कहते हैं कि साबर मंत्र भगवान शंकर के द्वारा निकले हुए विशेष मंत्र हैं जो सरल भाषा में उन्होंने पार्वती को सुनाए थे। यह ऐसे मंत्र हैं जो शिव मुख से निकलने की वजह से अत्यधिक प्रमाणिक, अचूक और शीघ्र सफलता दायक बन गए। दिखने में यह मंत्र सामान्य प्रतीत होते हैं परंतु इन मंत्रों से जो क्षमता और ताकत मिलता है उसका कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता है। पिछले दिनों मुझे एक अत्यंत प्राचीन भोजपत्र पर लिखित पुस्तिका प्राप्त हुई थी, जिसमें आश्चर्यजनक साबर मंत्र और उनकी विधियां अंकित थी। यह छोटी पुस्तिका ही नहीं थी अपितु मेरे लिए हीरे मोतियों की खान थी। मैंने इसमें बहुत मंत्रों का प्रयोग किया है और उसके आश्चर्यजनक अचूक प्रभाव को देखकर आश्चर्यचकित रह गया हूं। पाठकों के लिए पहली बार इस महत्वपूर्ण पुस्तक में वर्णित साबर मंत्र और उसकी साधना विद्या प्रस्तुत है : महायोगी स्वामी महत्तानंद जी के द्वारा।
दिव्य शाबर मंत्र साधना (Divya Shabar Mantra Sadhana)
साबर मंत्र समस्त मंत्रों में सर्वश्रेष्ठ, अचूक प्रभाव युक्त और महत्वपूर्ण माने गए हैं, क्योंकि इन मंत्रों के द्वारा जल्दी सफलता और सिद्धि प्राप्त होती है। मुझे पिछले दिनों ही एक महत्वपूर्ण प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथ प्राप्त हुआ था जो कि भोजपत्र पर लिखा हुआ था। पिछले दिनों में मैं हरिद्वार के आगे कुंभक नामक गांव में चतुर्मास करने गया था। वहां मुझे 4 महीने रहने का अवसर मिला। मुझे किसी ने बहुत पहले बताया था कि यह भारत के अद्वितीय शाबर मंत्र आचार्य कुंभक (Kumbhak Rishi) का गांव है, जो कि गुरु गोरखनाथ के समान विद्वान थे। उन्होंने कुछ ऐसी अद्वितीय साबर मंत्र साधना संपन्न की थी जो विश्व में दुर्लभ और अद्वितीय मानी जाती है। परंतु उनसे संबंधित कोई साहित्य या साधना पद्धति का ज्ञान किसी को नहीं हो सका। कई साबर मंत्र साधनाओं से संबंधित ग्रंथों में तो महर्षि कुंभक का नाम तो आदर के साथ लिया गया है और उन्हें भगवान शिव का अवतार माना गया है, परंतु उनके द्वारा प्रणीत मंत्रों के बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं मिल पा रही थी।
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कुंभक ऋषि (Kumbhak Rishi) के वर्तमान वंशधर स्वामी रामदास आचार्य जो कि कुंभक गांव में ही रहते हैं। इस चतुर्मास के दौरान इनसे मेरा संपर्क बढ़ा तो एक दिन बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि हम कुंभक ऋषि की संतान हैं और यह हमारी 82वीं पीढ़ी है। बातचीत के क्रम में उन्होंने कहा कि महर्षि कुंभक ऋषि (Kumbhak Rishi) ने एक ग्रंथ की रचना की थी जो साबर सिद्धि के नाम से प्रसिद्ध रही है। संपूर्ण विश्व में उनकी एकमात्र कृति भोजपत्र लिखित है जो मेरे पास सुरक्षित है।
मेरे लिए यह अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक सूचना थी। मैंने स्वयं अपने जीवन में पिछले 50 वर्षों से साबर साधना सिद्ध की है। इसके आधार पर मैं आज यह कहने समर्थ हूं कि विश्व में साबर साधना के मंत्र सरल होने के साथ-साथ अचूक प्रमाणिक और महत्वपूर्ण है। यदि कोई व्यक्ति ये मंत्र सिद्ध कर लेता है तो अन्य मंत्रों द्वारा साधना की अपेक्षा शीघ्र सफलता प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है।
