूर्ण गुरुशरण की मधुर मुस्कान देख झूम उठता। नारियल जूट की रस्सी हो या नायलॉन की रस्सी अथवा पानी की सटक अर्थात लेजिम के टुकड़े करके पुनः उन्हें जोड़कर एक कर देना बालक गुरु शरण के बाएं हाथ का खेल होता था।
एक बार स्कूल में इनकी उदंडता से कुपित हुए शिक्षक ने डंडे से मार दिया तो बाल सुलभ प्रतिशोध के चलते उन्होंने वह कर दिखाया जिसकी कभी किसी ने कल्पना ही नहीं की थी। स्कूल की छुट्टी की घंटी बजते ही सारे छात्र हो हल्ला मचाते हुए अपने घरों के ऒर दौड़ पड़े तो छात्र गुरुशरण भी शिक्षक को मुंह चिढ़ाते दौड़ते मुस्कुराते अपने घर चल दिए। यहाँ स्कूल के सभी शिक्षक भी छुट्टी उपरांत अपने घर चलने को हुए परंतु गुरुशरण की कक्षा के शिक्षक अपनी कुर्सी पर ही डटे हुए थे। साथी शिक्षकों द्वारा कारण जानने पर मालूम हुआ कि मास्टर साहब जिस कुर्सी पर बैठे थे वह जैसे अस्थाई रूप से उनसे चिपक गई हो। इस घटना के पीछे की सच्चाई समझते किसी को देर नहीं लगी और वह इसे अपने रहस्यमयी उदंड छात्र का प्रकोप भली भांति समझ गए थे। अंततः साथी शिक्षकों ने इनके घर पहुंच मान मनोबल की तब जाकर कक्षा शिक्षक का कुर्सी से पिंड छूटा।
इसी तरह बैंक में वजीफा प्राप्त करने वाले स्कूली छात्र छात्राओं की भीड़ उमड़ पढ़ने के दौरान बैंक से कुछ क्षणों के लिए रुपए गायब हो जाने और सड़क पर आपके द्वारा आश्चर्यजनक रूप से रुपए प्रकट कर छात्रों को वजीफा बांट देने के साथ दीवाल पर हाथ मार कर नोटों की गड्डियां निकाल देने जैसे इनके बचपन के अनेक किस्से मशहूर हैं।
– साभार : पंडोखर सरकार (अमूल्य रहस्य)