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जब उनके पास महर्षि कुंभक द्वारा लिखित ग्रंथ का पता चला तो मेरी उत्सुकता जरूरत से ज्यादा बढ़ गई और मैंने उस ग्रंथ को देखने का निश्चय किया। करीब सप्ताह भर बाद रामदास आचार्य ने वह प्रति मेरे सामने लाकर रखी। वह भोजपत्र पर अंकित प्रति थी काफी वर्ष हो जाने की वजह से पन्ने जीर्ण हो गए थे और स्याही धुंधली सी हो गई थी, परंतु फिर भी अक्षर अत्यधिक सुंदर, सुवाच्य और पठनीय थे। यह पुस्तिका 118 पृष्ठों की है। मैंने इन साबर मंत्रों का गहराई के साथ अध्ययन किया और इनमें से कुछ साधनाएं भी की। मैंने यह देखा कि यह मंत्र और साधना विश्वस्तरीय हैं और इनका प्रभाव अपने आप में अद्वितीय और अचूक है। आज भी वह ग्रंथ मेरे पास सुरक्षित है। मैं रामदास आचार्य महोदय का आभारी हूं कि उन्होंने यह महत्वपूर्ण ग्रंथ बिना स्वार्थ और बिना लाग-लपेट के मुझे भेंट कर दिया। अब यह मेरे पुस्तकालय का अमूल्य खजाना है, क्योंकि विश्व में महर्षि कुंभक (Mahrshi Kumbhak) की लिखी एकमात्र प्रति है जिसमें उनके द्वारा प्रणीत सिद्ध मंत्रों का संग्रह है। अपने पाठकों को इस प्रकार के दुर्लभ मंत्र स्पष्ट कर रहा हूं जो कि निश्चय ही उनके लिए लाभदायक और जीवन को सुखमय बनाने में सहायक होंगे।
नित्य स्वर्ण प्राप्ति के लिए साधना (Nitya Swarn Prapti ke liye Sadhana)
यह भद्राक्षी साधना है। इसमें भद्राक्षी को सिद्ध किया जाता है। सिद्ध भद्राक्षी साधक के साथ जीवन भर सहयोगी बनी रहती है और साधक जितना स्वर्ण चाहता है उतना स्वर्ण भद्राक्षी उसे प्रदान करती रहती है । यह साधना मैंने स्वयं सिद्ध की है और इसका प्रभाव अचूक अनुभव किया है। जिसमें भद्राक्षी प्रेमिका के रूप में जीवन भर साधक के साथ छाया की तरह बनी रहती है और प्रत्येक प्रकार से उसकी सेवा कर संतुष्टि प्रदान करती है। सिद्ध हो जाने के बाद साधक जितने स्वर्ण की मांग करता है भद्राक्षी उसकी पूर्ति करती रहती है और बदले में कुछ नहीं चाहती।
यह गोपनीय और परम दुर्लभ साधना पाठकों के लिए पहली बार प्रस्तुत है। यह केवल 5 दिन का प्रयोग है। किसी भी महीने की त्रयोदशी को प्रारंभ किया जा सकता है। साधक त्रयोदशी के दिन प्रातः काल 5 हकीक पत्थर अपने सामने रख ले और उन पांचों पत्थरों पर कुमकुम से ‘ह्रीं’ अंकित करें। इसके बाद आगे लिखा यंत्र किसी प्लेट में या थाली में बनावे और उस पर यह पांचों हकीक पत्थर रखकर मूंगे की माला से निम्न मंत्र का उच्चारण करें। नित्य पांच माला फेरने आवश्यक है। इसके बाद पांचों हकीक पत्थर किसी लाल पोटली में बांधकर घर में रख ले तो उसे निरंतर आर्थिक उन्नति होती रहती है। और उसके जीवन में जो न्यूनता है वह दूर हो जाती है तथा आर्थिक दृष्टि से समृद्धि एवं पूर्णता प्राप्त होती रहती है।
वस्तुतः यह प्रयोग अधिकारिक प्रयोग है और इसका लाभ प्रत्येक साधक को जीवन में उठाना चाहिए। दरिद्रता मिटाने और आर्थिक संपन्नता प्राप्त करने के लिए यह अचूक प्रयोग है।
साभार : विश्व की अलौकिक साधनाएं – श्री नारायण दत्त श्रीमाली